father lovee

फुटपाथ के दुकानदार ने सख्त लहजे में कहा “ यहां से जाओ चाचा , अस्सी रुपये में ये चप्पल नहीं मिलेगी,बढ़ाओ अपनी साइकिल यहाँ से “।
ये सुनकर वो सोच में पड़ गए कि फुटपाथ की सबसे सस्ती दुकान पर तो वो तो खड़े हैं ,अब इससे आगे वो कहाँ जाएं अगर बेटे की पढ़ाई का खर्चा उनके सर पर ना होता तो ऐसी फुटपाथी दुकान पर वो पेशाब करने भी नहीं आते। उन्हें बेटे की याद आयी ।
उधर हनी ने कूल ड्यूड से ठुनकते हुये कहा –
“बेबी , तुमने बोला था ना कि तुम मुझे मेरे बर्थ डे पर मुझे मेरी पसंद का गिफ्ट दोगे”
“ऑफकोर्स बेबी , क्या लेना है तुमको , आई मीन कितने का गिफ्ट लेना है तुमको “कूल ड्यूड ने पूछा
“बेबी, क्या गिफ्ट लेना है ये तो सरप्राइज है , कितने का लेना है ,तो सुनो गिफ्ट बहुत महंगा है ,तुम सिर्फ आठ हजार दे दो ,बाकी मैं मैनेज कर लूंगी”
बेबी ने जलवा बिखेरते हुए कहा।
“ओके श्योर बेबी, अभी एक फोन करके आता हूँ “ये कहकर कूल डयूड मॉल से बाहर निकल आया।
कुल ड्यूड ,सुंदरलाल शर्मा के बुढ़ापे का चिराग थे एक ढहते हुए व्यक्ति के जिसे उम्र की ढल चुके पड़ाव पर बमुश्किल एक पुत्र रत्न की प्राप्ति हुई थी ।
उसी जिगर के टुकड़े कूल डयूड बेटे का फोन आया तो बाप ने झट से फोन उठाया और हुलसते हुए बोला –
“हां बेटा , कैसे हो “?
कूल ड्यूड ने कहा –
“पापा, मैथ की एक्स्ट्रा कोचिंग क्लासेज जॉइन करनी हैं, आज ही लास्ट डेट है , फीस भेज दो ,बहुत अर्जेंट है , मैथ्स में नम्बर कम आये तो पूरा साल बेकार हो जायेगा, किसी तरह आठ हजार आज ही भेज दो “
“अभी भेजता हूँ बेटे ,कुछ जोर -जुगाड़ करके ।
फुटपाथ पर चप्पल खरीदने का मोल -भाव कर रहे शर्मा जी अपनी साइकिल लेकर पैसों के जोर-जुगाड़ करने निकल पड़े।
कूल डयूड बेटे को सुंदरलाल शर्मा ने कुछ ही देर में पैसे बैंक से भेज दिए ।
पैसों के बिना कूल ड्यूड और उसके साथ की युवती माल में अनमने से बैठे रहे ।
मोबाइल में जैसे ही कूल ड्यूड के बैंक खाते में पैसे आने की सूचना आयी वैसे ही वो खिल उठा। कूल ड्यूड ने तुरन्त ही पैसा बेबी के खाते में ट्रांसफर कर दिया। बेबी पैसे पाकर निहाल हो उठी , उसने उत्साह में कूल ड्यूड को गले लगा लिया। उन दोनों ने इस कदर एक दूसरे को आलिंगनबद्ध किया कि देखने वाले भी शर्मा गए ।बाप फोन मिलाकर इस बात को कन्फर्म करना चाहता था कि बेटे के खाते में पैसे पहुंचे या नहीं , बाप ने फोन किया ,बेटे का मोबाइल बजता रहा,मगर बेटे ने आलिंगन तोड़कर मोबाइल उठाना गवारा ना समझा ।
सुंदर लाल शर्मा थोड़े वक्त बाद फिर उसी फुटपाथ पर हाजिर हुए और चप्पल का मोल -भाव करना वहीं से शुरू किया ,जहाँ से कूल डयूड का फोन आने के बाद वो रुपयों का इतंजाम करने चले गए थे।
शर्मा जी के मोल -भाव से आज़िज होकर चप्पल वाले ने खीझते हुए कहा –
“बुढ़ऊ, काहे सौ की खरीद का माल अस्सी में खरीदने पर तुले हुये हो ।इतना पैसा छाती पर लेकर स्वर्ग जाओगे क्या “?
“वो बात नहीं है भाई,मेरा बेटा कई सारी कोचिंग कर रहा है, उसी में सब पैसे जाते हैं । इस साल वो बहुत मेहनत कर रहा है , उसका कहीं चयन हो जाएगा , तो फिर मेरी ज़िम्मेदारी खत्म। कुछ दिनों की बात है । फिर तुमसे कोई झिकझिक नहीं होगी । लाओ चप्पल घिस गयी है मेरी ।फिलहाल अस्सी रुपये ही हैं , बिना चप्पल के चलूँ क्या, ले लो अस्सी, मान जाओ भाई ,हे -हे -हे “ ये कहकर हँसते हुए बेशर्मी से शर्मा जी ने चप्पल उठा ली और जबरदस्ती अस्सी रुपये फुटपाथ पर बैठे दुकानदार की जेब में डाल दिये ।
दुकानदार कुछ भुनभुनाते हुए शर्मा जी को जली -कटी सुनाने ही वाला था कि शर्मा जी ने झट से साइकिल मोड़ी और झोले में चप्पल रखकर पैंडल मारते हुए साइकिल आगे बढ़ा दी ।

दुकानदार पीछे से शर्मा जी को आवाज लगाता ही रह गया और शर्मा जी तेजी से पैंडल मारते हुए सोच रहे थे कि बेटे ने फोन नहीं उठाया है इसका मतलब वो कोचिंग में बैठा पढ़ रहा होगा और उसे फोन उठाने की ना तो फुर्सत होगी और ना ही अनुमति । साइकिल पर तेजी से पैंडल मारते हुए वो ज़िंदगी के आठ -अस्सी के आगे के हिसाबों का गुणा -भाग करने में व्यस्त हो गए ।
समाप्त

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