ये पंक्तियां समाज के उन गौण पक्ष को इंगित करती हैं, जो समाज के समस्याओं से अलग है, जिसमें एक विवाहिता कलंकित स्त्री, पति से प्रताड़ित और छोड़ी हुई स्त्री आखिर कहां जाएंगी ? ये प्रश्न पर सब स्तब्ध हैं,… Read More
कविता : फिर रात
सत्य एक, बीती दो रात है ये दो चांदनी, फिर कहे कोई बात है रूको नहीं, झुकों नहीं दिन भी है, फिर रात है। दिशा प्रशस्त हो चुकी कदम – कदम पे कलम धार है जो रूके नहीं चलते चले… Read More