चिकनी चुपड़ी बातों से, फ़ितरत का पता नहीं चलता,
अंदर क्या और बाहर क्या है, इसका पता नहीं चलता।
जो मीठेपन का लेप चढ़ा कर, प्यारी सी बातें करते हैं,
कब कटुता का वो रंग दिखा दें, इसका पता नहीं चलता।
यूं ही घुस जाते हैं अपना बन कर, वो तो दिल के अंदर,
कब वो दिल में आग लगा दें, इसका पता नहीं चलता।
यारों भरी पड़ी है ये दुनिया तो, ऐसे ही अजब नज़ारों से,
यहाँ कौन है अपना कौन पराया, इसका पता नहीं चलता।
कितना ही रोओ चिल्लाओ, यहां कोई नहीं सुनने वाला,
यहाँ कौन है कितना गिरा हुआ, इसका पता नहीं चलता।
मत जाओ “मिश्र” उन राहों पर, जिनका तुमको ज्ञान नहीं,
कब कौन तुम्हारी टांग खींच ले, इसका पता नहीं चलता।