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एक बरस में मौसम चार, यह फिल्मी गाना बहुत लोकप्रिय है। जहाँ पाँचवे मौसम के रुप में ‘प्यार” के मौसम की बात होती है।जब हम इस पाँचवे मौसम की तह तक जाते है तो इस भाव को व्यक्त करने के लिए हमारे डिक्शनरी में ढ़ेर सारे शब्द दिखलाई पड़ते है और चाहे हिन्दी भाषा का शब्द प्रेम हो या फिर इश्क़,मोहब्बत या लव जैसे अंग्रेज़ी शब्द हो।ये सभी शब्द अपने-अपने लगते है। इन शब्दों को सुनकर अपने जीवन के इतिहास की कई स्मृतियाँ जीवंत हो उठती है।

मुझे मालूम है कि प्यार-मोहब्बत की बात करने पर,न जानें क्यों? हमारे यहाँ कुछ लोग संस्कृति और संस्कार के नाम पर विरोध का झंडा उठा लेते हैं,जबकि कुछ लोग तो इस विषय पर ज्यादा बोलने से भी बचते हैं। जबकि मुझे लगता है कि ‘प्रेम’ सृष्टि का सबसे बहुमूल्य और लौकिक भाव रहा है।जिसके मन में कभी प्रेम का भाव उत्पन्न नहीं हुआ।मेरी नजर में वह इस जगत का प्राणी ही नहीं है।

अगर इस शब्द,भाव और किवदंतियों पर नजर डालेंगे तो हमारे यहाँ इतना कुछ रचा गया है कि अनगिनत महाकाव्य भी नाकाफी महसूस होंगे।हमारे यहाँ लोकप्रिय प्रेमकथाओं में सिर्फ़ लैला-मजनूँ,हीर-रांझा,सोहनी-महिवाल और
रोमियो-जुलियट जैसी अनेकों कहानियां ही प्रचलित नहीं हैं बल्कि इस सृष्टि के आरंभ से जुड़ी हुयी आदम-हव्वा,मनु-श्रद्धा आदि की भी ढ़ेर सारी कहानियाँ प्रचलित है,जिसकी आधारशिला प्रेम ही रही है।

दरअसल प्रेम एक सार्वभौमिक भाव है।यह मनुष्य के द्वारा दी गयी सीमाओं से परे है। शायद इसीलिए जैसे पश्चिमी देशों में क्यूपिड और यूनानी देशों में इरोस को प्रेम का प्रतीक माना जाता है। वैसे ही हमारे देश में कामदेव को प्रेम और आकर्षण का देवता कहा जाता है। जबकि धार्मिक और पौराणिक कथाओं के अनुसार कामदेव भगवान विष्णु और देवी लक्ष्मी के पुत्र हैं। उनका विवाह रति नाम की देवी से हुआ था, जो प्रेम और आकर्षण की देवी मानी जाती है।

देवताओं की बात करें तो शिव और सती की प्रेम कथाओं के साथ राधा-कृष्ण का प्रेम यहाँ सबसे लोकप्रिय रहा है।भगवान कृष्ण का रसिक स्वभाव सिर्फ़ धर्मग्रंथों में ही नहीं बल्कि हिन्दी साहित्य का आधार रहा है।कामदेव की पूजा का आज भी उतना ही महत्व है,जितना सदियों पहले था। आज भी उनको प्रसन्न करने वाला मंत्र उतना ही लोकप्रिय है- “ॐ वारणे मदनं बाण – पाशांकुशशरासनान्।
धारयन्तं जपारक्तं ध्यायेद्रक्त – विभूषणम्।।
सव्येन पतिमाश्लिष्य वामेनोत्पल – धारिणीम्।
पाणिना रमणांकस्थां रतिं सम्यग् विचिन्तयेत्।।

अब 16 फरवरी को बसंत पंचमी है। बसंत ऋतु, जो ऋतुओं का राजा माना जाता है।यह प्रेम का महीने के रुप में लोकप्रिय है।ऐसा भी सुना गया है कि बसंत पंचमी के दिन ही काम के देवता कामदेव का भी जन्म हुआ था।हमारे प्राचीन कथाओं में इस दिन मदनोत्सव मनाए जाने की परंपरा रही है।शायद इसलिए बसंत ऋतु को बहार का मौसम माना जाता है जिस मौसम मेंसंपूर्ण सृष्टि में प्रेम स्पंदित होता है।यह भी माना जाता है कि बसंत कामदेव का मित्र है।हमारे पौराणिक ग्रंथो में यह मान्यता भी है कि बसंत पंचमी के दिन ही कामदेव और उनकी पत्नी रति ने पहली बार मनुष्य के हृदय में प्रवेश करके उनका दिल अपने बस में कर लिया था। तभी से उनमें प्रेम और आकर्षण का संचार होने लगा।

इस बहार के मौसम में पाषाण ह्रदय म़े भी प्रेम के भाव को जागृत करने के लिए कामदेव का प्रसिद्ध धनुष फूलों का बना हुआ है।कामदेव जब इस धनुष के कमान से तीर छोड़ते हैं तो उसकी आवाज नहीं होती है। इसमें फूलों के बाणों से आहत हृदय प्रेम से सराबोर हो जाता है।

तो मित्रो़। बसंत ऋतु का आगमन हो चुका है।पाश्चात्य संस्कृति पर आधारित मनाया जाने वाला वेलेंटाइन सप्ताह भी,आज अपने पूरे शवाब पर है।ठिठुरती ठंड और आने वाले गर्मी के मौसम के बीच का यह समय आपके मन में प्रेम के भाव को जगा रही है।दुख रुपी पतझड़ के बाद खुशी और उत्साह रुपी नए फूलों,कोंपलों और सुहाने मौसम का आगमन हो,इसी उम्मीद और आशा के साथ यह पाँचवा “प्यार का मौसम’ आप सभी को बहुत मुबारक हो।

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