bhashavigyan

भाषाविज्ञान पर विचार करते समय हमें यह ज्ञात होता है कि जिसमें भाषा का वैज्ञानिक अध्ययन किया जाए वही भाषाविज्ञान है तो स्पष्ट ही यह विज्ञान है। दरअसल विज्ञान शब्द का मूल अर्थ ‘विशिष्ट ज्ञान’ है। उपनिषदों में इसका प्रयोग ‘ब्रह्मविद्या’ के लिए भी हुआ है। आज सामान्य प्रयोग में शास्त्र और इसमें कोई भेद प्रायः नहीं पाया जाता है। यों मूलतः शास्त्र और विज्ञान में अंतर है, ‘विज्ञान’ तो ‘विशेष ज्ञान’ है और ‘शास्त्र’, ‘शासन करने वाला’ है अर्थात वह यह बतलाता है कि क्या कारणीय है और क्या अकारणीय। अपने यहां अर्थशास्त्र, कामशास्त्र,धर्मशास्त्र के प्राचीन प्रयोग इसी ओर संकेत करते हैं । इस अर्थ में व्याकरण को शास्त्र कह सकते हैं किंतु इस मूल अर्थ की दृष्टि से भाषा विज्ञान को शास्त्र नहीं कर सकते यह बात दूसरी है कि अब मूल अर्थ भुला दिया गया है और विज्ञान तथा शास्त्र पर्याय से हो गए हैं इसलिए राजनीतिक विज्ञान तथा राजनीति शास्त्र, भौतिक विज्ञान और भौतिक शास्त्र, सामाजिक विज्ञान और समाजशास्त्र, मानव विज्ञान और मानव शास्त्र एक ही अर्थ में प्रयुक्त होते हैं।

यहां यह प्रश्न भी उठाया जा सकता है कि भाषाविज्ञान किस सीमा तक विज्ञान है। वस्तुतः विज्ञान का अर्थ आज के प्रयोग में केवल एक नहीं है गणित,भौतिक और रसायन जिस अर्थ में विज्ञान हैं, ठीक उसी अर्थ में मानव विज्ञान, राजनीति विज्ञान, समाज विज्ञान आदि विज्ञान नहीं हैं। विज्ञान में प्रायः विकल्प नहीं होता और उसके सत्य, जैसे अमुक कारण हो तो अमुक कार्य होगा। काफी सीमा तक देश काल से परे अर्थात सार्वत्रिक और सार्वकालिक होते हैं। वे बातें गणित या भौतिक पर जितनी लागू होती हैं उतनी राजनीति पर नहीं, फिर भी वह विज्ञान कहे जाते हैं।
इस दृष्टि से हम कह सकते हैं कि भाषा विज्ञान तो है किंतु उस सीमा तक नहीं जितना की गणित आदि। यद्दपि इसमें संदेह नहीं कि दिनोंदिन यह विकसित तथा अधिक वैज्ञानिक होता जा रहा है।

अब विज्ञान और कला का प्रश्न लेते हैं अध्ययन के विषयों को विज्ञान और कला दो वर्गों (वाणिज्य आदि के अतिरिक्त) में बांटा जाता रहा है। बीए. एमएस. आर्ट फैकल्टी में आर्ट्स (कला) का यही अर्थ है। वस्तुतः ज्ञान की इन दो शाखाओं के कारण ही यह प्रश्न उठा था कि ‘भाषाविज्ञान’ विज्ञान है या ‘कला’ यह बात ध्यान देने की है कि इस प्रश्न में कला का अर्थ ‘ललित कला’ या ‘उपयोगी कला’ नहीं है जैसा कि कुछ लोग ले लेते हैं इस प्रकार भाषाविज्ञान ललित कला या उपयोगी कला में कला का जो अर्थ है उस अर्थ में तो कला नहीं है किंतु बी ए. आदि में कला का जो विस्तृत है उस दृष्टि से कला है क्योंकि मनोविज्ञान, अर्थशास्त्र, राजनीति आदि ऐसे विषय जो रसायन शास्त्र, भौतिक शास्त्र आदि की भांति निश्चित विज्ञान नहीं है, कला ही अंतर्गत माने जाते हैं। भाषाविज्ञान भी लगभग इन्हीं की कोटि का है इस प्रसंग में यह भी उल्लेख है कि इस ग्रुप में कला का अर्थ क्षेत्र बहुत निश्चित नहीं है गणित को इस संदर्भ में कला में रखते भी हैं और नहीं भी रखते हैं कुछ विश्वविद्यालयों में बीएससी. पास व्यक्ति गणित में मास्टर की डिग्री ले तो उसे एमएससी. की उपाधि मिलती है और बीए.पास व्यक्ति डिग्री ले तो उसे एमए. की उपाधि मिलती है। यही नहीं यूरोप के कुछ विश्वविद्यालय सभी विषयों को साइंस मानकर साइंस की डिग्री देते हैं तथा कुछ परंपरागत रूप से सभी आर्ट की। आजकल अध्ययन के विषयों को मोटे रूप से तीन वर्गों में रखने की परंपरा चल पड़ी है- प्राकृतिक विज्ञान, सामाजिक विज्ञान और मानविकी। प्राकृतिक विज्ञान में जहां भौतिकी, रसायन आते हैं, सामाजिक विज्ञान में समाजशास्त्र, अर्थशास्त्र जाते हैं, मानविकी में साहित्य, संगीत शास्त्र और चित्रकला जुड़ जाते हैं। यदि भाषाविज्ञान को इनमें रखने की बात उठाई जाए तो वह समवेत रूप से सामाजिक विज्ञान के निकट पड़ेगा। यों यदि उसके विभिन्न विभागों की ओर दृष्टि बढ़ाएं तो उसकी ध्वनि विज्ञान शाखा विशेषतः ध्वनि के उच्चरित होने के बाद कान तक के संचरण का अध्ययन, प्राकृतिक विज्ञान के क्षेत्र में पड़ता है तो उसकी शैली विज्ञान शाखा एक सीमा तक मानविकी में।

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6 thoughts on “लेख : भाषाविज्ञान कला है या विज्ञान”

  1. आपने तो भोलानाथ तिवारी के कपि पेस्ट कर दिये हैं।

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