Jingoism से दूर, प्रेरणा एवं मनोरंजन से भरपूर फिल्म – “मिशन मंगल”
फिल्म अच्छी बनाई गई है। जिस तरीके से तथ्यों एवं घटनाओं को दिखाया गया है वह वाक़ई अध्भुत है। फ़िल्मी कसावट से भरपूर एवं दर्शकों की हृदय गति को बढ़ा देने वाली यह बेहतरीन फिल्म है। 
इसरो के 50 साल पूरे होने पर यह फिल्म उन्हें ट्रिब्यूट की गई है। यह काफी अच्छी कोशिश थी। हमारे देश के असली हीरो हमारे वैज्ञानिकों को अधिक तवज्जो नही मिल पाती। हम आम जन मानस यह नही जानते कि हमारे वैज्ञानिक किस तरह दिन रात एक कर भारत के नाम को विश्व पटल पर अंकित कराने के प्रयास में जुटे रहते हैं। 
हालाँकि फिल्म में कुछ जबर्दस्ती के सीन रखे गए हैं। दूसरा यह फिल्म 2 घण्टे की है। फ़िल्म की लंबाई को बढ़ाया जा सकता था और अन्य उपयोगी जानकारी साझा की जा सकती थी। 
फिल्म की स्टारकास्ट ने अच्छा अभिनय किया है। यह हीरो ओरिएंटेड फिल्म नही है,  बल्कि महिला सशक्तिकरण का एक सशक्त उदाहरण है। स्टारकास्ट बड़ी होने की वजह से सभी के हिस्से कम सीन आये पर जितने भी आये सभी दुरुस्त थे। सभी ने प्रभावित किया।
फिल्म में शामिल गानों की बात की जाय तो वे फ़िल्म की कहानी को आगे बढ़ाने का प्रयास करते है और काफी हद तक सफल भी रहते हैं। हालाँकि फिल्म में विद्या बालन के पति का किरदार निभा रहे संजय कपूर ( अनिल कपूर बीटा वर्जन ) का एक पुराना गीत ” अँखिया मिलाऊँ” जबरन रखा गया है। यह फ़िल्म की रोचकता में खलल डालता है। हालांकि यदि भारत या अन्य देशों में संजय कपूर जी के फैन्स होंगे तो उन्हें यह जरूर पसन्द आएगा। पर गीत का एक अंतरा ही रखा गया है जो दर्शको के समय का अत्यधिक समय तक शोषण नही करता। फिल्म का बैकग्राउंड स्कोर जबर्दस्त है। यह फिल्म के साथ साथ कहानी को कहने में सफल साबित हुआ है। कहानी की गति, ठहराव, उत्साह, गम्भीरता, क्रोध आदि को सही परिमार्जन में प्रस्तुत करता है। जिससे दर्शक खुले मन के साथ फिल्म से जुड़ पाते हैं और फिल्म का आनन्द ले पाते हैं
अक्षय कुमार और विद्या बालन ने जिस तरह इंडियन होम साइंस का उदाहरण देकर इस प्रोजेक्ट पर काम शुरू किया मुझे नही लगता ऐसा वास्तव में हुआ होगा। यह शायद फिक्शनल दृश्य फिल्मीयता को बढाने और दर्शको को इंगेज रखने के लिए फिल्म में रखा गया होगा।
फिल्म देखने लायक है । इसके एक सीन में पूर्व राष्ट्रपति आदरणीय अब्दुल कलाम साहब एवं विज्ञानी सतीश धवन जी की एक पुरानी तस्वीर दिखाई गई है और उन्हें रॉकेट बनाते दिखाया गया है, जिसे वे साइकल और बैलगाड़ी में यहाँ से वहाँ ले जाते दिख रहे हैं, साथ ही यह बताया गया कि इसका परीक्षण एक चर्च से किया गया था। 
यह दृश्य वास्तव में में इस फिल्म के सर्वश्रेष्ठ हिस्सो में से एक है और भारतीय लोगों के हृदयों में देश के इन दिनों महान वैज्ञानिको के प्रति आदरभाव बढ़ाने वाले हैं। इस फिल्म के तुरंत बाद मैं समय निकाल कर मेरी प्रिय पुस्तक “अग्नि की उड़ान” को पुनः पढ़ूंगा। 
मेरी तरफ से फिल्म को 5 में से 3.5 स्टार….

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