फिल्म बाहुबली ने भारतीय सिनेमा इतिहास को अलग मुकाम पर ले जाने का प्रयास किया था जिसमे फिल्म काफी हद तक सफल भी साबित हुई थी। बाहुबली फिल्म के स्टार रहे, दक्षिण भारतीय फिल्म इंडस्ट्री के जाने माने अभिनेता प्रभास की लगभग दो वर्षों के इन्तजार के बाद आई उनकी मच अवेटेड फिल्म ” साहो ” जिसका फ़िल्मी बजट तकरीबन 350 करोड़ के आस पास का रहा वह दर्शकों की अपेक्षाओं पर खरी उतरने में नाकामयाब रही। एक दर्शक होने के नाते इस फिल्म ने व्यक्तिगत रूप से मुझे बेहद निराश किया। फिल्म दर्शकों को मनोरंजन प्रदान करने के बजाय कंफ्यूज करने में ज्यादा सफल साबित होती है। साहो जैसी फिल्मों की टिकट भी महँगी रहती है। फिल्म निर्माताओं का यह फर्ज बनता है कि दर्शक जो इतनी उम्मीद और इन्तजार के साथ फिल्म की टिकट खरीद कर फिल्म देखने जाते है तो उनके साथ पूरा न्याय होना ही चाहिए। उन्हें विशुद्ध मनोरंजन की प्राप्ति होनी चाहिए। जिससे फिल्म भी अच्छा बिजनेस करे और दर्शको को भी सन्तुष्टि मिल सके। पर कई बार फिल्म निर्माता और निर्देशक दर्शकों को बेवक़ूफ़ बनाने से भी बाज नही आते। फिल्म रेस 3 इसका सशक्त उदाहरण रही है। जिसने बेवक़ूफियत की सारी हदें पार कर दी थी। फिल्म में विजुअल इफेक्ट्स की भरमार होने से फिल्म महान नही बन जाती ना ही वह फिल्म अच्छा बिजनेस करने में सफल साबित होती है।
दर्शक अब समझदार है उसे विजुअल इफेक्ट्स की आड़ में टोपी नही पहनाई जा सकती। 
फिल्म साहो में अत्यधिक मात्रा में बेवजह के विजुअल इफेक्ट्स होने की वजह से फिल्म की कहानी अता पता लापता हो जाती है। कई बार तो ऐसा लगता है कि डायरेक्टर सुजीत ने फिल्म में हॉलीवुड टच देने के लिए सस्पेंस का अच्छा तड़का डाला है पर फिल्म के आगे बढ़ने के साथ यह संस्पेंस उबाऊ साबित होने लगता है। दर्शक इंटरवल के पहले और क्लाइमैक्स सीन में ही फिल्म से जुड़ पाते हैं बाकी तो फिल्म के स्क्रीनप्ले की लंबाई और जबर्दस्ती के दृश्यों की वजह से दर्शक कहानी ढूंढने में ही व्यस्त रहते है ।किसी फिल्म में जितने भी दृश्य फिल्माए जाते हैं, वह फिल्म की कहानी को कहने और आगे बढाने में सहायक होते है पर डायरेक्टर की सोच यह रहती है कि अगर फिल्म में कुछ ऐसे दृश्य जिनका कहानी को कहने या आगे बढ़ाने में कोई रोल ना हो पर उससे फिल्म की लंबाई और सुंदरता बढ़ाई जा सके तो वह ऐसा करके अपने पैर में खुद कुल्हाड़ी मारने का काम करता है। साहो में भी जबर्दस्ती के सीन को जोड़ा गया है। जिसका फिल्म की कहानी से कोई सम्बन्ध नही समझ आया। फिल्म के गाने जिस तरह से जबरदस्ती फिट किये गए है वह दर्शको का मानसिक शोषण ही करते हैं। फिल्म के सारे गीत औसत है। स्क्रीनप्ले और राइटिंग कमजोर लगी । पर बैकग्राउंड म्यूजिक अच्छा है। फिल्म में कहानी पर अधिक ध्यान दिया जाता तो यकीनन फिल्म अच्छी साबित हो सकती थी। कहानी कोई नई नही है व्यक्तिगत स्वार्थ की लड़ाई और ब्लैक बॉक्स को ढूंढने में व्यस्त फ़िल्मी कैरक्टर । फिल्म में प्रभास के कैरक्टर को जस्टिफाई करने पर भी जोर दिया गया है जो इंट्रेस्टिंग है पर उतना प्रभाव नही छोड़ता।
दूसरी बात यह फिल्म दक्षिण भारतीय फ़िल्मी दर्शको को भी निराश करेगी। क्योंकि टॉलीवुड फिल्म इंडस्ट्री जिस तरह की फिल्मों का प्रोडक्शन कर रहा है वह काबिले तारीफ़ है। कई बॉलीवुड सितारों का कैरियर भी साउथ की फिल्मो को रीक्रिएट करने से सफल हुआ है। 
प्रभास बहुत ही अच्छे अभिनेता है। उन्होंने कई बार अपने अभिनय से हमे प्रभावित किया है। इस फिल्म में एक्शन दृश्यों में प्रभावी लगे हैं। बाकी के एक्टर्स में चंकी पांडे ही अपनी छाप छोड़ पाते है। अन्य लोगो का काम औसत है। फिल्म की अभिनेत्री श्रद्धा कपूर ने भी ठीक ठाक परफॉर्मेंस दी है।

मेरी तरफ से इस फिल्म को 5 में से 2.5 स्टार
स्टार कास्ट – प्रभास, श्रद्धा कपूर, चंकी पांडे, जैकी श्रॉफ, नील नितिन मुकेश, अरुण विजय, महेश मांजरेकर, मंदिरा बेदी, टीनू आनंद, एवलिन शर्मा, मुरली शर्मा आदि।
डायरेक्शन एवं राइटिंग – सुजीत
म्यूजिक – शंकर , एहसान एवं लॉय, तनिष्क बागची, बादशाह , गुरु रंधावा।
सिनेमेटोग्राफी – माधी
रनिंग टाइम – 170 मिनट

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One thought on “मूवी रिव्यू : साहो – दर्शकों की अपेक्षाओं का दुःखद अंत”

  1. बहुत सुंदर सटीक विवेचना

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