मन्द मन्द बसंत ने
छेड़ी तान
भक्ति भी खड़ी
लिए फूलो का हार।।
सरयू तट है उदार
बहती है शीतल धार
नव सुगन्ध भरती
कल – कल धारा बहती।।
सरयू तट पर राम झाकी
धनुष बाण लिए हाथ
पीताम्बर तन सवार
शीश मुकुट कंठ माल।।
कानन कुण्डल तिलक
भाल
सजे राम दरबार
रस बरसावे प्रभु श्री राम।।
चितवन की स्थिति बेहाल
लखि सुर सुमनन झरात
कोकिला करे गीत गान।।
आम्र की डाली पर
मोर करे नाद
नव रंग लिए
प्रकृति करे श्रृंगार।।
बसन्त लजाते
संध्या की कलम सजाते
ईश्वर की अनुपम रचना का
अनुभव कराते।।