hamein khona nahin aata

हम कैसे बताएं यारो कि, हमें रोना नहीं आता
यूं खामखा पलकों को, हमें भिगोना नहीं आता

सहते रहें हैं यारों के सितम हम तो बस यूं ही,
अकारण बीज नफ़रत के, हमें बोना नहीं आता

अच्छा है कि कर दें फ़ना खुद को समन्दर में,
यूं ही किसी को बेसबब, हमें डुबोना नहीं आता

उम्र बिता दी यारो इस ज़िन्दगी को खोते खोते,
अब तलक भी उसूलों को, हमें खोना नहीं आता

सच है कि टीसते हैं हमारे ज़ख्म भी गाहे बगाहे,
फिर भी लाचार ज़िंदगी से, हमें होना नहीं आता

समझा दो ‘मिश्र’ हमको भी ज़िन्दगी का मसला,
बहते दरिया में अपने हाथ, हमें धोना नहीं आता

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