तीन रुपये के लिए जात की औकात बतलाती है, फ़िल्म आर्टिकल 15। यूं तो हमारे संविधान का अनुच्छेद 15 कहता है कि धर्म, वंश, जाति, लिंग और जन्म स्थान आदि के आधार पर किसी के साथ भेदभाव नहीं किया जायेगा। सबको समान दृष्टि से देखा जायेगा। मगर असलियत में, कहीं न कहीं से ऐसी घटनाएं हमारे सामने अखबार और न्यूज़ चैनलों के माध्यम से आ ही जाती है जो इसकी एक अलग ही कहानी बयां करती है। जिसमें जात-पात या ऊंच नीच को लेकर समाज के कई वर्गों में आयदिन आपसी झड़प, लड़ाई-झगड़े, दंगे और मरने-मारने तक की खबरें आती है। फ़िल्म आर्टिकल 15 का विषय भी इसी का ज्वलन्त उदाहरण है। अनुभव सिन्हा द्वारा निर्देशित यह एक ऐसी फ़िल्म है, जिसमें उत्तरप्रदेश के बदायूं में 2014 में हुई दो नाबालिग लड़कियों के साथ दुष्कर्म के बाद उन्हें मारकर पेड़ की टहनियों से लटका दिया गया था। इस अत्यंत संवेदनशील मुद्दे को बड़े संजीदगी से यह फ़िल्म दिखलाती है। जाति की जड़े हमारे समाज
को किस तरह से खोखला करती जा रही है कि मात्र 25 रुपये की जगह 28 रुपया मेहनताना मांगने पर नीची जाति के दो नाबालिग लड़कियों को उनकी जात की औकात बतलाने के लिए उनके साथ रेप कर उन्हें मार दिया जाता है। और यही नहीं फिर उन्हें पेड़ की टहनियों से लटका दिया जाता है, ताकि आगे से कोई उनकी जात वाला ऐसी हिम्मत दुबारा न कर सके। केवल 3 रुपये के लिए उन लड़कियों को अपनी जान गवानी पड़ती है। ऐसी स्थितियां हमारे हृदय को झकझोर कर हमें सोचने के लिए विवश करती हैं कि आखिर हम किस समाज में रह रहें हैं ? क्या यही है हमारा आर्टिकल 15, समानता का अधिकार ? इसी बात की सही खोजबीन करते हुए नज़र आते है आयुष्मान खुराना जिन्होंने इस फ़िल्म में आईपीएस अधिकारी अयान के रूप में मुख्य भूमिका निभाई है। छोटे लेकिन महत्वपूर्ण विषयों पर, बड़ी ही अच्छी और बेहतरीन फिल्में करने में लगता है आयुष्मान खुराना ने महारत हासिल कर ली है। विक्की डोनर, नौटंकी साला, दम लगा के हईशा, बरेली की बर्फी, शुभमंगल सावधान और बधाई हो के बाद आर्टिकल 15 इसी का एक बेहतरीन उदाहरण है। आईपीएस अधिकारी अयान के रूप में उन्होंने अपने स्तर से आर्टिकल 15 को सही मायनों में समझाने का प्रयास किया है। रेप केस को जहां एक ओर दबा देने की पूरी कोशिश की जाती है वहीं दूसरी ओर अयान इस केस की तह तक जाने का निर्णय लेता है। यहीं पर वह राजनीतिक षडयंत्र का शिकार हो जाता है। जिसका खमियाजा उसे सस्पेंड के रूप में भरना पड़ता है। उसके साथ काम करने वाले पुलिस वाले जब बार-बार कहते हैं कि ये लोग ऐसे ही हैं तब अयान झल्लाकर पूछता है कि कौन है ये लोग ? ये क्यों हमारे साथ हमारी तरह नहीं रह सकते। SC/ST एक्ट की यहीं पर खूबी और कमी भी दिखलाई गई है। ऊपरी पहुंच के कारण जब केस सीबीआई अधिकारी नास्सर के पास चली जाती है तब अयान से काफी पूछताछ होती है। अयान के जवाब में कई सवाल अनायास ही उठ आते हैं जो सीबीआई अधिकारी को सवालों के घेरे में ला खड़ा कर देता है। जैसे – वही जो आपको फोन कर रहा है पिछले 12 घण्टे से या फिर दिल्ली में यस सर, यस सर की जगह एक बार नो सर कहा होता तो शायद ये स्थिति न होती। फ़िल्म में अयान के बाद निषाद के रूप में मुहम्मद जीशान अयूब ने अच्छी एक्टिंग की है। अपने जाति समाज के लोगों की समस्याओं को उन्होंने बखूबी दर्शाया है। निषाद का संवाद भी बेहतरीन है। जैसे हमलोग जन गन मन से हरिजन बन गये लेकिन बहुजन नहीं बन पाये… जितने लोग बॉर्डर पर मरते हैं, उससे ज्यादा गटर साफ करते हुए मर जाते हैं। जैसे संवाद फ़िल्म में मार्मिक स्थितियों से हमें रूबरू कराता हैं। ब्राह्मण दलित एकता की राजनीति में जब निषाद की गोली मारकर हत्या कर दी जाती है तब अयान के पी.ए. का उसके प्रेमिका से ये कहना कि, हम बार बार तुमसे माफी मांगेंगे मगर तुम माफ नहीं करना दर्शकों की आंखे नम कर जाती हैं। थाने के सिपाहियों में कुमुद मिश्रा और मनोज पहवा का अभिनय और संवाद भी शानदार है। सीबीआई के रोल में नास्सर व अन्य भूमिकाओं में ईशा तलवार, सयानी गुप्ता, नमाशी चक्रवर्ती, और रॉनजिनी चक्रवर्ती सभी ने अपने किरदार को सही तरीके से दिखलाया है। फ़िल्म का गीत संगीत अपनी आवाज को उठाते हुए लोकगीत की धुन से शुरू होकर रैप के बीट पर आकर खत्म होती है। जो अपने तरीके से 21वीं सदी के युवाओं को जोड़ने की कोशिश करता है। अपनी पिछली फिल्म मुल्क से जो छाप अनुभव सिन्हा ने छोड़ी है, उसे हम इस फ़िल्म में थोड़ा मिस जरूर करते हैं। हां फ़िल्म का अंत बेहतरीन है। कुल मिलाकर कहा जाय तो आपको ये फ़िल्म जरूर देखनी चाहिए। मेरी ओर से इस फ़िल्म को मिलते हैं 5 में से 3.5 स्टार।

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2 thoughts on “आर्टिकल 15: मूवी रिव्यू”

  1. हां, बात ये है कि मुझे कई बिंदुओं पर फ़िल्म थोड़ी ढीली लगी। कैमरावर्क इसका उतना अच्छा नहीं था। विषय जितना अच्छा था प्रस्तुतिकरण में वो उतनी सफल नहीं हो पाई इसलिए मैंने इसे 3.5 ही दिया। बाकी फ़िल्म तो अच्छी है ही।,

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