एक 5 सितंबर 1988 को जन्मे राधाकृष्णन एक महान दार्शनिक और एक विद्वान शिक्षक भी थे,साथ ही वह एक बड़े राजनेता थे। उनके जन्म दिवस को शिक्षक दिवस के रूप में मनाया जाता है। वे एक विद्वान हस्ती थे इसका अंदाजा इस बात से भी लगाया जा सकता है कि 16 बार उनका नाम साहित्य के नोबेल पुरस्कार तथा 11 बार शांति के नोबेल पुरस्कार के लिए सम्मानित किया गया।
हर बच्चे के जीवन में दो प्रकार के शिक्षक होते हैं, प्रथम वे जो बहुत कठोर होते हैं और द्वितीय में जो बच्चों को समझते हैं और गलती होने पर कई बार माफ कर देते हैं। दोनों ही प्रकार के शिक्षक बच्चे का भला ही चाहते हैं। उस वक्त यह बात बच्चे के समझ नहीं आती किंतु जीवन के विद्यार्थी पड़ाव बीत जाने के बाद बच्चों को इस बात की भली भांति समझ होती है कि शिक्षक कभी भी उनका बुरा नहीं चाहते।
एक अच्छी शिक्षा और संस्कार हेतु प्रायः समाज माता पिता को ही महत्वपूर्ण मानता है, परंतु एक विद्यार्थी एक व्यक्ति में अच्छी शिक्षा व संस्कार देने हेतु शिक्षक भी उतना ही जिम्मेदार होता है जितना माता पिता। माता पिता के बाद एक शिक्षक ही है जो एक बच्चे में अच्छे – बुरे व सही – गलत का बोध कराता है, पर आज इस आधुनिक युग में जहां बच्चे मोबाइल, सोशल मीडिया तथा गेम्स में व्यस्त हैं, वही माता-पिता भी पार्टी, सोशल मीडिया और मोबाइल, तथा दूसरों से घंटों बात करने में व्यस्त है। ऐसे में रिश्तों के बीच दूरी का होना लाजिमी है। ऐसी स्थिति में एक शिक्षक ही बच्चों के अंधकारमय जीवन में रोशनी की एक किरण ला सकता है। शिक्षक के पास इतनी शक्ति है कि वह बच्चे की पूरी जिंदगी बदल सकता है, बच्चे के जीवन में प्रेरणा स्रोत बन सकता है। जीवन में सीखने की उम्र में बच्चों के शिक्षक ही है जो बच्चे को जीवन में सही आकार दे सकता है। प्रायः देखा जाता है कि यदि बच्चा पढ़ने में अच्छा है तो शिक्षक के द्वारा उसे पर्याप्त महत्व दिया जाता है किंतु यदि बच्चा खेलने में अच्छा है तो कहीं ना कहीं शिक्षक उतना महत्व नहीं देते हैं। इस क्षेत्र में अभी भी हम शिक्षकों को कार्य करना होगा और नई शिक्षा नीति के आ आने के बाद तो यह नितांत आवश्यक हो जाता है कि बच्चों से उनके गुणों के अनुसार ही उम्मीद कर उन्हें प्रतोत्साहित करें। हम एक बहुत अच्छा खेलने वाले बच्चे से यह उम्मीद ना करें कि वह पढ़ने में भी अच्छा होगा या एक पढ़ने वाले बच्चे से यह उम्मीद ना करें कि वह खेलने में भी अच्छा होगा किंतु हम यह प्रयास अवश्य कर सकते हैं कि खेलने वाला बच्चा पढ़ने में भी थोड़ा ध्यान दें और पढ़ने वाला बच्चा खेलने में भी थोड़ा ध्यान दें।
वैसे तो शिक्षक दिवस को एक दिन के रूप में मनाने से मैं बहुत सहमत नहीं किंतु कई बार ऐसा महसूस होता है कि इस दिन शिक्षक को बच्चों के द्वारा यह ऐसा एहसास दिलाया जाता है कि हां आप हमारे जीवन में गुरु के रूप में परिपूर्ण है, आपके होने से हमारे जीवन में रोशनी की किरण प्रस्फुटित होती है। भारत में शिक्षक का कार्य सिर्फ किताबी ज्ञान देना न तब था और ना अब, किन्तु सिलेबस को पूरा करने और परीक्षा में अत्यधिक नंबर लाने के इस मायाजाल में कहीं ना कहीं शिक्षक की भूमिका धूमिल हो रही है। ऐसे में यह नितांत आवश्यक हो जाता है कि बच्चे के सर्वांगीण विकास हेतु शिक्षक संकल्पित रहे।
जहां समाज में ऐसा माहौल बना दिया गया है कि अंग्रेजी बोलने वाले बच्चें अपने आप को बुद्धिमान या ज्ञानी और हिंदी बोलने वाले बच्चें अपने आपको बुद्धिहीन या मूढ़ समझने लगते हैं ऐसे में शिक्षकों को की जवाबदारी है कि वह अपने बच्चों को इन भावनाओं से दूर रखें और यह अवबोधन कराएं कि अंग्रेजी सिर्फ एक भाषा है व्यक्तित्व का निर्धारण करने वाली कोई मानक नहीं। शिक्षक वह है जो समाज और राष्ट्र के भविष्य का निर्माता है। अतः उसे बहुत सावधानी व ईमानदारी से अपने कार्य को क्रियान्वित करना चाहिए। सामान्य तौर पर यह माना जाता है कि जिससे हम पढ़ते हैं वह शिक्षक होते हैं। इस बात में कहीं संदेह नही, किंतु व्यापक रूप से देखा जाए तो हम जिससे भी ज्ञान अर्जित करते है या कोई भी चीज सीखते हैं वह व्यक्ति हमारे लिए उस वक्त शिक्षक होता है। हमारी संस्कृति में शिक्षक शब्द हेतु गुरु शब्द का प्रयोग किया जाता है गुरु का अर्थ होता है “अंधकार से प्रकाश की ओर ले जाने वाला।“
अंत में बस इतना कहूंगी कि किसी भी पेशे की तुलना अध्यापन के कार्य से नहीं की जा सकती। यह ऐसा कार्य है जो समस्त पेशों का जनक है।