गुलाब के फूलों में लगे काले कीड़ों के मुँह से गन्दी गालियाँ सुनाई दे रही थी। दिन के अँधेरे में बग़ीचे में लगे विशालकाय वृक्ष में रहने वाले पक्षी, अपने-अपने घोंसलों  में आग लगा चुके थे। आग की हरी लपटें लाल प्रकाश उत्सर्जित कर रही थीं। लाल और हरे रंग का यह मेल माहौल को और भयाक्रान्त कर रहा था। इसी बीच वृक्ष की जड़ों से सटी बामी से निकल कर एक सांप अपना ज़हर फूँक कर आग को बुझाने का प्रयास करने लगा।
खिड़की के दूसरी ओर देखने पर गन्ने का एक खेत था। जिसमें कुछ लोग मौजूद दिखाई देते थे। उन लोगों में से कुछ ने टोपी पहनी हुई थी, तो कुछ सर पर साफा बांधे हुए थे। उन सभी के पास बोरियां थी, जिसमे बड़े अक्षरों में “नमक” लिखा हुआ था।
उन्होंने बोरियों से नमक निकाल कर उसका छिड़काव पूरे खेत में करना शुरु कर दिया। खेत का रखवाला खाकी वर्दी में था, वह दूर खड़ा हुआ इस घटना को देख रहा था। उस खाकी वर्दी वाले के हाथ में एक लाठी थी। वे लोग उस खेत के रखवाले की लाठी पर अपनी कुल्हाड़ी चलाना चाहते थे। उनका सरदार सफ़ेद टोपी में था। उसके मुँह में अधजली बीड़ी दबी हुई थी, जिसे जलाने का वह बार – बार प्रयास कर रहा था। इसी बीच उन लोगों ने खाकी वर्दी वाले की लाठी पर कुल्हाड़ी चला दी। लाठी , कुल्हाड़ी के पहले वार से ही दो हिस्सों में तब्दील हो गई। लाठी के टूटते ही वह ख़ाकी वर्दी वाला, उन टोपी और साफा बांधे हुए लोगों के समूह में शामिल हो गया। उसने अपनी जेब से लाइटर निकाल कर सरदार की अधजली बीड़ी को पुनः सुलगा दिया।
तब तक गन्ने का खेत नमक से पट चुका था। नमक की अधभरी बोरियां हवा में पतंग के सामान उड़ती दिखाई देने लगी। उड़ते-उड़ते सारी बोरियां बादलों से जा मिलीं। उन बोरियों के अंदर बचा कुचा नमक, बादलों को भी नमकीन कर चुका था।
तभी सरदार ने नमक से सने गन्नों को काटने का आदेश दिया। उसने अपनी जेब से लाल रूमाल निकाला, और खेत के रखवाले की टूटी हुई लाठी के दोनों टूटे हुए सिरों को आपस में जोड़ दिया। उसके साथियों ने मिलकर उस लाठी के एक सिरे में हँसिया टाँग दिया। खेत के बीचों बीच उस लाठी में लगे हँसिये को गाड़ कर, वे सभी एक साथ मिलकर अपने हाथ के नाखूनों एवं दांतों की सहायता से गन्नों को काटने में जुट गए।
कुछ ही देर पश्चात उन लोगों के नाखून एवं दाँत टूटने लगे। उनके हाथों एवं मुँह से निकलने वाला ख़ून, नमक लगे गन्नों पर टपकने लगा। वे सारे पीड़ा से बिलबिलाने लगे। परन्तु गन्नों को काटने का क्रम जारी रहा। उनके हाथों एवं मुँह में घाव बन गया। वेदना की तीव्रता जब चरम पर पहुंची तो उन्होंने टूटे दांतों एवं नाखूनों को उठाकर एक-दूसरे पर हमला करना प्रारम्भ कर दिया। वे अब खेत से निकल कर सामने बनी बस्ती के घरों में घुस गए और उन्हीं टूटे नाखूनों एवं दांतो से उन घरों में रहने वालों पर वार पर वार करने लगे।
थोड़े समय बाद उस बस्ती के लोगों की लाशें चारों तरफ पड़ी दिखाई देने लगी। उन लाशों से निकलने वाली आत्मा छत पर जाकर छुप गई। वे सारे लोग चिल्लाते, चीखते हुए मुँह से खून उगलते, उत्तपात मचा रहे थे। उन्हें लगता था कि उनके ऐसा करने से उनके घावों की वेदना कम हो जायेगी, परन्तु इसके उलट उनके घाव और अधिक खुल चुके थे। उनमें बदबूदार कीड़े पड़ चुके थे। उन्होंने फिर से कुल्हाड़ियां उठाई और उस अधजले  पेड़ को काटना शुरू कर दिया परन्तु जब भी वे उस पेड़ पर कुल्हाड़ी चलाते, पेड़ पर लगे हुए फल गिरने लगते।
तभी बादलों ने बरसना प्रारम्भ किया। बादलों से बरसने  वाली नमकीन बूँदे जब उनके घावों पर पड़ीं तब उनके दर्द की तीव्रता और अधिक बढ़ गई। आनन फानन में वे सभी कुल्हाड़ियों को फेंक कर पेड़ की ओट में छिपकर बारिश में भीगने से बचने लगे।
यह सब घटनाक्रम होते हुए एक बच्चा उसी खिड़की से लगातार देख रहा था। उसकी आँखों से खून टपकने लगा। उस बच्चे की मासूमियत खिड़की के रास्ते से निकल कर हवा हो गई। उसने अपने स्कूल बैग से “कलम” निकाल ली और खिड़की से बाहर कूद गया और दौड़ते हुए उन टोपी और साफा वालों के सरदार के सीने में उस “कलम” को घोंप दिया।

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