जाता हूँ जिन राहों पर चल के,
माँ कहती है तुम चलना तन के।
काँटों पर चलना सिखाती है मुझको,
धूप आए मगर आँचल से छन के।
कहती है मेरे पास है सब कुछ,
निकलती नही वो कभी बन ठन के।
अरमानों को कभी ज़ाहिर ना किया,
माँ रह गई सिर्फ़ रसोई की बनके।
अब बस इतनी तमन्ना है रब से,
मेरी कामयाबी से उनका चेहरा दमके।
आप ने जों माँ के लिए पोस्ट लिखा है काफ़ी उत्साहित पोस्ट है dधन्यवाद
धन्यवाद उमेश
❤❤