manzil

ख़्याल सब के सब सिमटते जा रहे हैं
उम्र से पहले समझते जा रहे हैं

उनकी आंखों ने जिन्हे जी भर के देखा
ख़ूबसूरत है वो कहते जा रहे हैं

जो मयस्सर जिंदगी में अब न होंगे
क्यूं उन्हीं का नाम लिखते जा रहे हैं

आजकल के छोड़ कर जाते परिंदे
दरिया को सागर समझते जा रहे हैं

उनका पहला पहला खत जिसने पढ़ा है
बेवफ़ा हमको ही कहते जा रहे हैं

के मुहब्बत को मुहब्बत से मिला दो
जब से शाइर‌ यह ही पढ़ते जा रहे हैं

हमको जब मालूम है मंजिल का रस्ता
मिलनी मंजिल तय है चलते जा रहे हैं

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