बासु चटर्जी हिंदी और बांग्ला सिनेगा के ऐसे नाम हैं जिनकी फिल्में वास्तव में मध्यवर्गीय जीवन की छोटी – छोटी विसंगतियों को स्वर देती हैं। आम जीवन में पनपे प्रेम की सामाजिक जटिलता को सुलझाती हुई उनकी फिल्में समांतर सिनेमा की नींव है। समांतर सिनेमा की अतिबौद्धिकता ने फिल्मों को उन्हीं से दूर कर दिया जिनके लिए वह बनाई जा रही थीं। बासु दा की फिल्में समांतर सिनेमा की साख को बचाए रखने में बहुत बड़ी भूमिका निभाती है क्योंकि उसमें जिस निम्न मध्य वर्ग की बुनियादी समस्या, जिनमें प्रेम पहले है को वह उठा रहे थे, वह उन वर्गों तक बहुत मजबूती से पहुंच भी रही थी। साहित्य और सिनेमा के बीच की कड़वाहट को कम करने में बासु चटर्जी का कोई दूसरा विकल्प नहीं है। मुक्तिबोध, राजेन्द्र यादव और मन्नू भंडारी की कृतियों पर बनी उनकी फिल्मों ने साहित्य और सिनेमा के संबंध को मजबूत ही नहीं किया बल्कि अन्य निर्देशकों को इस दिशा में काम करने के लिए प्रेरित भी किया। बासु दा हमारे युवा दिनों के फिल्मकार हैं। जब पत्रकारिता, सिनेमा से विशेष जुड़ाव था। टेलीविजन और रेडियो से भी मैं वर्षों जुड़ी रही, आज भी जुड़ी हूं। बासु दा के कई धारावाहिक बहुत चर्चित हुए। उनकी फिल्मों की सूची बड़ी है लेकिन उनमें आकाश, पिया का घर, रजनीगंधा, चितचोर, छोटी सी बात, स्वामी, कमला की मौत, एक रुका हुआ फैसला, चमेली की शादी, एक रुका हुआ फैसला मुझे विशेष प्रिय हैं। चूंकि मैंने धारावाहिकों पर अपना लघु शोध प्रबंध लिखा है तो उनके धारावाहिकों को भी देखा। रजनी, काका जी कहिन, व्योमकेश बख्शी को कौन भूल सकता है। उन्होंने एक रुका फैसला पर दूरदर्शन के लिए एक टेलीफिल्म भी बनाई जो साहित्यिक खेमे में बहुत चर्चित रही। राजेंद्र यादव और मन्नू भंडारी को सिनेमा से जोड़ने में बासु जी की अहम भूमिका है। राजेन्द्र यादव ने तो फिल्म लेखन में ज्यादा रुचि नहीं दिखाई लेकिन मन्नू भंडारी ने कई फिल्मों और धारावाहिकों का लेखन भी किया। बाद में कथा – पटकथा नाम से उनकी महत्वपूर्ण पुस्तक भी प्रकाशित हुई। सिनेमा और धारावाहिक लेखन में रुचि रखने वालों को मन्नू जी की यह पुस्तक तो अनिवार्य रूप से पढ़नी ही चाहिए। बासु दा को विनम्र श्रद्धांजलि।