रश्मिरथी का सफल मंचन विट्स महाविद्यालय के विहंगम प्रेक्षागृह में किया गया। 
नाटक रश्मिरथी जिसका निर्देशन एवं नाट्य रूपांतरण लोकरंग नाट्य संस्थान के चिर परिचित नाम अमित कुमार शुक्ल ने किया।
रश्मिरथी राष्ट्रकवि रामधारी सिंह ‘दिनकर’ की अनुपम कृति है, जो खण्ड काव्य है एवं आधारित अंगराज कर्ण के जीवन की विभिन्न विषमताओं, आयामों एवं उतार – चढ़ाव पर। रश्मिरथी की काव्यात्मक श्रेष्ठता इतनी विस्तृत है कि जब कभी रश्मिरथी की पंक्तियों का पाठ होता, तब वातावरण अपने सामान्य स्वरूप में नही रह पाता। उन पंक्तियों का प्रभाव इतना गम्भीर है, कि जिन लोगो ने रश्मिरथी नही पढ़ी होती वे भी इस कृति की पंक्तियों का भरपूर रसास्वादन करते हैं।
इस लोकप्रिय काव्य नाट्य प्रस्तुति करने का जिम्मा अमित कुमार शुक्ल ने उठाया। हालाँकि देश भर में रश्मिरथी का मंचन विभिन्न तरीकों से होता ही रहता है। परन्तु सतना शहर में पहली बार काव्य नाटक करना   एक बड़ी जिम्मेदारी थी, जो निर्देशक के कंधों पर थी।
लोकरंग नाट्य संस्थान विगत कई वर्षों से रंगमंच को बढ़ावा देने के प्रयास में रत है। विभिन्न प्रकार के लगभग 112 नाटकों का मंचन इस नाट्य संस्थान द्वारा किया जा चुका है। इसी क्रम में रश्मिरथी लोकरंग समिति की पहली काव्य नाटक प्रस्तुति थी।
(न तज्ज्ञानम, न तच्छिल्प, न सा विद्या, न सा कला ।
न सौ योगो, न तत्त्कर्म नाट्येsस्मिन यन्नदृश्यते ।।)
               (१-११६)
“कोई ज्ञान, कोई शिल्प, कोई विद्या , कोई कला कर्म, कोई योग , कोई भी कर्म ऐसा नही है जो नाट्य में ना दिखाई देता हो।”
निर्देशक ने नये प्रयोगों के साथ – साथ नई प्रतिभा की तलाश कर उन्हें पंद्रह दिवसीय रंगमंचीय कार्यशाला में रंगकर्म के गुर सिखाए। कलाकारों को इस उपक्रम में तहत नाट्य शास्त्र का परिचय, वॉइस एंड स्पीच, रस थ्योरी, एक्टिंग, थिएट्रिकल म्यूजिक, बॉडी मूवमेंट और योगा का अभ्यास कराया गया।
कार्यशाला के सम्पन्न होने के उपरांत, नाटक रश्मिरथी पर कार्य शुरू हुआ।
इस कार्यशाला में राष्ट्रीय नाट्य विद्यालय से प्रशिक्षित हम सभी के मार्गदर्शक एवं गुरु श्री द्वारिका दाहिया , लोकरंग समिति की निर्देशिका श्रीमती सविता दाहिया एवं मध्य प्रदेश नाट्य विद्यालय से प्रशिक्षित श्री विकास सोनी जी का मार्गदर्शन रहा।
नाटक के कलाकारों एवं उनके चरित्रों की बात की जाय तो
 लोकरंग के नये कलाकार आकार कुशवाहा ने स्वयं को कर्ण के किरदार में बेहद ही कम समय में जिस प्रकार ढाला यह उनके अंदर की उभरती प्रतिभा को समझने के लिए पर्याप्त है। उन्होंने अपने अभिनय से मुख्य अतिथियों एवं तमाम दर्शकों को गदगद किया।  अब उनसे आगे काफी उम्मीदें बन्ध गईं हैं जिनपर वे खरे उतरेंगे इस बात का पूर्णतयः विश्वास है।
राजकुमारी कुन्ती के किरदार में नई प्रतिभा, समीक्षा पटेल ने जीवंत किया। उन्होंने भी कम समय में बहुत ही जल्द किरदार के टोन को पकड़ा। राजकुमारी कुंती के चरित्र को उन्होंने बेहतरीन ढंग से निभाया। सूर्यदेव प्रकाश नारायण त्रिपाठी के साथ उनके दृश्य ने भी काफी वाह वाही बटोरी।
