पिछले पच्चीस वर्षों से दैनिक भास्कर में प्रकाशित हो रहे लोकप्रिय काॅलम #परदे के पीछे के लेखक/फिल्म निर्माता/समीक्षक श्री जयप्रकाश चौकसे जी का आज अस्सी वां जन्मदिवस है। १सितम्बर १९३९ को बुरहानपुर में जन्मे जयप्रकाश अपने माता-पिता की चौथी संतान हैं। बुरहानपुर से स्कूली शिक्षा पूरी करने के बाद उन्होंने सागर विश्वविद्यालय से स्नातक तथा होलकर कॉलेज इंदौर से अंग्रेज़ी व हिंदी साहित्य में एमए किया। गुजराती कॉलेज में तेरह वर्ष अध्यापन कार्य किया। फिल्मों में उनकी रूचि बचपन से ही रही। घर में पढ़ने-लिखने का माहौल था और उच्च शिक्षा के लिए प्रोत्साहन भी भरपूर मिला। सागर विवि में विठ्ठलभाई पटेल और सत्यमोहन वर्मा जैसे मित्रों ने राजकपूर और गीतकार शैलेन्द्र से परिचय कराया। यह मित्रता बहुत परिवर्तनकारी रही और कालान्तर में फिल्म निर्माण व वितरण के क्षेत्र में प्रवेश का कारण बनी। राजकपूर उनके अनन्य मित्र रहे हैं।बंबई आने के बाद सलीम खान साहब, रणधीर कपूर, जावेदअख्तर, निदा फाजली, राहुल देव बर्मन जैसे कई श्रेष्ठ लोगों से उनकी अटूट मित्रता बनी जो आज तक कायम है। राजकपूर की कई फिल्मों का वितरण भी उन्होंने किया है। साथ ही कुछ किताबें भी उन्होंने राजकपूर पर लिखीं हैं। स्वयं जयप्रकाश चौकसे ने हरजाई ,शायद ,कन्हैया और वापसी (अधूरी) फिल्मों का निर्माण किया। लेकिन अंत में उन्होंने बंबई से इंदौर वापसी का निर्णय किया और लेखन का चुनाव किया।अपने लंबे फ़िल्मी जीवन के अनुभव और साहित्य के विस्तृत ज्ञान के कारण फिल्म जगत में उनका बहुत सम्मान है। जयप्रकाश चौकसे ने वर्ष १९८५ में दैनिक भास्कर के ‘नवरंग’ का संपादन आरंभ किया उसके बाद वर्ष १९९६ से उन्होंने ‘परदे के पीछे’ काॅलम नियमित रूप से लिखना शुरू किया जो आज भी अनवरत जारी है और इसी वर्ष इस काॅलम के २५ वर्ष पूरे होने जा रहे हैं। समृद्ध विचार, साहित्य का व्यापक ज्ञान और फिल्मों की पृष्ठभूमि पर रचे गए उनके काॅलम प्रतिदिन एक नयी दृष्टि से पाठकों के समक्ष प्रस्तुत किये जाते हैं। समाज, साहित्य, व्यक्तित्व, राजनीति, विज्ञान, कला और ऐसे अनेक विषयों पर विविधतापूर्ण दृष्टि से पुख़्ता संदर्भो सहित वे अपनी सटीक बात साहस के साथ लिखने का सामर्थ्य रखते हैं। फिल्मों में छुपे अर्थों को अपनी अद्भुत लेखनी से उकेरते हुए अभी भी कैंसर जैसी बीमारी के बावजूद हर दिन हमारे लिए प्रस्तुत कर रहे हैं। वे चाहे अस्पताल में हों या यात्रा पर, काॅलम लिखना कभी नहीं रूका। नई फिल्म की रिलीज़ पर(जो उन्हें लगता है कि देखी जा सकती है) पहला शो देखने वे ज़रूर जाते हैं। ऐसे अधीर काल में उनके लेख ठंडी और ताज़ी बयार के समान हैं।उनके रचित साहित्य में दराबा ,ताजमहल बेक़रारी का बयान ,राजकपूर सृजन प्रक्रिया महात्मा गाँधी और सिनेमा, मानव मस्तिष्क और उसकी अनुकृति कैमरा, परदे के पीछे एवं कुछ कहानियाँ, कुरूक्षेत्र की कराह, संसद के फर्श पर खून के दाग,एक सेल्समैन की व्यथा कथा आदि।°°°°°°°°°°°°°°°°°°°°°°°°°°°°°°°°°°°°उनके साथ बैठना अपने आप में बड़ा ही आनंददायक होता है। तमाम रोचक फ़िल्मी क़िस्से बड़े ही मज़ेदार अंदाज़ में सुनाते हैं। मैं जब भी उनके घर गई हूँ वे किसी मंझे हुए कलाकार की तरह अपनी व्याधि और तकलीफ़ों को छुपाकर स्वागत के लिए सहर्ष प्रतीक्षारत मिलते हैं। उनकी सृजनशीतला के पीछे हार न मानना और योद्धा की तरह डटे रहने की शक्ति है। जिसे वे लिखकर अभिव्यक्त हो जाने में सहयोग करते हैं इसमें उनकी पत्नि श्रीमती उषा चौकसे जी की जीवटता व पूरे परिवार का अशर्त प्रेम दवाओं के अलावा एंटीबायोटिक के रूप में काम कर रहा है।ईश्वर जयप्रकाश जी को अच्छा स्वास्थ्य प्रदान करे बस! यही प्रार्थना है।
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