Poet Gopaldas Neeraj

“लिखना, प्रामाणिक पढ़ते रहने का सुबूत है।”
– शैलेंद्र कुमार शुक्ल

अच्छा! बात तो ये भी सच है कि स्वर्गीय दादा गोपालदास ‘नीरज’ प्रत्येक गँवई शहरी ज़िन्दगी के प्रत्येक गली घर के -चौराहे से लेकर इस देश के संसद में जाने और आने वाले रास्ते तक पढ़े एवं सुने जाने वाले कवि हैं गीतकार हैं ग़ज़लकार हैं दोहाकार हैं और भी शायद न जाने क्या क्या हैं?आम से ख़ास चेतना की स्मृतियों में।

मैं कहना तो ये भी चाहता हूँ कि विधा तो बहुत हैं मग़र सब में सब रचनाकार का सफ़ल हो जाना थोड़ा खटकता है लेकिन क्या कीजै नीरज जी इस खटकते सवाल के मुक़म्मल ज़वाब हैं हिंदी साहित्य में । नीरज दादा भारत की आज़ादी के बाद आदमी, जिंदगी और मज़हब जैसी चीज़ों को बड़ी ही सादगी से सहजता से सलीके से और कहूँ तो बिल्कुल ही करीने से ऐसे प्रस्तुत करते हैं कि सामने वाला फ्लैट हो जाता है। अब फ्लैट होना तो आप जानते ही हैं और भला इससे बच भी कौन पाया है। एक बात।

दूसरी बात ये कि जब हम हिंदी की गीतों को उसके विकास और परंपरा की प्रक्रिया में देखते हैं तो हिंदी की विशुद्ध गीतों की वाचिक चेतना में नीरज जी की उपस्थिति प्रमुख रूप से प्रतिनिधित्व करती नज़र आती है। क्योंकि आदमी और जीवन पर लिखा यह गीत आपको कोरोना पॉजिटिव तो नहीं लेकिन निगेटिव तो बना ही देता है। जब वो लिखते हैं…कि
कारवां गुजर गया

मैं ग़ुबार देखता रह गया….
या
कुछ सपनों के मर जाने से,
जीवन नहीं मरा करता है।

अग़र वो फिल्मों की तरफ़ जाते हैं तो उनके लिखे गीत दूर गांव की मड़ई में बजने वाले उस रेडियों में बजता है जो पूरे गाँव का एकमात्र रेडियो है तो उनका विकास भी समझ में आता है, उनका विस्तार भी। इतना ही नहीं बल्कि घरों से लेकर बाज़ार की दुकानों पर,यहां तक कि शराबखानों तक नीरज जी सबकी माँग पे बजने वाले गीत लिखते हैं। और अमर हो जाते हैं। जब वो लिखते हैं…
‘शोखियों में घोली जाय थोड़ी सी शराब’
होगा फिर नशा जो तैयार वो प्यार है।’

ख़ैर , गीतों में जिंदा होने का सबूत तो वो ख़ुद ही लिख गए थे एक ग़ज़ल के मक़्ते में…वो मक़ता ये है कि..
नीरज’ तो कल यहाँ न होगा,
उसका गीत-विधान रहेगा।।

तीसरी बात ये कि जब नीरज जी ग़ज़ल लिखते हैं तो उनका अदब उन्हें झकझोरता है और उनसे एक मशवरा लोगों के लिए लिखवाता है कि…और ये शे’र भारत की राजनीतिक मंचो से लेकर संसद में मज़हबी सवालों के ज़वाब में कहा सुना जाता है। जिससे उनकी सामाजिक धार्मिक उपादेयता की उपस्थिति का अंदाज़ा लगाया जा सकता है। शे’र ये है कि..
अब तो ऐसा भी कोई मज़हब चलाया जाय।
जिसमें इंसान को इंसान बनाया जाय।।

चूँकि ग़ज़ल कराहती है सूखे पड़े रेगिस्तानों में तो ये भी कराहते हुए एक कसक एक टीस के साथ हमारी ज़िन्दगी से गुफ़्तगू करवाते हैं…..और उसे शे’र बनाते हैं कि…
अब के सावन में ये शरारत मेरे साथ हुई।
मेरा घर छोड़ के कुल शहर में बरसात हुई।

और यहीं तक नहीं बल्कि इस देश की दुर्भाग्यपूर्ण स्थिति पे जब नीरज जी सोचते हैं तो उनकी मुलाकात एक क़ातिल से होती है यानी नीरज जी के यहाँ देश ही एक क़ातिल बनकर मिलता है। जिसे आज आप आसानी से समाज के चौथे स्तंभ स्वरूप पत्रकारिता में राष्ट्रवाद के नाम से देख सकते हैं अथवा देख रहे हैं। उनका वो शे’र ये है कि…
मैंने सोचा कि मेरे देश की हालत क्या है?
एक क़ातिल से तभी मेरी मुलाक़ात हुई |

