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46 लाख का जैकपॉट जीत कर सबसे अमीर गीतकार बने राजेंद्र कृष्ण
हाई स्कूल के दिनों में या कहें टीनएज के दौरान किशोर कुमार द्वारा गाया हुआ गीत पल दिल के पास तुम रहती हो, बेहद पसंद था। उन दिनों रांची में टेलीविजन नहीं आया था तो रेडियो और टेप रेकार्डर से यह गाना सुना था। ब्लैकमेल फिल्म देखी नहीं थी इसलिए ये भी नहीं जानता था कि किस पर ये गीत फिल्माया गया है। इसके साथ ही इस फिल्म के गीतकार को भी नहीं जानता था। कई वर्षों बाद 1984में जब रांची में टीवी आया तो दूरदर्शन के कार्यक्रम चित्रहार में कई बार ये गाना देखा तो जाना की धर्मेन्द्र पर गाना फिल्माया गया है और गीतकार राजेंद्र कृष्ण हैं।
राजेंद्र कृष्ण का जन्म 6 जून 1919 को अविभाजित भारत के जलालपुर जाटां (पंजाब ) में हुआ था। आज यह जगह पाकिस्तान में है। राजेंद्र कृष्ण का पूरा नाम राजेंद्र कृष्ण दुग्गल था। कविता लिखने का शौक बचपन से चरा गया था। डायरियों के पन्नों पर मन का उलझाव दर्ज करते रहे और कविता, शायरी, ग़ज़ल जैसा कुछ रचने लगे। साहित्य में रूचि बढ़ी तो साहित्यकारों को पढ़ने लगे।
म्यूनसिपल कार्पोरेशन में क्लर्क की नौकरी की
1942 में शिमला की म्यूनिसिपल कार्पोरेशन में क्लर्क की नौकरी मिली। इस दौर में अख़बारों को कविताएं प्रकाशन के लिए भेजने लगे।
जिगर मुरादाबादी की दाद ने बनाया शायर
1945-46 में शिमला में बहुत बड़ा मुशायरा हुआ देश के लगभग सभी बड़े शायर इकट्ठे हुए थे। वहां राजेंद्र कृष्ण ने अपनी पहली ग़ज़ल पढ़ी। मशहूर शायर जिगर मुरादाबादी मंच पर पहुंचे तो उनसे किसी ने कहा, ‘जनाब, आप एक नए शायर के कुछ गज़ब के शेर सुनने से रह गए’। जिगर साहब ने नौजवान शायर से फिर से शेर सुनाने को कहा और जैसे ही राजेंद्र साहब ने मतला पेश किया, ‘कुछ इस तरह वो मेरे पास आए बैठे हैं, जैसे आग से दामन बचाए बैठे हैं’। इस मतले को सुनकर जिगर साहब ने काफी देर तक सिर हिलाया तो राजेंद्र ने तय कर लिया कि अब नौकरी नहीं करनी है और एक शायर की ज़िंदगी जीनी है। राजेंद्र कृष्ण दुग्गल ने म्यूनिसिपल कार्पोरेशन के क्लर्क की नौकरी से इस्तीफा दे दिया और लेखक ‘राजेंद्र कृष्ण’ मुंबई चले आए। उन्हें कहीं भीतर बहुत गहरे में इस बात का विश्वास था कि जिगर साहब ने मान लिया है, तो दुनिया भी उन्हें शायर के रूप में मान ही लेगी।
इस अवधि के दौरान, उन्होंने पूर्वी और पश्चिमी लेखकों को बड़े पैमाने पर पढ़ा और कविता लिखी। उन्होंने फिराक गोरखपुरी और अहसान दानिश की उर्दू शायरी के साथ-साथ सुमित्रा नंदनपंत और सूर्य कांत त्रिपाठी निराला की हिंदी कविताओं के प्रति अपनी कृतज्ञता व्यक्त की। उन दिनों दिल्ली-पंजाब के अखबारों ने विशेष परिशिष्ट निकाले और कविता गोष्ठियों में कृष्ण जन्माष्टमी पर होनेवाले कार्यक्रमों में नियमित रूप से भाग लिया।
