mohabbat-amar-hogai

मुझे जो तुमने देखा
तो तुमको कुछ तो हुआ।
तुम्हारी आँखो ने मानो
कुछ ऐसा कुछ कहा।
तुम्हें कुछ एहसास हुआ
या दिलको भ्रम हुआ।
मोहब्बत में अक्सर ऐसा
सभी को होने लगता।।

मोहब्बत में आँखो का
अलग अंदाज होता है।
आँखो की भाषा को
ये दिल समझ जाता।
इसलिए तो दिल को
मोहब्बत होने लगती है।
और हल चल दिलमें
बहुत मचने लगती है।।

मोहब्बत करने वाले जन
सदा ख्यावों में जीते है।
दिये भी तो अक्सर
अंधरो में जलाते है।
और मेहबूबा के लिए
बनवा देते है ताजमहल।
और अमर कर देते है
मोहब्बत के स्मारक को।।

बना है जब से ये
मोहब्बत का स्मारक।
देखकर लोगों के दिलो में
मोहब्बत पनपने लगी है।
चमकता चाँद भी देखो
सरमाता है पूर्णिमा को।
तभी तो युवा दिलों को
मोहब्बत करने को कहता।।

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