mosam

आँखे अँधी है, कान है बहरे ,
हाथ पांव भी भले विकल ।
वाणी-बुद्धि में बनी दुर्बलता ,
विश्वास-हौसला सदा अटल ।

अक्षमताओं से क्षमता पैदा कर ,
विकलांग से हम दिव्यांग कहाए ।
परिस्थितियों से लोहा लेकर ही ,
काँटो-पथ पर फूल खिलाए ।

तन दुर्बल है, पर ‘एक-इकाई’ ,
आठ अरब की संख्या पार ।
लक्ष्य बड़े ‘हाकिन्स’ से ऊँचे ,
गहन अंतरिक्ष या समुद्र अपार ।

कुछ फलने ,कुछ लेने परीक्षा ,
उसने हमें ऐसा है बनाया ।
पर पँखो में अरमान हौसला ,
लक्ष्य हमें आसमान छुवाया ।

एक अपूर्णता देकर उसने ,
तीन दिव्यता हममें भर दी ।
मेहनत कुछ, उसकी रेहमत से ,
आज जीवन खुशहाली कर दी ।

हमें हौसलों से, पहुँच बनानी ,
सृष्टि के कण-कण जीवन ।
खुशहाल प्रकृति है ,हमें सजानी ,
तन-मन मानव में संजीवन ।

कहीं नहीं हम,किसी से कमतर ,
भले कोई सहारा न हो ।
मन विश्वास ले, बढ़ते चले हम ,
तूफान भले ,किनारा न हो ।

दया के हम आकांक्षी नहीं है ,
जीना चाहे स्वाभिमान से ।
‘अजस्र ‘ उमंग, हममें लहरों सी,
मन पंख परवाज़, उड़ान चले ।

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