देश को मिली आजादी, राजेन्द्र को फिल्मों में ब्रेक
1947 में देश आज़ाद हुआ। 1947 में ही राजेंद्र को पहली फिल्म ‘जनता’ की पटकथा लिखने को मिली। उसी साल आई किशोर शर्मा निर्देशित फिल्म ‘जंज़ीर’ के लिए पहली बार गीत भी लिखने का मौका मिला ।
सुनो सुनो ऐ दुनियावालों बापू की ये अमर कहानी
राजेंद्र कृष्ण ने पहला मशहूर गीत महात्मा गांधी की हत्या के बाद लिखा था। जिसके बोल थे ‘सुनो सुनो ऐ दुनियावालों बापू की ये अमर कहानी’। ये गांधीजी के जीवन पर आधारित गीत था। देशवासी इस गाने को सुन कर रो पड़े। इस गीत के बोल भारत के हर आंगन में गूंजे. इस तरह ये पहला मौका था, जब राजेंद्र कृष्ण ने भारत की सामूहिक चेतना को आवाज़ दी थी।
जहां डाल डाल पर सोने की चिड़िया करती है बसेरा
इसके बाद भी कई ऐसे मौके आते रहे, जब देश राजेंद्र कृष्ण के देश भक्ति के गीतों को सुन कर जोश से भर जाते थे। उनका गीत जहां डाल डाल पर सोने की चिड़िया करती है बसेरा वो भारत देश है मेरा को सुन कर भारतीयों का सीना गर्व से चौड़ा हो जाता था और आज भी इस गीत को सुन कर देशभक्ति और आत्मविश्वास की भावनाएं हिलौरे मारने लगतीं हैं।
तेरे नैनों ने चोरी किया मेरा छोटा सा जिया
1948 में बनी फ़िल्म ‘प्यार की जीत’ का सुरैया की आवाज़ में गाया गया गीत ‘तेरे नैनों ने चोरी किया मेरा छोटा सा जिया परदेसिया’ भी बेहद लोकप्रिय हुआ था। इसके अगले ही साल 1949 में फिल्म आई ‘बड़ी बहन’, में राजेंद्र कृष्ण का मशहूर गीत ‘चुप-चुप खड़े हो जरूर कोई बात है, पहली मुलाकात है ये पहली मुलाकात है’ सुपर हिट हुआ । लता मंगेशकर और प्रेमलता की सुरीली आवाज से सजे गीत ने उस समय के युवाओं को दीवाना कर दिया। गली, नुक्कड़, चौराहों लेकर कोठों तक ये गीत गाया गया। इस गीत की सफलता से खुश होकर फ़िल्म निर्माता-निर्देशक डी.डी. कश्यप ने राजेंद्र कृष्ण को ऑस्टिन कार बतौर इनाम दी थी।
सैंया दिल में आना रे, ओ आके फिर न जाना रे
1951 में आई फ़िल्म ‘बहार’ में शमशाद बेगम का गाया गीत ‘सैंया दिल में आना रे, ओ आके फिर न जाना रे, छम छमाछम छम’ भी बहुत मशहूर हुआ।1953 में फिल्म ‘अनारकली’ आई, जिसके गीत भी राजेंद्र कृष्ण ने लिखे। इस फ़िल्म में ‘जिंदगी प्यार की दो-चार घड़ी होती है, चाहे छोटी भी हो, ये उम्र बड़ी होती है’ जैसे मशहूर और मार्मिक गीत थे।
‘मैं हूं भारत की नार, लड़ने मरने को तैयार
