ना जाने क्यों तेरी आवाज़ सुकुन देती है बहुत
ना जाने क्यूँ तेरे ख्याल से दिल हो शादाब जाता है
जब भी सोचता हूँ तन्हाई में जिंदगी की बाबत
मुस्कुराता तेरा चेहरा नज़र के सामने आता है ।
मुझे मालूम नहीं क्या तेरा मेरा रिश्ता है क्यूँकर
तेरी आवाज़ ज़िस्म से रूह तक उतरती जाती है
क्यूँ तेरी बातें मुझे अपनी अपनी-सी लगती हैं
क्यूँ तसव्वुर से तेरे नब्ज मेरी डूबती-सी जाती है ।
क्यूँ मेरे अहसास आख़िर साथ मेरा ही नहीं देते
क्यूँ मेरे जज्बात मेरे होकर भी नहीं हैं मेरे
क्यूँ मेरा मन हर लम्हा याद करता है तुझको
क्यूँ मुझे घेरे रहते हैं तेरी चाहतों के घेरे ।
मेरी जान ! मुझे इसका सबब तो नहीं मालूम
अगर इल्म हो तुझको तो मुझे भी इत्तला करना
मेरी उम्मीदों को शायद एक यक़ीन मिल जाये
अंधेरों में हूँ तन्हा मेरी जिंदगी को उजला करना ।