हिन्दुस्तान की धरती बहुत से महायुद्धों की गवाह रही है। वर्तमान समय में भले ही यह हमें हमारी मातृभूमि को बचाने के लिए अपने पड़ोसी मुल्कों से सीमा की सुरक्षा करनी पड़ती है। लेकिन एक समय वो भी था जब विदेशी आक्रमणकारी भारत की सीमा में घुस कर हमला बोल देते थे। होता तो आजकल कुछ भी ऐसा ही है क्योंकि भारत में पड़ोसी मुल्कों से घुसपैठ की वारदातें अक्सर सुनने को मिलती रहती हैं। लेकिन उस स्म्ह्य भारत खुद ही अलग अलग राज्यों और सीमाओं में बंटा हुआ था। एकता और अखंडता जैसी कोई बात ही नहीं थी। ऐसे में सभी राज्य अपनी अपनी झोली भरने के लिए एक दूसरे राज्य से लड़ते थे और ऐसे में विदेशी आक्रमणकारियों का भारत में घुसपैठ करना काफ़ी हद तक आसान था। 200 साल तक भारत अंग्रेजी हुकुमत का गुलाम रहा लेकिन भारत की ये गुलामी की ये दास्तान बहुत पुरानी है। समय-समय पर यहाँ बाहरी लोगों ने आकर अपना परचम लहराने की कोशिशें की जिसमें वे बहुत हद तक सफल भी हुए। अफगानी, तुर्की और बाकि कई देशों से आए आक्रमणकारियों ने सोने की चिड़िया कहे जाने वाले भारत शासन करने के लिए कई बार आक्रमण किए जिसमें लाखों लोगों की जाने गई इतिहास के पन्नों में ऐसे कई युद्धों का काला अध्याय दफन है। जो उस समय की याद दिलाता है।  जब भारतभूमि वाकई में अपने अस्तित्व को बचाने में हार गई थी। ऐसी ही एक कहानी है पानीपत की तीसरी और अंतिम लड़ाई से जुड़ी दास्तान की। आज से करीब 260 साल पहले 14 जनवरी 1761 को बाजीराव पेशवा के नेतृत्व में मराठाओं ने सबसे बड़ी और भयानक सैन्य आपदा झेली थी। दिल्ली के उत्तर करीब 100 किलोमीटर दूर पानीपत में छिड़ी ये जंग 18 वीं सदी में हुई सबसे बड़ी लड़ाईयों में से एक थी। ये एक ऐसी जंग थी जिसमें एक दिन में मारे गए लोगों की संख्या किसी भी दूसरी जंग की तुलना में कहीं ज्यादा थी। पानीपत के मैदान पर लड़ी गई ये जंग अगर मराठे नहीं हारते तो आज देश का वर्तमान कुछ और ही होता। इस जंग ने देश का सामाजिक ताना बाना भी बदल दिया था। अफगानी शासक अहमद शाह अब्दाली से ज्यादा ताकत होने के बावजूद मराठे बुरी तरह हार गए। कहा जाता है कि इस जंग में इतना बड़ा नुकसान की महाराष्ट्र में ऐसा कोई भी घर नहीं था जिसमें से किसी एक मराठे की जान ना गई हो। अर्जुन कपूर, संजय दत्त और कृति सेनोन स्टारर फिल्म पानीपत इसी युद्ध पर आधारित है। 18 वीं सदी की शुरुआत हो चुकी थी। ओरंगजेब की मृत्यु के बाद वर्षों से भारत की जमीन पर वर्षों से सीना ताने खड़ा मुगल साम्राज्य अब घुटनों पर आ चुका  था। दूसरी तरफ़ मराठाओं का भगवा परचम बुलंदी पर लहरा रहा था। पेशवा बाजीराव के नेतृत्व में राजपुताना, मालवा और गुजरात के राजा सभी मराठाओं के साथ आ मिले थे। ऐसे में मराठाओं के लगातार आक्रमणों ने मुगल बादशाहों की हालत बदतर कर दी थी। उत्तर भारत के अधिकाँश इलाके जहाँ पहले मुगलों का शासन था वहाँ भी अब मराठाओं का कब्जा हो चुका था। 1758 में पेशवा बाजीराव के पुत्र बाला जी बाजीराव ने पंजाब पर विजय प्राप्त कर मराठा साम्राज्य को एक और तोहफा दिया। लेकिन इससे उनकी जितनी वाहवाही हुई थी उनके शत्रुओं की संख्या में भी उतनी ही बढ़ोतरी हुई। इस बार उनका सीधा सामना अफगान नवाब अहमद शाह अब्दाली के साथ था। 10 जनवरी 1760 को अहमद शाह अब्दाली को मराठा सेनापति दत्ता जी की हत्या कर दिल्ली को अपने कब्जे में ले लिया था। इस खबर को सुनकर उस समय के पेशवा बालाजी राव ने अब्दाली से लोहा लेने के लिए अपने चचेरे भाई सदाशिव भाऊ के नेतृत्व में सेना भेजी। इस सेना पहले युद्ध में तो दिल्ली को अब्दाली के चंगुल से आजाद करवा लिया लेकिन यह जीत उनके लिए जश्न का मौका नहीं बन पाई। जीत मिलने के कुछ ही समय बाद भरतपुर के शासक सूरजमल ने मराठाओं का साथ छोड़ दिया। इस वजह से दिल्ली जितने के बाद भी मराठे कई दिनों तक वहाँ से बाहर नहीं निकल पाए थे। उस समय पानीपत और आसपास के इलाकों में भयंकर अकाल भी पड़ा था। अब देखना यह है कि पानीपत फिल्म में भी क्या ऐसा ही कुछ इतिहास दिखाया जाएगा या सिनेमा के नाम पर इतिहास के साथ सिनेमाई छुट ली जाएगी। ट्रेलर को देखें तो संजय दत्त, अर्जुन कपूर और कृति सेनोन मेकअप ही नहीं बल्कि अभिनय में भी काफ़ी बुलंद नजर आ रहे हैं। लोकेशन और सेटअप डिजाइन के मामले में भी यह फिल्म काफ़ी भव्य नज़र आ रही है।

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