परशुराम के किरदार को अनुराग श्रीवास्तव ने निभाया। कहते है किसी भी उपक्रम में शामिल होने या नई कला सीखने के लिए उम्र कभी बन्धन नही बनती। यह बात अनुराग जी के साथ सही साबित होती है। उनकी उम्र अवश्य सामान्य रंगकर्मियों से जरा सी ज्यादा है परन्तु अभिनय करने का जज़्ज़बा अभी भी जवान है। वे कार्यशाला से लेकर नाटक के मंचन तक इस बात को साबित करते हुए आये हैं। उन्होंने परशुराम – कर्ण के दृश्य में जिस प्रकार का अभिनय किया वह काबिले तारीफ था। सीखने की इच्छा एवं कुछ कर गुजरने की चाह उनके अंदर समाहित है, उम्मीद है सफ़र में गाड़ी बहुत आगे तक जायेगी।
कृपाचार्य के चरित्र में सागर कुमार सेन रहे। कम उम्र में उन्हें कृपाचार्य जैसे अनेक प्रतिभाओं से रत प्रकांड आचार्य का चरित्र निभाने का अवसर मिला, जिसे उन्होंने बेहतरीन ढंग से भुनाया।
द्रोणाचार्य की भूमिका में विभम तिवारी रहे। उन्होंने भी द्रोणाचार्य के चरित्र को अपने अभिनय के बल पर चरितार्थ किया।
इंद्र का चरित्र राम बहादुर दाहिया ने निभाया। इंद्र पहले विप्र बनकर कर्ण के पास कवच और कुंडल मांगने जाता है, फिर कर्ण जब अपना कवच और कुंडल निकाल कर उन्हें भिक्षा देता है, तब इंद्र का हृदय पसीज उठता है। वे अपने मूल स्वरूप में आकर उसे अपना दिव्यास्त्र भेंट करते है।
रामबहादुर ने इंद्र के चरित्र के इन दोनों प्रारूपों को समझकर उनका सटीक चित्रण अपने अभिनय में किया है। विप्र बनकर जहाँ वे चालाक दिखाई देते हैं, फिर इंद्र बनकर वे ग्लानि से भर उठते हैं।
महारानी कुन्ती का चरित्र पूजा सेन ने निभाया है। पूजा सेन रंगमंच की मंझी हुई अनुभवी कलाकारा है। राष्ट्रीय नाट्य विद्यालय वाराणसी से उन्होंने प्रशिक्षण प्राप्त किया है। उनके अभिनय पूर्व के नाटकों में भी अद्भुत रहा है। इस नाटक में महारानी कुंती के चरित्र मे है।
दृश्य कुंती और उनके प्रथम पुत्र कर्ण का है। कर्ण जिसका जन्म तब हुआ जब कुंती अविवाहित थी। लोक लाज के भय से उन्होंने उसे एक पेटी में रखकर नदी में बहा दिया था। अब इस घटना के कई वर्ष बीत जाने के उपरांत कुंती ग्लानि एवं पश्चाताप से भरी हुई है। वे कर्ण को उसके भाइयों ( पांडवों ) के पास ले जाना चाहती है। नाटक के इस दृश्य में पूजा सेन ने कुंती के किरदार को सजीव किया।
अर्जुन के चरित्र में शिवा गुप्ता रहे। शिवा नई उभरती हुई प्रतिभा है। उनके पास दृश्य अवश्य कम थे परन्तु उन्होंने अपनी उपस्थिति का प्रमाण दर्शकों को दिया।
सूत्रधार किसी भी नाटक में अहम भूमिका में होते हैं। कहानी को कहना एवं आगे बढ़ाने हेतु निर्देशक सूत्रधारों का प्रयोग अपने नाटकों में करता है। नाटक रश्मिरथी में सूत्रधार की भूमिका में हर्षवर्धन सिंह परिहार एवं रूपाली कृष्णानी रहे। दोनों अच्छे कलाकार हैं एवं पूर्व में भी कई नाटको में अभिनय का जौहर दिखा चुके हैं । दोनों सूत्रधारों  ने सफलता पूर्वक  नाटक को आगे बढ़ाया एवं नाटक की वस्तुस्थिति को स्पष्ट किया। हर्ष ने कोरस एवं फिजिकल मूवमेंट में भी अपनी प्रतिभा का प्रदर्शन किया।
