मरजावां फ़िल्म की पटकथा 80 के दशक की सी है। ऐसी कुछ फिल्में अनिल कपूर, सनी देओल और जैकी श्रॉफ ने भी की थी।  अब लगता है, लगभग तीन दशक बाद सिद्धार्थ मल्होत्रा ​​की बारी है। फ़िल्म मरजावां का सेट 80 के दशक की मसाला फिल्म का फार्मूला जैसा है। फ़िल्म में एक लड़का है अनाथ जो स्थानीय बस्ती का देवता है। यह लड़का बड़ा होकर क्राइम लॉर्ड की पेशी करता है, लेकिन उसका दिल सोने का सा शुद्ध 24 कैरेट है।  मरजावां में एक दृश्य है जिसमें एक किशोर लड़की के कौमार्य के लिए बोलियों को बुलाया जाता है। सिद्धार्थ मल्होत्रा ​अनाथ (नासिर) द्वारा एक बच्चे के रूप में एक अनाथ द्वारा उठाया गया अनाथ है।  अन्ना ने रघु के लिए जो विश्वास किया है वह विष्णु (रितेश देशमुख), अन्ना के तीन फुटिया  के साथ भी अच्छा नहीं बैठता है। विष्णु का मानना ​​है कि रघु ने अपने पिता के दिल में अपनी जगह बना ली है और न तो अपने पिता को माफ किया है और न ही रघु को।  रघु, इस बीच, एक ल्यूमिनेन्सेंट ज़ारा (तारा सुतारिया) के फ्रेम में प्रवेश करता है यह देखते हुए कि महिलाओं को इस तरह की फिल्मों में ज्यादा कुछ नहीं करना है। उधर विष्णु को जल्द ही प्रतिशोध मिटाने का मौका मिलता है। दूसरी तरफ ज़ोया (तारा सुतारिया) है, जो एक मूक बघिर लड़की है और झुग्गी के बच्चों के जीवन को संगीत के माध्यम से बदलना चाहती है।  वह प्रतिभाशाली गायकों और संगीतकारों की पहचान करना चाहती है, उन्हें एक संगीत प्रतियोगिता के लिए कश्मीर ले जाती है, जो, वह मानती है कि वे उसकी तथा विशेषज्ञ मदद से जीतेंगे, और इस तरह, यह उनके जीवन को बदल देगा। रघु को ज़ोया से प्यार हो जाता है और धारावी को इंडियन आइडल में बदलने का वादा करता है। इस सब में, एक चुलबुल पांडे दिखने वाला रवि किशन (रवि यादव), एक पुलिस वाला भी है, जो पिता-पुत्र की जोड़ी को सलाखों के पीछे चाहता है, और इसके लिए रघु की मदद चाहता है, और बाद में होने वाली पदोन्नति का पालन करेगा।  चीजों की बड़ी योजना में उनका कोई अन्य महत्व नहीं है, सिवाय कभी-कभी खुद को रघु के जीवन कोच के रूप में पेश करने के लिए। निर्देशक मिलन मिलाप जावेरी (मस्तीज़ादे, सत्यमेव जयते) को मिलाकर इसे मरजावां के साथ पेश किया जो बदतर बन पड़ा है। संवाद लेखक के रूप में भी फ़िल्म तीन फुटिया है। संवाद संभवतः फिल्म का एकमात्र  मूल ’पहलू है। स्क्रीनप्ले से लेकर गानों तक, एक रिट्रेड हैं।  बौना डॉन के रूप में रितेश पर मजाक लगता है।  और फ़िल्म केवल ढाई घंटे की यातना बन जाती है। मिलाप जावेरी की मरजावां की कहानी सरल है।  फिल्म में कोई अभिनय नहीं है।  रितेश कोशिश करते हैं, लेकिन एक गंभीर खलनायक को गंभीरता से नहीं निभा पाए हैं। रघु और विष्णु को दोहे में बात करना पसंद  है।  इन संवादों पर विचार करें: “मारुंगा कनपटी पे, दर्दे मितेगा गणपति पे।” “गुज़रेगा देस जीस भी गली से, मैडल मिलेगी, अली से या बजरंग बली से।” इसके अलावा कुछ विचित्र चुटकुले भी हैं। जो प्रभावशाली बनने के बजाए वो सेंसलेस सुनाई देते हैं। जिसकी वजह से अच्छा सीन भी कॉमेडी सीन बन जाता है। ‘तोड़ुंगा भी और तोड़ के जोड़ुंगा भी’, ‘मैं मारुंगा मर जाएगा, दोबारा जनम लेने से डर जाएगा’… अरे कुछ भी मतलब ! प्यार, मोहब्बत, इमोशन और बदला, ये सब कुछ होते हुए भी कहीं न कहीं से फिल्म की कहानी कमजोर महसूस होती है, क्योंकि इस तरह की कहानी पर अब तक कई सारी फिल्में बन चुकी है।लेकिन अच्छी फिल्म बनाने के लिए इतना ही नहीं चाहिए होता, एक अच्छी कहानी भी जरूरी होती है, जो यहां है ही नहीं। फिल्म के लेखक और निर्देशक मिलाप जावेरी ने कई फिल्मों की कहानी लिखी है लेकिन निर्देशक के तौर पर ये उनकी चौथी फिल्म है। उनकी पिछली फिल्म सत्यमेव जयते हिट थी।कहीं की ईंट कहीं का रोड़ा भानुमति ने कुनबा जोड़ा…ये कहावत इस फिल्म पर एकदम फिट बैठती है। क्योंकि कहानी की बात करें तो यूं लगता है जैसे किस्से जोड़-जोड़ कर एक कहानी बना दी गई है और इसीलिए मरजावां की कहानी बहुत प्रभावित नहीं करती। उस पर से फिल्म के डायलॉग इस फिल्म को और खराब कर देते हैं।फिल्म में सिर्फ एक ही चीज मरजावां से मेल खाती है और वो है हीरो की प्रमिका का मरजाना जिसे मारने वाला खुद हीरो यानी उसका प्रेमी ही हो। ये लेकिन कमजोर स्क्रीनप्ले इस फिल्म के ले डूबा। फिल्म में न कहानी प्रभावित करती है, न एक्शन, न इमोशन और न ही फिल्म का निर्देशन ही ऐसा था जो फिल्म की खामियों को छिपा पाता उसे भी बेहतर नहीं कर पाए निर्देशक। सिद्धार्थ और रितेश देशमुख को साथ लेकर 2014 में बनी फिल्म एक विलेन वाली कहानी दोहराने की कोशिश की गई है। लेकिन एक विलेन इससे ज्यादा अच्छी थी। अपनी रेटिंग : 1 स्टार
फ़िल्म – मरजावां
निर्देशक – मिलन मिलाप जावेरी
कास्ट – सिद्धार्थ मल्होत्रा, रितेश देशमुख, तारा सुतारिया

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