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मुक्ति भवन (Hotel Salvation)
निर्देशक – सुभाशीष भटियानी
कलाकार – आदिल हुसैन, ललित बहल,

आदिल हुसैन एवम ललित बहल द्वारा अभिनीत इस फ़िल्म में पिता , पुत्र के संबंध एवं भारत में अंतिम समय आने पर किस तरह बुजुर्ग लोग मुक्ति पाने के लिए काशी में मुक्ति भवन पर रहकर देह त्याग की इच्छा रखते हैं उस कांसेप्ट को दिखाया गया है।यह एक गम्भीर क़िस्म की फिल्म में जो कमर्शियल सिनेमा के पैमानों को धता बताती है एवं अपना अलग मुकाम बनाती है।फिल्म का स्क्रीनप्ले राइटिंग कमाल का है, दर्शकों के मन मस्तिष्क को फ़िल्म की कहानी के साथ जोड़कर रखता है।
इस सब्जेक्ट पर कई सारी फिल्में बन चुकी हैं। पर उनमें यह सबसे बेहतरीन फिल्म है।

आदिल हुसैन साहब एवं ललित बहल मंझे हुए कलाकार है पर उनके अलावा फ़िल्म के अन्य सहकलाकारों ने भी उत्कृष्ठ अभिनय किया है जिससे यह फ़िल्म और अधिक वास्तविकता से परिलक्षित होती है। मुक्तिभवन में भी जिस तरह नियमों का उल्लंघन होता है कि 14 दिन के बाद भवन का कमरा खाली करना होता है पर कुछ पैसे देकर वहाँ रुका जा सकता है। इस देश में करप्शन सिर्फ सरकारी ऑफिस तक सीमित नही है वह मुक्तिभवन जैसे मुक्ति के स्थान पर भी अपनी जड़ मजबूत कर चुका है।

फ़िल्म हमे यह भी दिखाती है कि किस तरह की ज़िंदगी बुजुर्गों की हो जाती है जब वे शारीरिक रूप से कमजोर हो जाते हैं। तब वे परिवार के अन्य सदस्यों के गले में अटकने वाले मछली के कांटे की तरह बन जाते है। जिनसे उन्हें ढेर सारी शिकायतें होती है।

परिवार के अन्य सदस्य अपनी निजी जिंदगी में इतने मशगूल हो जाते है कि उन्हें उस बूढ़े बरगद की कोई खबर नही रहती जिसकी वे शाखाएँ हैं।
पर देर सवेर जब उन्हें उनकी एहमियत का एहसास होता है तब वे सारे ग्लानि से भरे समंदर में उल्टा तैरने लगते हैं परन्तु तब तक साहिल काफी दूर निकल चुका होता है। पर जीवन इतना सरल कभी नही रहा। परिस्थितियां और वक़्त के आगे घुटने टेक देना इंसान की मजबूरी बन जाती है।

यही किरदार आदिल हुसैन साहब ने निभाया है दर्शक उन्हें उहापोह में फंसा देख कर उनके किरदार से नफरत नही कर पाते बल्कि सहानुभूति के साथ उससे जुड़ते हैं।
फ़िल्म उन बूढ़े लोगों की सहनशक्ति एवं त्याग को भी दिखाती है। पर मुक्तिभवन का कॉन्सेप्ट मुझे कभी समझ ही नही आया। मैंने कई विद्वानों से इस पर चर्चा की उन्होंने भी कभी सकारात्मक प्रतिक्रिया इस पर नही दी।

मुक्तिभवन , मुक्ति का स्थान नही हो सकता। पर इसका एक अपना इतिहास है और यह महत्वपूर्ण है। यही फ़िल्म मुक्तिभवन हमें देखने को मिलता है।

ट्रेलर: मुक्ति भवन (Hotel Salvation)

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3 thoughts on “मूवी रिव्यू : मुक्ति भवन (Hotel Salvation)”

  1. थोड़ी पुरानी फ़िल्म पर अच्छी फिल्म सटीक समीक्षा

  2. फ़िल्म जैसी है, उसके अनुरूप समीक्षा और बेहतर हो सकती थी। फिर भी अच्छी कोशिश। बधाई।

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