इसी साल फिल्म ‘लड़की’ रिलीज हुई, जिसमें एक से बढ़कर एक गीत थे. ‘मेरे वतन से अच्छा कोई वतन नहीं है/ सारे जहां में ऐसा कोई रतन नहीं है’, ये गीत बहुत मशहूर हुआ। नारी सशक्तिकरण का एक गीत इसी फिल्म में था, ‘मैं हूं भारत की नार, लड़ने मरने को तैयार, मुझे समझो न कमजोर, लोगों समझो न कमजोर’। इस गीत को जितने सशक्त ढंग से राजेंद्र ने लिखा था, उसी जोश खरोश के साथ लता मंगेशकर ने गाया भी था।
मेरा मन डोले, मेरा तन डोले की धुन पर झूमे लोग
1954 में आई ‘नागिन’ फिल्म का गीत ‘मेरा मन डोले, मेरा तन डोले’ ने तो तहलका मचा दिया था। ये गीत आज भी शादी के मौके पर बजने वाले बैंड बाजे की धुन पर हाथ में रुमाल लेकर उसे बीन बना कर नागिन डांस करने वालों का फेवरेट गाना है। ‘मेरा दिल ये पुकारे’ और ‘जादूगर सैंया छोड़ो मोरी बईयां हो गई आधी रात, अब घर जाने दो’ आज भी संगीत प्रेमियों के दिल में बसा है।
फ़िल्म ‘देख कबीरा रोया’ (1957) का गीत ‘कौन आया मेरे मन के द्वारे पायल की झंकार लिए’ भी हिट रहा था। वहीं ‘भाभी’ फिल्म का गीत ‘चल उड़ जा रे पंछी कि अब ये देश हुआ बेगाना’ हिंदी गीतों की मक़बूलियत की मिसाल हैं।
वो भूली दास्तां लो फिर याद आ गई
राजेंद्र कृष्ण पूरे पचास के दशक में हिंदी सिनेमा के गीतों की दुनिया में छाए रहे। 1961 में आई फ़िल्म ‘संजोग’ का गीत ‘वो भूली दास्तां लो फिर याद आयी’ और 1962 की फिल्म ‘मनमौजी’ का किशोर कुमार की अल्हड़-खिलंदड़ अंदाज़ में गाया गया गीत ‘जरूरत है, जरूरत है, जरूरत है, एक श्रीमती की, कलावती की, सेवा करे जो पति की’ आज भी उतनी ही मस्ती और चाव से सुना और गाया जाता है, जितना उस दौर में गाया जाता था।
राजेंद्र साहब ने ‘जहांआरा’ (1964), ‘नींद हमारी ख्वाब तुम्हारे’ (1966) और ‘पड़ोसन’ (1968) के बेहतरीन गीत लिखे। साठ और सत्तर के दशक में राजेंद्र कृष्ण ने फिल्मों की कहानी, संवाद और पटकथा ज्यादा लिखी और अपने काम से सबको चौंकाते रहे। फिल्म ‘गोपी’ (1970) के लिए लिखा गीत ‘सुख के सब साथी दुख का न कोय’ घर-घर में जीवन का दर्शन बताने और अपने से छोटों को सिखाने-समझाने के लिए आज भी प्रयोग किया जाता है।
घोड़ों की दौड़ का था ख़ासा शौक़
राजेंद्र कृष्ण को घोड़ों की दौड़ का ख़ासा शौक़ था। वे किस्मत के भी धनी थे। अधिकतर लोग जहां हॉर्स रेस में लाखों रुपये हार कर बर्बाद हो जाते हैं वहीं राजेंद्र ने सत्तर के दशक में 46 लाख का इनकम टैक्स फ्री जैकपॉट घोड़े की दौड़ में मिला। इसने उन्हें उस दौर का सबसे अमीर लेखक बना दिया था।
राजेंद्र कृष्ण ने फिल्मों के लिए हज़ारों गीत लिखे।करीब सौ से ज्यादा फिल्मों की कहानी, संवाद और पटकथा लिखी, जिसमें कुछ मशहूर फ़िल्में ‘पड़ोसन’, ‘छाया’, ‘प्यार का सपना’, ‘मनमौजी’, ‘धर्माधिकारी’, ‘मां-बाप’, ‘साधु और शैतान’ जैसी फ़िल्में हैं।
अठारह तमिल फ़िल्में भी लिखीं
