“बैरी बेईमान … बागी सावधान”
 निर्देशक – अभिषेक चौबे। लेखन – अभिषेक चौबे, सुदीप शर्मा। कास्ट – मनोज बाजपेयी, आशुतोष राणा, सुशांत सिंह राजपूत, भूमि पेडनेकर, रणवीर शौरी, जतिन सरना, सत्य रंजन।                   

भारतीय फिल्म जगत के इतिहास में डकैतों एवं बागियों के जीवन पर आधारित फिल्म बैंडिट क्वीन के बाद सोनचिरैया अब तक की सबसे बेहतरीन फिल्म है। मुझे नही लगता कि अन्य कोई फिल्म इन दोनों फिल्मों के मुकाबले की आज तक बनाई गई है। सोनचिरैया फिल्म नही एक यात्रा है जो चंबल के बीहड़ो में रहने वाले सरकारी तंत्र से नाराज एवं प्रतिशोध की ज्वाला  मन में जलाये हुए बागियों से शुरू होती है जिनका सरदार मान सिंह है। कई मायनों में यह एक अलग तरह की फिल्म है जिसका कांसेप्ट एवं अभिनय दोनों मल्टीलेयर्ड हैं। इस फिल्म की कहानी सामाजिक असमानता, जातिभेद, यौन शोषण, पुरुष प्रधान समाज, बदला एवं पश्चताप पर आधारित है।
” ग्लानि इंसान को अंदर ही अंदर खोखला कर देती है जो कठोर से कठोर इंसान को जमीन पर लाकर रख देती है।” 
अंग्रेजी में एक कहावत है,”The Little guilt goes a long way”यह फिल्म इस कहावत को सच साबित करने में सफल रही है। 
फिल्म का लेखन एवं निर्देशन अभिषेक चौबे ने किया है जिन्होंने इश्किया और ओमकार जैसी फिल्मों में भी पहले काम किया हुआ है। इस फिल्म को जिस तरह लिखा एवं निर्देशित किया गया है उसके लिए अभिषेक चौबे की प्रसंशा होनी ही चाहिए। 
यह कोई आसान फिल्म नही थी,  जिसे क्रोमा लगाकर शूट किया गया हो, या जिसमें डाकू मुजरा देखने घोड़े पर चढ़ कर आते हो। यह चंबल की पृष्ठभूमि पर बनी वहाँ की धूल मिट्टी, पहाड़ो, गांवो, नदी तालाब से लेकर वहाँ रहने वाले इंसानों की मनोस्थिति को भी परिभाषित करती है। फिल्म का लेखन काफी दमदार है जिस पर काफी मेहनत की गई है यह साफ़ दिखता है। 
डायलॉग्स में बुंदेलखंडी बोली का अधिक प्रयोग किया गया है जिसमे गालियां भी शामिल है। फिल्म का स्क्रीनप्ले फिल्म की जान है और वही इस फिल्म को अलग स्तर की फिल्मों में शामिल करता है। फिल्म की शूटिंग धौलपुर आदि चंबल के स्थानों में की गई है जो कहानी एवं किरदारों को जीवंतता प्रदान करती है और इसके लिए फिल्म के सिनेमेटोग्राफर अनुज राकेश धवन बधाई के पात्र है जिनके निर्देशन में फिल्म की सिनेमेटोग्राफी फिल्म की कहानी आसानी से समझने में मदद करती है और प्रभावित करती है।
 फिल्म वास्तविकता से बंधी हुई प्रतीत होती है जिसका हर अभिनेता अपने किरदार को जीता हुआ दिखता है। यदि अभिनय की बात की जाए तो फिल्म का सबसे अच्छा भाग यह रहा है कि फिल्म के अधिकतर किरदारों को रंगमंच कर्मीयों ने ही निभाया है। मनोज वाजपेयी , आशुतोष राणा जैसे देश के महान अभिनेताओं ने फिल्म में जो काम किया है वो कई सालों तक याद रखा जायेगा।
 फिल्म में मान सिंह जो ठाकुर गैंग का सरदार है उसे मनोज बाजपेयी ने निभाया है, यही किरदार वे शेखर कपूर द्वारा निर्मित फिल्म बैंडिट क्वीन में भी निभा चुके थे। पर सोनचिरैया में मान सिंह का किरदार छोटा एवं महत्वपूर्ण है। यह गेस्ट अपीरियंस कहा जा सकता है। जिससे दर्शक काफी हद तक नाराज भी होते है, क्योंकि वे मनोज वाजपेयी जैसे अभिनेता को अधिक समय तक स्क्रीन पर देखना चाहते है। वही आशुतोष राणा पुलिस अफसर के किरदार में है, जिनकी डायलॉग डिलीवरी एवं अभिनय कौशल ने मन के मोर नचा कर रख दिये है। व्यक्तिगत बदले की भावना लिए फिरने वाला एक पुलिस अफसर जो मान सिंह के गिरोह का सफाया करने चंबल में उतरा है पर वह बदला क्यों लेना चाहता है यह दिलचस्प है और यही फिल्म का प्लाट भी कहा जा सकता है, जिसे जानने के लिए आपको फिल्म