ये पंक्तियां समाज के उन गौण पक्ष को इंगित करती हैं, जो समाज के समस्याओं से अलग है, जिसमें एक विवाहिता कलंकित स्त्री, पति से प्रताड़ित और छोड़ी हुई स्त्री आखिर कहां जाएंगी ? ये प्रश्न पर सब स्तब्ध हैं, मौन हैं। पति के घर में घनघोर दुःख से बचकर अपने बेहया संतान को लेकर जब भाई के घोरी में जाती है तो वहां बत्तीसों दांत के बीच जीभ तले सी क्षण-क्षण का जीवन जीना बदतर स्थिति हो जाती है तथा अपने जीवन के दुःख का पहाड़ को झेल रही होती है मृत्यु के अंतिम क्षणों को एक दो तीन चार से गिन रही होती है।
स्त्री विमर्श पर आधारित कुछ पंक्तियां अग्र लिखित है
बिटियाँ
सबके लिए अच्छी होती है
घर में काम करती है
झाड़ू लगाती, खाना बनाती, कपडें धूलती है आदि
जो अक्सर महिला काम करती है
वो सब बिटियाँ करती हैं।
इसलिए बिटियाँ अच्छी लगती हैं।
वो कब
विवाह से पहले…. यानि
मांग में सिन्दूर भराने से पहले
कोई वर या पुरुष स्त्री के मांग में सिन्दूर भरते हैं
ठीक है सब सही चल रहा है
बोझ का पहाड़ तब टूट पड़ता है
जब विवाहित स्त्री भाई के घोरी में रहकर
यानि मैके में रहकर
ठाँव-चौका करती है और तो और
पर्व-त्योहारों या अन्य शेष दिनों भी
नियमित उपहार स्वरूप
भाई के हाथों, दूसरे घर से आई स्त्री
[ यानि भाई के पत्नी के हाथों भी ]
लात, चप्पल-जूता, बांस से मार खाती है
निर्दयी भाई से जब बिटियाँ के माँ के
ममत्व हृदय जब असह्य हो जाती है
बेटी को मार से बचाने जाती है तो
वो भी मार खाती है इसके खामियाजा में
माँ का हाथ – पैर टूटता है
बेटे के हाथों माँ को ही अपंग बना दिया जाता है
दुःख के घनघोर काले बादल
जन्म देने वाली माँ को ही मिला
किन्तु एक बात अच्छी होती है कि
बेटी का मगज फटने से बच जाता है
जहाँ बिटियाँ जन्म ली
वो परिवार के लोग बिटियाँ के
जीवन को नरक बना देते
उस समाज के लोग कुछ कम नहीं हैं
अपितु वो भी स्त्री को
इन्सान नहीं बल्कि हैवान समझ ली जाती है।
तो कल की दुलारी बिटियाँ
आज राक्षस के हाथों खेल रही है
“हैरि गे हैरि केना रहयसी
लाइत मुक्का खाईके भने रहेसीय”
ये पंक्ति सही जान पड़ती हैं।
क्योंकि स्त्री के पति से,
[ दहेज लिए, स्त्री कुरूप है इसलिए, बेमेल विवाह आदि ]
सास से, ससुर से आदि अन्य से
मार खाती हैं, आग में झुलसती हैं, जहर खाती हैं
आत्मदाह करती हैं या मार दिया जाता है
ये बेहया राक्षसों – राक्षसियों के द्वारा।
ससुराल में इसे वेश्या, अछूत, पापिन आदि
जितने विशेषता लगा दिए जाए, सब को
बदनसीब समझा जाता है।
ये कौन सभ्य सी सभ्यता का परिचय दे रहा है ? इस हलालों को देख क्यों समाज के लोग मौन हो जाते हैं आखिर कब तक मनुष्य में मनुष्यता नहीं अपितु हैवानियत दिखाई देगी।