दुनिया को खुश रखते-रखते
ख़ुद ही गम में डूब गया हूँ
स्वार्थ भरी दुनियादारी से
मैं अब मन से ऊब गया हूँ
इतना भी आसान नहीं है
हँसना और हँसाते रहना
भीतर-भीतर टूटते रहना
बाहर से मुस्काते रहना
घर-परिवार-समाज है लेकिन
सब में खूब दिखावापन है
दावा है अपनेपन का पर
सच तो सिर्फ अकेलापन है
अगल-बगल व पास-पड़ोसी
अजब-गजब है खेल सभी का
कोई खींचे पैर पकड़कर
कोई दे फिसलन पर धक्का
दोस्त-यार या सखी-सहेली
मदद से ज़्याद छल देते हैं
बुरे वक्त मे मिलते हैं पर
हँसी उड़ाकर चल देते हैं
चाचा-चाची, मौसी-मौसा
सबका अपना-अपना मतलब
जब भी पड़ी है विपदा सर पर
किसने साथ निभाया है तब
पत्नी को चिंता रहती है
सोने-चाँदी के गहने की
फैशन का सामान नहीं है
आए दिन कहते रहने की
भाई जैसा खून का रिश्ता
आज हो गया खून का प्यासा
सिमट रही है उपहारों में
रक्षाबंधन की परिभाषा
टूट रही बापू की लाठी
बेटे उनको इतना कोसे
माँ-बेटे का नाता भी अब
जिंदा है पर राम-भरोसे
भीतर से लेकर बाहर तक
सबका अपना स्वार्थ यहाँ है
अल्ला-ईश्वर, मंदिर-मस्ज़िद
में भी सच्चा चैन कहाँ है
नेक फ़रिश्ता दिखने ख़ातिर
तू काबे जाता रहता है
ख़ुद को संत दिखाने ख़ातिर
मैं भी काशी ख़ूब गया हूँ
दुनिया को खुश करते-करते
ख़ुद ही गम में डूब गया हूँ
स्वार्थ भरी दुनियादारी से
मैं अब मन से ऊब गया हूँ