एक पहेली सी हो तुम थोड़ी सी जानी पहचानी
पास रहती मगर अनजानी सी ।।
खुद को समेटे कुछ कहती हुई
नज़रे झुकाएं हर वक़्त मुस्कुराती हुई।।
चन्द लम्हों में चुरा लेती मुझको
दूर हो के हर वक़्त सताती मुझको।।
एक पल के लिए भी कभी दूर न जाती
कुछ लम्हों में ही हर बात कह जाती।।
अलग दिखती दुनिया से कभी भी कुछ न जताती
उसकी खामोश धड़कने सबकुछ बयां कर जाती।।
खुद में उलझी हुई वक़्त का इंतजार करती
चांदनी रात में चांद से बाते करती।।
मेरी हर शिकायत को सितारों संग बांटती
दिल की साफ मगर खुद पर बाहोत इतराती।।
एक पहेली सी हो तुम थोड़ी सी जानी पहचानी
पास रहती है,मगर अनजानी सी है।।