आपको सहज यकीन करना मुश्किल हो लेकिन हिन्दी के गीतकार राजेंद्र कृष्ण की तमिल भाषा पर भी अच्छी पकड़ थी। वे तमिल फिल्मों की पटकथा भी लिखा करते थे। उन्होंने करीब अठारह तमिल फ़िल्में AVM Studios के लिए लिखीं। राजेंद्र कृष्ण ने लगभग सभी बड़े संगीत निर्देशकों के साथ फ़िल्में की, पर उनकी जोड़ी ख़ासतौर पर सी. रामचंद्र के साथ रही। यूं तो राजेंद्र के गीतों को करीब-करीब सभी पार्श्व गायकों ने गाया, पर सुरैया, लता, किशोर, मुहम्मद रफ़ी, और मन्ना डे ने राजेंद्र कृष्ण के गीतों अलग सी ऊंचाई तक पहुंचाया।
राजेंद्र कृष्ण अपने आखिरी दिनों तक काम में मशगूल रहे। उन्हें लगातार काम मिलता रहा और वह काम करते रहे। काम भी ऐसे, जो दिलों में बस जाए और हम याद भी न करना चाहें, तो भी बरबस याद आ जाए। उनकी आखिरी फिल्म ‘आग का दरिया’ थी, जिसके लिए वह गीत लिख रहे थे। यह फ़िल्म उनकी मृत्यु के दो साल बाद 1990 में आई. राजेंद्र कृष्ण का निधन 23 सितम्बर 1988 को मुंबई में हुआ।
पुरस्कार व सम्मान
राजेंद्र कृष्णन को ” तुम मेरे मंदिर, तुम मेरी पूजा ” खानदान (1965) फिल्म के लिए सर्वश्रेष्ठ गीतकार का फिल्मफेयर पुरस्कार दिया गया था ।
लोकप्रिय गाने
हम प्यार में जलने वालों को ————- जेलर
वो पास रहे या दूर रहे ————- बड़ी बहन
ये ज़िन्दगी उसी की है ————- अनारकली
शाम ढले खिड़की तले———- अलबेला
मेरे पिया गए रंगून वहां से किया है टेलीफून– पतंगा
मेरा दिल तुझे पुकारे आजा ———- नागिन
जहां डाल डाल पर सोने की चिड़िया करती है बसेरा —— सिकंदर-ए-आज़म
ऐ दिल मुझे बता दे तू किस पे आ गया है —- भाई भाई
चल उड़ जा रे पंछी———- भाभी
भूली हुई यादों मुझे इतना ना सताओ– संजोग
यूं हसरतें के दाग ———— अदालत
जाना था हम से दूर ————– आदलत
उनको तो शिकायत है ———— अदालत
छुप गया कोई रे —————- चंपाकली
कौन आया, मेरे मन के द्वार —- देख कबीरा रोया
हम से आया ना गया तुम से बुलाया ना गया — देख कबीरा रोया
इतना ना मुझसे तू प्यार बढ़ा—– छैया
मैं अपने आप से धबरा गया हूं —– बिंदिया
वो दिल कहां से लाऊं———- भरोसा
कभी न कहीं न कहीं —- शराबी
मैं तो तुम संग नैन मिला के हार गई सजना—- मन मौजी
फिर वही शाम वही गम ——— जहाँ आरा
मैं तेरी नज़र का सुरूर हूं — जहाँ आरा
तेरी आंख के आंसू पी जाऊं — जहाँ आरा
ये रस्ते है प्यार के ———— ये रस्ते है प्यार के
तुम्ही मेरे मन्दिर तुम्हीं मेरी पूजा —————- खंडन
कहना है कहना है आज तुमसे पहली बार — पडोसन
जो उनकी तमन्ना है बर्बाद हो जाएं—– इंतकाम
सुख के सब साथी ————— गोपी
पल पल दिल के पास ————– ब्लैक मेल
नैना मेरे रंग भरेंगे —— ब्लैकमेल
जादूगर तेरे नैना ————— आदमी मंदिर

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