happy mother's day
सुबह मेरे मोबाइल में अलार्म के साथ कैलेंडर रिमाइंडर की भी घंटी बजी, जिस पे लिखा था आज मदर्स डे है| ईमानदारी से कहूँ, मुझे याद भी नहीं था कि आज कोई ऐसा दिन भी है, कभी सोचा ही नहीं, कि माँ का एक दिन भी होगा?,अरे मां का तो हर रोज है आज मैं 10 मई 2020 में हूँ तो ये भी माँ की बदौलत है| फिर सोचा क्या लिखूँ? कभी सोचा ही नहीं, कल ही तो वीडियो कॉल की थी, रोज करता हूँ इनफैक्ट इस लॉक डाउन में तो रोज दो तीन बार बात हो जाती है कभी एहसास ही नहीं हुआ, कि कोई खास दिन भी होगा। कोई मां के बारे में क्या लिख सकता है किस शब्दकोष, विशेषण, अलंकार, उपमा, में इतनी क्षमता है, कि उसके बारे में लिख सके।
क्या कोई वाकई उस इंतजार के बारे में लिख सकता है जो माँ आपके इतंजार में नौ महीने करती है, अपनी साँसों के हर एक आवागमन को, हृदय की धड़कन के हर एक स्पंदन, खून का हर कतरा देकर अपनी कोख में एक छोटे से माँस के टुकड़े को गढ़ती है, आकार देती है। यह किसी भी वाक्य की क्षमता से, बाहर की चीज है…. क्या कोई वाक्य माँ की आँखों के बारे में लिख सकता है, जो बच्चा कैसा भी हो वो उसमें चाँद, सूरज, तारे सारा ब्रह्माण्ड देखती है, दुलारती हैं और मुफ़लिसी में भी उसमें एक राजा या राजकुमारी देखती है असम्भव है। क्या उस चिंता उस फिक्र के अहसास के बारे में कोई बात कर सकता है जो बच्चे के पहली बार खड़े होने, चलने, विद्यालय जाने, घर से दूर जाने और उसके बीमार होने पर कई रातों को बिना पलक झपकाये चिंता करने में काटी हों……क्या उस झूठ की पवित्रता पर लिख सकता है जो पिता से आपके लिये बोली गयी हो अपने लिए रखे पैसों को आपकी पिकनिक के लिए दिया हो यह कहकर तेरे लिए ही तो रखी थी। क्या लिखेंगे आप, न आप में इतनी क्षमता है, और ना ही आपके शब्द कोशो में अरे वो शाप दे दे, तो आपके तीनों लोक बिगड़ जायेंगे…श्राप मत लीजिए, आशीर्वाद लीजिए बस इतना करिये उसको इज्जत दीजिए…!

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