जन्मी तो अलग तरह से
सूचना दी गई
ताकि सब जान सकें
कि
घर में
आ गई है कुलच्छिनी
मातम मना घर भर में
पूरे पाँच साल
दोयम दर्जे के स्कूल जाती रही
बड़ी होकर समझदार हुई
तो इसी में खुश थी कि
उसे समय पर स्कूल भेजा गया
गाँव की कई और लड़कियों की तरह
उसने नहीं चराईं बकरियाँ
ज़्यादा पढ़ाई नहीं गई
तो क्या हुआ
उसके माँ -बाप ने
एक अच्छा घर- द्वार तो
ढूँढ़ा उसके लिए
औरों की तरह
सुयोग्य लड़के के न मिलने के डर से
ब्याह दी गई वह भी
इंटर करने के बाद
वह फिर भी खुश थी
समझदारी से ससुराल को सहा
सारे रिश्ते निभाए
जब तक देहरी के भीतर रही
पल्लू नहीं सरका कभी
घूँघट नहीं हटा एक पल को भी
चार-पाँच साल
सास,ससुर सबसे निभी
बस लड़कियां
क्या हो गईं दो-दो
सारी दुनिया ही
हो गई
जानी दुश्मन
नासमझ कही जाने लगी
लड़का न जन सकने से
अभागी मानकर
कर दी गई
उसी देहरी से बाहर
जिससे अक्षत भरे थाल को लुढ़काकर
आई थी भीतर
ढोल ताशे के साथ
देहरी बाहर हुई तो
वही जमाना जो उसे गाजे-बाजे
लाया था
बाहर भेजकर मगन था
उसे आशंका है कि
उसके मुहल्ले की हर चौखट और दरवाजे ने
रची थी साजिश उसके खिलाफ़
इसी लिए वह उन सबको घूरते
और बारी-बारी से उनपर थूकते
निकली तो पल्लू भी सरका और घूँघट भी
थाने भी गई और अदालत भी
सबने डराया
ताऊ -ताई ने
चाचा-चाची
मौसा -मौसी ने
यहाँ तक कि
जमाने की मारी
मायके की घायल सड़क ने भी
उसे लगता है कि
सब एक जुट हैं
उस समझदार स्त्री के विरुद्ध
जो उठ खड़ी होती है
किसी भी अन्याय के प्रतिकार में
जो निर्भय है
बच्चों को समय पर
स्कूल भेजकर
ऑफिस जाती है
स्कूल में पढ़ाती है
ऊँची-ऊँची इमारतों पर
ईंट-गारा चढ़ाती है
खेतों पर काम करती है
मछली पकड़ती है
बेचती है
दूसरोंके बर्तन माँजती है
बच्चे खिलाती है
या
बकरियाँ चराती है
और मानती है कि
समझदार स्त्री वह नहीं होती
जो जठराग्नि शमन के लिए
दो रोटी और कामी पति के साथ की
चार घंटे की नींद की खातिर
बेंच देती है स्त्रीत्व
पिसती है
शोषण सहती है
दिन-रात
बल्कि वह है जो
पुत्र -प्राप्ति के लिए
समूची स्त्री जाति के विरुद्ध किए जा रहे षड्यंत्रों
के विरुद्ध झंडा उठाती है
और,
सतीत्व नहीं स्त्रीत्त्व की रक्षा के लिए
कमर कसकर
जुट जाती है ।

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