khubsurat(1)

खूबसूरत तन महत्व्पूर्ण है या खूबसूरत मन मूल्यवान खूबसूरत मन ईश्वर द्वारा प्रदत्त विरासत है जो प्राणी को सांसों
धड़कन के शारीरिक अस्तित्व के अहंकार से  अभिभूत कर आचरण कि संस्कृति संस्कार से बिमुख कर जीवन को भौतिकता
के चकाचौध के रास्ते पर धकेल देता है जिसमे रेगिस्तान कि मृग मरीचिका में स्वयं के अस्तित्व को खोजता इधर उधर
भगाता दौड़ता गुमनामी के अंधेरों में धाम तोड़ देता है ।मन कि खूबसूरती जीवन को मूल्यवान और उधेश्यपूर्ण सृजनात्म
जीवन के उजाले कि और जीवन के उत्कर्ष के उजाले कि और ले जाता है जो समाज लिये उपयोगी और धन्य धरोधर कि
तरह होती है।मन कि खूबसूरती ना कभी ढलती है ना ही कभी गुमनामी के अंधेरों में गम हो पाती है सदैव दुनियां में अपने
वर्तमान से भविष्य कि प्रेरणा का मार्ग दे जाती है।शारीरिक  खूबसूरती ईश्वर प्रदत्त होता है जो संभतः व्यक्ति को बिना
मोल या यूँ कहे कि कुछ मतों के अनुसार पूर्वजन्मार्जित कर्मों के आधार पर मिलता है जिसके बारे में व्यक्ति को पता
ही।नहीं होता है ।खूबसूरत मन कर्म योग के कर्म का परिणाम ईनाम है  जिसके लिये व्यक्ति को मेहदी कि तरह घिसना
पड़ता है और अनेको परीक्षाओं से गुजरना पड़ता है तब निखरती है ठीक उसी तरह कि परीक्षा मन के खूबसूरती कि होती
है तब  जाकर मन कि खूबसूरती जहाँ कि खूबसूरती बन उसे वर्तमान से भविष्य के लिए महत्वपूर्ण हिस्सा निर्धारित करती
है।श्रुति कि बदसूरती उसे विद्यालय में चिंपांजी नाम देती है जिससे श्रुति बिना क्रोधित या अपमानित होते हुए अपनी माँ
से भोलेपन से पूछती है माँ तुमने चिंपांजी देखा है माँ से यह सवाल वास्तव में श्रेया के खूबसूरत मन के व्यक्तित्व का
बालपन है ।।
श्रेया विद्यालय कि खूबसूरत छात्रा रहती है और आकर्षण सबके का केंद्र बानी रहती है अर्ध वार्षिक परीक्षाये सम्पन्न हो
चुकी थी क्लास में आकर अर्धवार्षिक परीक्षा में सर्वाधिक अंक पानेवाली श्रुति को ज्यो ही शाबाशी देकर बाहर निकलने
को होते है कही से उन्हें आवाज सुनाई देती है चिंपांजी क्रोध में पूछते है किसने कहा तो श्रुति का जबाब -::तब श्रुति का
कहना सर मेरे साथियों को मेरी शक्ल चिंपांजी जैसी लगाती है पर मुझे कोई कुछ भी कहे मैं बुरा नहीं मानती मेरे कारण
किसी को दण्डित ना करे मेरी आपसे यही प्रार्थना है::यह कथन श्रुति के निर्मल सुन्दर व्यक्तिव के व्यक्तित्व का प्रतिनिधित्व
करता है।श्रुति सदैव विश्वविद्याल टॉप करती रही उसने देश कि शीर्ष प्रतियोगी परीक्षा आई ए एस में भी सफलता प्राप्त

कर ली ।कालेज से श्रुति कि पार्टी में प्रिंसिपल का उद्बोधन ::मुझे गर्व है कि मैं उस कालेज का प्रिंसिपल हूँ जिसकी छात्रा
श्रुति रही है ::श्रुति के खूबसूरत छात्र जीवन का सफर औरों के लिये प्रेरणा है श्रेया उसके सामने पलंग पर अचेत लेती थी
श्रुति को विश्वास ही नहीं हो रहा कि श्रुति ही है इसी विश्वास के अतीत में श्रेया के साथ का कालेज का दिन उसके सामने
याद आ गया जब श्रेया के ऊपर श्रुति कि दृष्टि पड़ी श्रेया हड़बड़ा कर उठी अवसाद से घिरी श्रेया अपने जीवन के तमाम
अवसादों को बताती है हाइपर टेंसन मोटापा जो उसकी शारीरिक खूबसूरती को समाप्त कर चूका है और वह जीवन जीने
कि मशीन बन कर रह जाती है यहाँ कहानीकार वास्तव में खूबसूरत मन कि उपलब्धि को जीवन मूल्य परिभाषित करने
में साफल रहे है कहानी आज के परिवेश में जहाँ शारीरिक सुंदरता स्टेटस सिम्बल बन गया है मन कि सुंदरता कि और
आकर्षित करने में सफल है।

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