देखना चाहिए। सबसे बड़ा धमाका जिन्होंने अपने अभिनय में किया है वे है लीड रोल निभाने वाले भूमि पेडनेकर एवं सुशांत सिंह राजपूत। भूमि ने इंदुमती के किरदार को निभाया है जो एक बच्ची जिसका नाम सोनचिरैया है एवं उसका यौन शोषण किया गया होता है उसे बचाने के लिए डकैतों के गिरोह से मदद माँगती है एवं उनके साथ ही शामिल हो जाती है। सुशांत सिंह एवं उनके कुछ साथी आत्मसमर्पण करना चाहते है। सुशांत  फिल्म में लाखन सिंह के किरदार को निभा रहे है जो गिरोह के सरदार दद्दा मान सिंह की तरह ही पश्चाताप की अग्नि में जल रहा होता है। फिल्म के कई दृश्यों में दोनों को अपने किये किसी पुराने कृत्य को सोचते हुए पश्चाताप करते दिखाया जाता है और यही इस फिल्म की शुरुआत एवं अंत का कारण बनता है।
सुशांत एवं भूमि दोनों ने जीवटता के साथ अपने किरदारों को निभाया है साथ बुंदेली के संवाद उनके अभिनय में चार चांद लगा देते है। 
रणवीर शौरी ने वकील सिंह के किरदार को निभाने में कड़ी मेहनत की है। फिल्म के दौरान यह स्पष्ट दिखाई देता है की रणवीर ने एक अलग स्तर का अभिनय इस फिल्म में किया है।
सेक्रेड गेम्स फ्रेम जतिन सरन ने अपने छोटे एवं दमदार रोल को संजीदगी से निभाया है। उनके डायलॉग्स कम होने के बावजूद वे दर्शकों के बीच अपना स्थान रखने में सफल रहे हैं।
ये सारे अभिनेता मुम्बई के आरामदायक माहौल को छोड़ कर जिस प्रकार चंबल के बीहड़ो में रहने वाले लोगो में खुद को परिवर्तित करते है वह काबिले तारीफ है। आखिर में कहा जाए तो फिल्म का टेस्ट पुरानी रशियन फिल्मो की तरह भी दिखता है जिसमे भावनाओ को कहानी पर हावी नही होने दिया जाता। कई निर्देशक फिल्म के इमोशनल सीन को काफी लंबा प्रदर्शित करते है, इस जद्दोजहद में कई बार दर्शक उस सीन के प्रभाव में बंध जाते है और कहानी के बारे में सोचना भूल कर इमोशनली ढंग से फिल्म से जुड़ जाते है, पर सोनचिरैया फिल्म के निर्देशक ने फिल्म में काफी बेहतरीन काम किया है, उन्होंने इस तरह के दृश्यों को फिल्माया जरूर है पर लम्बा नही खींचा जिससे दर्शक फिल्म की कहानी से बंधे रहते है और इमोशनल होते हुए भी फिल्म के कांसेप्ट से जुड़े रहते है।
फिल्म से सम्बंधित खामियों की बात की जाय तो, फिल्म काफी लंबी है बीच बीच में दर्शकों का इंट्रेस्ट फिल्म से खत्म होता हुआ दिखता है, पर जिस पृष्ठभूमि पर यह फिल्म बनी है वहाँ के दर्शक फिल्म को बेहद पसंद करेंगे पर महानगरों के दर्शक फिल्म से बोर भी हो सकते है। दूसरा बुंदेली बोली का अत्यधिक प्रयोग भी महानगर के दर्शकों को निराश करता है क्योंकि कुछ संवाद इतनी शुद्ध बुंदेली बोली में है जिसे समझने के लिए दर्शकों को सबटाइटल के भरोसे रहना होता है।इसके अलावा फिल्म बेहतरीन है एवं एक बार जरूर देखी जा सकती है। फिल्म को समीक्षकों ने भी बेहद पसंद किया है और यह 2019 की सर्वश्रेष्ठ फिल्मों में से एक है। 
फिल्म से सम्बंधित खामियों की बात की जाय तो, फिल्म काफी लंबी है बीच बीच में दर्शकों का इंट्रेस्ट फिल्म से खत्म होता हुआ दिखता है, पर जिस पृष्ठभूमि पर यह फिल्म बनी है वहाँ के दर्शक फिल्म को बेहद पसंद करेंगे पर महानगरों के दर्शक फिल्म से बोर भी हो सकते है। दूसरा बुंदेली बोली का अत्यधिक प्रयोग भी महानगर के दर्शकों को निराश करता है क्योंकि कुछ संवाद इतनी शुद्ध बुंदेली बोली में है जिसे समझने के लिए दर्शकों को सबटाइटल के भरोसे रहना होता है।इसके अलावा फिल्म बेहतरीन है एवं एक बार जरूर देखी जा सकती है। फिल्म को समीक्षकों ने भी बेहद पसंद किया है और यह 2019 की सर्वश्रेष्ठ फिल्मों में से एक है। 

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