ये तो अन्याय ही होगा न ! जब माता शबरी से कोई कहे कि तेरे राम नहीं आयेंगे |……. उम्मीद छोड़ दो |
माता शबरी मैं भारत माई को कह रहा हूँ | और जानते हैं,उनके राम कौन है?
जिनके तीखे तेवर से उङ गए थे अंग्रेजों के होश | राष्ट्रनायक हैं, नाम है सुभाषचंद्र बोस |
एक बात जानते हैं आपसब ! महा झूठे हैं वो लोग जो अमर पुरुष की पुण्यतिथि निर्धारित करते हैं | करने की बात करते हैं | बस मुझे ये बता दीजिए | समुंद्र डूब सकता है क्या? आकाश कहीं फंस सकता है क्या ? पाताल धॅंस सकता है क्या? और स्वयं सूर्य कभी जल सकता है क्या ? नहीं न!
तो हमें नेता जी का इंतजार करना चाहिए । ये जो इंतजार होता है न साहब! इसका भी अपना सौंदर्य होता है । इश्क़ जैसा | एक आशा,एक उम्मीद के साथ जीना बहुत ही आनंददायक होता है |
बाबा तुलसीदास अपने ज़माने में कह गए हैं-“नहीं दरिद्र सम दुख जग माही”
मतलब गरीबी से बड़ा जगत में कोई दुख नहीं है | लेकिन आज मुझे लग रहा है कि जगत का सबसे बङा दुख है आखिरी उम्मीद का भी मर जाना | इसे कैसे मरने देंगे हम ! हमेशा ज़िंदा रखेंगे |
आप जहाँ कहीं भी हैं |
जन्मदिन मुबारक़ हो सुभाष बाबू ! आपसे बहुत प्यार करते हैं हमसब । आखिर कौन प्यार नहीं करेगा जी ! समृद्ध परिवार में जन्में आप | आपकी शानदार पढ़ाई-लिखाई हुई | प्रतिष्ठित परीक्षा I. C. S पास किये | चाहते तो ऐशोआराम की ज़िन्दगी जी सकते थे | लेकिन आप जिस मिट्टी से बने थे,उसके अनुसार आपका ज़मीर तो कुछ और चाहता था | बोस बाबू !
आप जैसे रणबाँकुरों के कारण ही तो यह देश कभी टूटा नहीं । आक्रांताओं के अनेक प्रपंच और प्रहार के बाद भी हमारा भारत खड़ा रहा । आप बहुत याद आते हैं । रंगून के ‘जुबली हाॅल’ में आपके द्वारा दिया गया भाषण जब पढ़ता हूँ
तो आँखों की कोर से गाल की तरफ़ पानी सरकने लगता है ।
वही भाषण जिसमें आपने कहा था- “तुम मुझे खून दो,मैं तुम्हें आज़ादी दूँगा ।”आपकी एक आवाज़ पर देशभक्त अपनी जान हथेली पर लेकर आपके पीछे चल पड़े थे । वक्त ने तो देखा था ही ।
‘आज़ाद हिंद फौज’ में नया जोश और उत्साह आ गया था । करेजगर ज़ियाले पलड़े पर अपना लहू रखकर जश्न-ए-आजादी मोल लेने के लिए हुमाचा मारने लगे थे ।
रणसिंहों की सेना ‘आज़ाद हिंद फौज’ ब्रिटिश हुकूमत खातिर सिरदर्द बनकर उभरी थी । लगभग तीन साल बाद आपका वादा पूरा हुआ ।
पंद्रह अगस्त 1947ई0 को हमें आज़ादी मिल गई । अपनी धरती मिली। अपना आकाश मिल गया ।
जानते हैं नेता जी ! आज़ादी के बाद क्लिमेंट एट्ली भारत आया था,
कह रहा था कि सबसे ज़्यादा आपसे डरते थे गोरी चमड़ी वाले ।…….
आखिर क्यों नहीं डरते महाराज! आप ही ने तो बताया था कि ये वही भारत है,जहाँ शांतिदूत श्रीकृष्ण के अनुनय विनय से बात नहीं बनती है तो उससे आगे अर्जुन के तीरों की तङतङाहट और महाबली भीम के गदे की गङगङाहट से मामला हल किया जाता है |
लेकिन मुझे आपसे एक शिकायत है । आपने हमारे प्रेम का कोई मोल नहीं आँका । बड़े निर्मोही हैं आप । बिन कहे ,न जाने किस लंबी यात्रा पर चले गए । हमारे बेहिसाब विश्वास और भरोसा को भुलाकर ।
आप आज़ादी के दूल्हा थे । अपने हाथों से आपको देश सजाना था । भारत माई के आँचल की शोभा बढ़ाना था । फिर एक बार लौट आइए ना बोस बाबू ! हमारे खातिर ना सही ; इस माटी के लिए आ जाइए ।
न जाने कब से भारत माई आपको तिलक लगाने के लिए तरस रहीं हैं !
नेह-छोह बरसाकर परिछने के लिए अपने सपूत की बाट जोह रहीं हैं ।
बेसब्री की पराकाष्ठा पर खड़ी होकर !
देश को आपकी बहुत जरूरत है इस वक्त । बस एक बार ‘नेता’ शब्द के इक़बाल लिए आ जाइए नेता जी ! आपके आ जाने से यह फिर जीवंत हो उठेगा । नतमस्तक हूँ । जन्मदिवस पर श्री चरणों में श्रद्धा से शीश नवाता हूँ । जय हिन्द ।
जय हो । जय हिन्द ।।