कृष्ण की भूमिका में वंशिका श्रीवास्तव रही। वंशिका बेहद ही कम उम्र की होनहार अदाकारा हैं। पूर्व के कुछ नाटको में अभिनय के साथ उनके अंदर सीखने एवं सीखकर उसका इम्प्लीमेंट अपने ऊपर करने की अद्भुत प्रतिभा है। कृष्ण जैसे विशालकाय, मनमोहक,विध्वंसक एवं रणनीतिकारक जैसा चरित्र कम उम्र में निभाना बेहद ही मुश्किल कार्य है। परन्तु वंशिका ने जिस लगन एवं मेहनत के साथ कृष्ण के मैनरिज्म, विचारधारा एवं व्यक्तित्व को परख कर उनका अभिनय कर दिखाया वह वाकई काबिले तारीफ है। उनसे आगे काफी उम्मीदें हैं।
दुर्योधन की भूमिका में मयंक अग्निहोत्री, स्वयं मैं रहा।  अपने अभिनय के विषय में तो मै नही लिख सकता परन्तु अंतर्मन की उठापटक के विषय में लिखना चाहूँगा की। आदरणीय द्वारिका दाहिया जी एवं निर्देशक अमित कुमार शुक्ल ने जो हिम्मत एवं हौसला हम सभी को दिया, उससे उत्साह चरम पर था। दुर्योधन का चरित्र निभाना मेरे लिए एक अच्छा अनुभव रहा। यह मेरा पहला रंगमंचीय अभिनय था जिसका मैंने भरपूर आनन्द उठाया। दर्शकों की सकारात्मक प्रतिक्रिया से हौसला बढ़ा है। परन्तु मैं अभी नवीन रंगमंचीय विद्यार्थी हूँ, जिसे अभी काफी लंबा सफर तय करना है।
इस काव्य नाटक को निर्देशक अमित कुमार शुक्ल ने संगीतबद्ध कर जिस तरह से इसकी प्रस्तुति की, उससे दर्शक बेहद प्रभावित दिखे।  संगीत परिकल्पना स्वयं निर्देशक की रही, जिसमे उनके सहयोगी ऐन्थोनी रॉबर्ट , अमन सोनी एवं यादवेंद्र प्रजापति , दिव्यांश दाहिया रहे।
मंच सज्जा शुभम जैन की रही, उनके कार्य की तारीफ सभी नाटकों में की जाती रही है। वे लोकरंग समिति में आर्ट एंड क्राफ्ट के साथ साथ पूर्व के नाटकों में अभिनय में भी हाथ आजमा चुके हैं। नाटक रश्मिरथी में प्रयोग की गई प्रॉपर्टीज का निर्माण शुभम जैन ने ही किया एवं  सेट के निर्माण में उनके सहयोगी अभिलाष सोनी रहे।
फोटोग्राफी, ब्रोशर,पोस्टर एवं वीडियोग्राफी की जिम्मेदारी रोहित खिलवानी पर थी। वे लोकरंग समिति के प्रतिभावान रंगकर्मी हैं, इस बार उन्होंने बैकस्टेज अपनी जिम्मेदारियों का सफलता पूर्वक निर्वहन किया।
रूप सज्जा अमित शुक्ल, अमर राज गुप्ता, रूपाली कृष्णानी एवं वंशिका श्रीवास्तव के द्वारा की गई। नाटक में कलाकारों के मेकअप एवं गेटअप की विशेष तारीफ़ की गई।
कई दर्शकों के लिए नाटक देखने का यह पहला अवसर था। नाटक के दौरान संगीत, गीत, कोरस आदि के व्यवस्थित तारतम्य से वे अत्यधिक प्रभावित हुए। इसका एक बड़ा श्रेय प्रकाश परिकल्पना को भी जाता है, जिसे हम सभी के मार्गदर्शक एवं गुरु आदरणीय द्वारिका दाहिया जी ने डिजाइन किया एवं संचालन में देवेंद्र प्रताप सिंह एवं अनिल वर्मन रहे।
अन्य सहयोगियों में अक्षय वालेजा एवं नीलेश सिंह परिहार रहे।
अंत में यही कहना चाहूंगा कि इस महीने भर की सुखद यात्रा का हम सभी ने आनन्द उठाया। बहुत कुछ ऐसा सीखा ,जिसका सकारात्मक प्रभाव हमारी आगे के जीवन में होना तय है। अमित कुमार शुक्ल ने अपने प्रथम निर्देशक की गहरी छाप छोड़ी है, अब उनसे आगे काफी उम्मीदें बन्ध चुकी हैं। उम्मीद है वे अपनी नई प्रस्तुति लेकर जल्द ही उपस्थित होंगे। हालाँकि नाटक को और अधिक कसा जा सकता है एवं इसमें अन्य नये प्रयोग करने की भी खुली जगह है, उम्मीद है निर्देशक इस पर अवश्य विचार करेंगे एवं आने वाली रश्मिरथी की प्रस्तुति में और अधिक उत्कृष्ठता का संयोजन होगा ऐसी कामना है।

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