dayri page

सुबह के चार बज गये है।रात से मूसलाधार बारिश हो रही है।कपड़े उठाना भूल गयी थी ।सारे भीगे हुए है।

राइटिंग टेबल पर बैठी हूँ।तुम गहन निंद्रा में सोये हो,कितने मासूम लग रहे हो।पास ही अवि भी सोया है।वह नींद में मुस्कुरा रहा है,शायद कोई अच्छा सपना देखा हैं।

दो तीन दिन व्यस्तता की वजह से डायरी लिख ही नहीं पायी।

आज कहाँ से शुरु करूँ।रात एक कविता में उलझ गयी थी,जो तुम पर केन्द्रित थी।मेरे जीवन के उलझाव की तरह कोई थाह ही नहीं मिल रही थी।अधूरी छोड़ दी है।फिर कभी मन होने पर लिख लूंगी।

तुम्हारे साथ बिताये पलों को याद करने की कोशिश करती हूँ तो ऊंँगलियों में ही गिन पाती हूँ।

बापा ने कितने उत्साह से तुम्हारे साथ ब्याहा था मुझे।पसंद तुमने भी किया था मुझे।पर,क ई अंतराल तक हमें दूर रहना पड़ा।तुम्हारे घर वाले भी पुराने विचारों के थे।पर,मैंने समायोजन किया।सासूमाँ साथ रही,भतीजा,और भाँजा ऐसे क ई रिश्ते जो तुम्हारी तरफ से थे बखूबी निभाये।बिना किसी शिकवे शिकायत के।एक बस तुम्हारे साथ का रिश्ता न निभ पाया।

तुमने शुरू में ही कह दिया था कि मैं मौन रहूँ,तुम्हें परेशान न करूं।एक योग्य सारथी की तरह घर ग.हस्थी का रथ खिंचती रहूँ।मैं आज भी मौन ही हूँ…।

हाँ इस बीच तुम्हारे क्षणिक प्यार की निशानी अवि मेरी गोद में आ गया।मुझे तो जैसे सबकुछ मिल गया।मैं अवि में तुम्हारा रूप पाकर सब कुछ भूला बैठी।

मुझे जीवन भर इस बात का दुःख रहेगा।तुम इतने अच्छे ईंसान होते हुए अपनी पत्नी की इच्छाओं को समझ नहीं पाये।मैंने कुछ पलों का साथ ही तो मांगा था।और मांगी थी हमारे बीच कुछ वार्ता लाप हो।ताकि हम एक दूसरे को अच्छे से समझ सके।पर,यह राश्ता भी बंद था।

मेरी अच्छी खासी सर्विस थी।पर,रूपये पैसे का संचालन सदा तुमने ही किया।मेरी छोटी छोटी जरूरतों को तुमने समझा ही नहीं।और अवि के भविष्य की भी कभी चिंता न की।बस!अपने ढ़ंग से जीते रहे।

काश!तुम एक बार नारी की भावनाओं को समझ सकती।नारी कुछ नहीं चाहती।बस!प्यार के दो मीठे बोल। ही तो चाहती है।

मैं कविताएं लिखती हूँ ,तुम्हें पता है..पर,कभी भी उसे सुनने की ईच्छा तुमने जाहिर न की।एक बार मेरे पास स्कूटी न थी।एक कार्यक्रम में दूर जाना था।लाईट भी न थी।तुमने एक बार भी न कहा..कि मैं छोड़ दूं..।मैं आटो से गयी।

उस रात मैं बहुत रोयी थी,पर तुम तो अपने दोस्तों के साथ थे।

वापस कब आयी,कुछ खाया या नहीं, तुमने कभी नहीं पूछा।मेरे तबीयत के दिनों को भी कभी नोटिस नहीं किया।मांजी और अवि को डाक्टर के पास मुझे ही ले जाना पड़ता।

ऐसे क ई उदाहरण है।गिनाने बेठूं तो डायरी भर जायेगी.. परंतु मैंने कभी कोई शिकायत न की।बल्कि इसे सकारात्मक लिया कि तुम्हारे कारण आज मैं सशक्त हूँ।वक्त के थपेड़ो को सहन कर पायी हूँ।

दिन भर स्वयं को घरगृहस्थी और कालेज के काम में व्यस्त रखती हूं।मां जी का पूरा ध्यान रखती हूँ।अवि के भविष्य के प्रति चिंतित रहती हूँ।तुम्हारे खाने का पूरा ख्याल रखती हूँ।तुम देर से आते हो,देर से सोते हो।इन सब भावों को जीती हूँ।बिना रोये कि किसी रोज तुम समझ पाओगे,मेरे हिस्से का वक्त मुझे दोगे।

यह ड़ायरी तुम शायद कभी न पढ़ पाओ और अगर पढ़ोगे तो हो सकता है,देर हो जायेगी।परंतु एक आश मन में लिये अपने नारी जीवन को सभ्यता और सँस्कृतिके तराजू में;जो माँ बापाजी से विरासत में मिली;रख कर जी रहा हूँ।

बस!आज इतना ही।मांजी उठ गयी होगी उन्हें गर्म पानी फिर चाय देनी है।अवि को उठा कर तैयार कर आन लाइन क्लास करानी है।आज मेहरी नहीं आने वाली।साप्ताहिक सफाई के कार्य है।

तुम तो देर से उठोगे…।सोते समय तुम्हारा चेहरा कितना मासूम लग रहा है……।

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