man(1)

कभी ख्वाहिशों ने, फंसाया ज़िन्दगी को !
तो कभी ज़रूरतों ने, रुलाया ज़िंदगी को !
कभी राह में गैरों ने बिछाए कांटे दोस्तो,
तो कभी अपनों ने, छकाया ज़िन्दगी को !

कभी ख्वाबों में खुश हो लिए हम यूं ही,
तो कभी हक़ीक़तों ने, सताया ज़िंदगी को !
कभी ख़ुशी के रंगों से पुलकित हुआ दिल,
तो कभी मुश्किलों ने, हराया ज़िन्दगी को !

कभी चढ़ते गए मंज़िल की सीढियाँ “मिश्र”,
तो कभी दुश्मनों ने, गिराया ज़िन्दगी को !

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