नीरज जी एक दार्शनिक रचनाकार भी हैं और बढ़ते बाज़ारवाद के लोकतांत्रिक रचनाकार भी जो ज़िन्दगी को जीवन को जीने का सलीका भी सिखाते हैं। जब वो कहते हैं…न
जितना कम सामान रहेगा
उतना सफ़र आसान रहेगा

और अंतिम बात ये कि जिसे जानकर आपको भी ख़ुशी होगी और आप शायद मुस्कुरा भी देंगे। और तो और आपको फिर यक़ीन नहीं होगा कि ये वाक्य नीरज जी के हैं। ख़ैर,कहना मैं ये चाहता हूँ कि वह न सिर्फ़ संवेदनाओं तक सीमित हैं बल्कि वे कवि और कविता दोनों की अन्तरात्मा के तह का सफ़र तय करते हुए उसके अन्तर्मन के सौंदर्य को भी स्पर्श करते हैं। इसलिए इनका एक दोहा कवि और कविता की पहचान में या तआरुफ़ में अक़्सर कहा सुना अथवा पढ़ा लिखा जाता है। जो हर साहित्य सहृदय के आंखों के सामने से या तो अवश्य या तो अनिवार्य रूप में एक बार तो गुजरता ही है। वो दोहा ये है कि..
आत्मा के सौन्दर्य का, शब्द रूप है काव्य
मानव होना भाग्य है, कवि होना सौभाग्य।

तो कुल मिलाकर नीरज जी आदमी के जीवन और मज़हब के रचनाकार थे। इतना विस्तृत लिखा साहित्य आपको इस जगत की आम चेतना से लेकर ख़ास तक अमर बनाता है। इसलिए कमी तो खली है पिछले 2 सालों में। ख़ैर,मैं आपकी शब्द रूपी उपस्थिति को प्रणाम करता हूँ नमन करता हूँ ।

और ऐसे भाग्यशाली मानव,ऐसे सौभाग्यशाली कवि मेरे स्मृति रचनाकार आदरणीय स्वर्गीय गोपालदास नीरज जी को प्रणाम कहता हूँ ,शुक्रिया कहता हूँ।
और आख़िर में एक गीत जो मुझे पसन्द है …

आदमी को आदमी बनाने के लिए
जिंदगी में प्यार की कहानी चाहिए
और कहने के लिए कहानी प्यार की
स्याही नही,आँखों वाला पानी चाहिए।

जो भी कुछ लुटा रहे हो तुम यहाँ
वो ही बस तुम्हारे साथ जाएगा,
जो छुपाके रखा है तिजोरी में
वो तो धन न कोई काम आएगा,

सोने का ये रंग छूट जाना है
हर किसी का संग छूट जाना है
आखिरी सफर के इंतजाम के लिए
जेब भी कफन में इक लगानी चाहिए।
आदमी को आदमी बनाने के लिए
जिंदगी में प्यार की कहानी चाहिए।।

रागिनी है एक प्यार की
जिंदगी कि जिसका नाम है
गाके गर कटे तो है सुबह
रोके गर कटे तो शाम है
शब्द और ज्ञान व्यर्थ है
पूजा-पाठ ध्यान व्यर्थ है
आँसुओं को गीतों में बदलने के लिए,
लौ किसी यार से लगानी चाहिए
आदमी को आदमी बनाने के लिए
जिंदगी में प्यार की कहानी चाहिए।।

जो दु:खों में मुस्कुरा दिया
वो तो इक गुलाब बन गया
दूसरों के हक में जो मिटा
प्यार की किताब बन गया,
आग और अँगारा भूल जा
तेग और दुधारा भूल जा
दर्द को मशाल में बदलने के लिए
अपनी सब जवानी खुद जलानी चाहिए।
आदमी को आदमी बनाने के लिए
जिंदगी में प्यार की कहानी चाहिए।।

दर्द गर किसी का तेरे पास है
वो खुदा तेरे बहुत करीब है
प्यार का जो रस नहीं है आँखों में
कैसा हो अमीर तू गरीब है
खाता और बही तो रे बहाना है
चैक और सही तो रे बहाना है
सच्ची साख मंडी में कमाने के लिए
दिल की कोई हुंडी भी भुनानी चाहिए।
आदमी को आदमी बनाने के लिए
जिन्दगी में प्यार की कहानी चाहिए।।

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