poem mere anubhaw

मिला मुझको बहुत कुछ
अपनी मेहनत लगन से।

मेरे अनुभवों को कोई न
क्या कभी छोड़ा पायेगा!
तपा हूँ आग की भट्टी में तो
कुछ बनकर ही निकला हूँ।
और फिर से जिंदगी में 
कुछ नया निश्चित करूँगा।।

भले ही जमानें ने हमें
ठोकर मार दी हो।

पर अपने लक्ष्य से मैं
कभी पीछे नही हटूँगा।
और अपने कदमों को
मंजिल तक पहुंचाऊँगा।
और अपनी मंजिल को
मेहनत लगन से पाऊँगा।।

करके जाऊँगा कुछ ऐसा
की जमानें वाले देखेंगे।

और अपने आप पर
वो भी शर्मिन्दगी देखेंगे।
यदि इरादे नेक हो तो
मंजिल निश्चित मिलती है।
और फिर से तेरी किस्मत
एक दिन जरूर चमकेगी।।

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