kar ke nirash

जिसको भी दी जान, कर के निराश चल दिया
हूँ कोंन उसका मैं, करा के अहसास चल दिया

सांसें थीं जब तलक,अकेला चलता रहा यारों,
पर मरते ही, यार बनके आमो ख़ास चल दिया

मैं किसको कहूँ अपना, किसको बेगाना कह दूँ
जो दुश्मन था कभी मेरा, हो के ख़ास चल दिया

यारा क्या पहेली है ज़िन्दगी, जो बुझाये न बूझती
जब तक मैं समझ पाता, खुदा के पास चल दिया

गुज़र गयी ये उम्र सारी, फांकते सड़कों की ख़ाक
न आया हाथ कुछ भी, हो के बदहवास चल दिया

मेरी ज़िन्दगी भी क्या है, बस एक ढेर है कचरे का
यारो जिसने भी चाहा, थूक के बिंदास चल दिया

न समझ पाया कोई भी मेरे दर्द ए दिल को ‘मिश्र’,
हर कोई सुना के अपनी, कर के उदास चल दिया

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