Karl Marx
कार्ल मार्क्स आधुनिक इतिहास के सबसे प्रभावशाली राजनीतिक चिंतक
दुनिया के मजदूरों एकजुट हो जाओ, तुम्हारे पास खोने को कुछ भी नहीं है, सिवाय अपनी जंजीरों के।
इस प्रसिद्ध नारे ने 20 वीं सदी के प्रारंभ में दुनिया में काफी हलचल मचाई थी। खासकर 1917 की प्रसिद्ध रूसी क्रांति कार्ल मार्क्स की ही बौद्धिक विचारधारा का प्रतिफल थी। आधुनिक इतिहास में  मार्क्स  सबसे प्रभावशाली राजनीतिक चिंतक माने जा सकते हैं।
कम्युनिस्ट घोषणापत्र और अपने अन्य लेखों में माक्र्स ने पूंजीवादी समाज में वर्ग संघर्ष की बात कही। उन्होंने बताया कि कैसे अंतत: संघर्ष में सर्वहारा वर्ग पूरी दुनिया में बुर्जुआ वर्ग को हटाकर सत्ता पर कब्ज़ा कर लेगा।
 रूसी क्रांति के बाद सोवियत संघ के उदय ने कम्युनिस्ट विचारधारा को पूरे विश्व में प्रसिद्ध दिलाई थी। इसके बाद धीरे-धीरे सोवियत संघ ने भी कम्युनिज्म विचारधारा के प्रचार प्रसार में पूरी ताकत लगाई थी। इसका असर भी पड़ा था। चीन, क्यूबा, पूर्वी जर्मनी, वियतनाम और उत्तर कोरिया सहित विश्व के कई देशों में कम्युनिस्ट पार्टियां सत्ता पर काबिज हुई थीं।  लेकिन कम्युनिस्ट पार्टियों ने सत्ता पर हमेशा से कब्जा बनाए रखने की ललक में लोकतंत्र का गला घोंट दिया था और अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता को खत्म करने का दुसाहस किया था। इस तथा अपनी अन्य कई कमजोरियों के कारण वे इतिहास में लुप्त हो गए।
मार्क्स के सिद्धांत व प्रभाव
मार्क्स की दो कृतियां कम्युनिस्ट घोषणा पत्र और दास कैपिटल ने एक समय दुनिया के करोड़ों लोगों पर राजनीतिक और आर्थिक रूप से निर्णयात्मक असर डाला था। दास कैपिटल में सर्वग्राही पूंजीवाद के बारे में उन्होंने रेखांकित किया कि कैसे इसने पूरी मानव सभ्यता को ग़ुलाम बना लिया।
जहां तक मार्क्स के विचारों की बात है तो उन्होंने मजदूरों को शोषण से मुक्त होने और अपनी जंजीरे तोडऩे का जो मूल मंत्र दिया था वो काफी हद तक कारगर रहा। पूरी दुनिया में यहां तक की घोर पूंजीवादी संयुक्त राज्य अमेरिका और ब्रिटेन भी कम्युनिस्ट विचारों से प्रभावित हुए बिना नहीं रह सके। अमेरिका, ब्रिटेन तथा यूरोप के अन्य कई देशों में ट्रेड यूनियन आंदोलन काफी प्रभावकारी रहा। इसने काफी लंबे संघर्ष के बाद पूंजीपतियों व कारखाना मालिकों से संघर्ष कर अपनी सरकारों को मजदूरों के हितों की रक्षा करनेवाले कई कानून बनाने पर मजबूर किया। साप्ताहिक अवकाश, मजदूरी के घंटे तय करना, अन्य छुïिट्टयां, प्रोविडेंड फंड, ग्रेच्यूटी तथा अन्य कई सुविधाएं जो आज किसी भी कामकाजी व्यक्ति को सहज ही उपलब्ध हैं उनमें से अधिकतर सुविधाएं इन कम्युनिस्ट विचारधारा वाली वाली पार्टियों और टे्रड यूनियन के आंदोलनों के लंबे संघर्ष व कुर्बानियों की वजह से ही हासिल हो पाई हैं।
मुनाफे का अधिक हिस्सा पाने का संघर्ष
मार्क्स के अनुसार अतिरिक्त मूल्य ये वो मूल्य है जो एक मज़दूर अपनी मज़दूरी के अलावा पैदा करता है। समस्या ये है कि उत्पादन के साधनों के मालिक इस अतिरिक्त मूल्य का अधिक से अधिक हिस्सा अपने कब्जे में कर लेते हैं। इस तरह पूंजी एक जगह और कुछ चंद हाथों में केंद्रित होती जाती है और इसकी वजह से बेरोजग़ारी बढ़ती है और मज़दूरी में गिरावट आती जाती है। इसकी वजह से समाज में विद्वेष की भावना बढ़ती जाती है।
हाल में आई रिपोर्ट के अनुसार दुनिया के एक फीसद अमीरों के पास दुनिया की संपत्ति का  80 फीसदी से ज्यादा हिस्से पर कब्जा है। इसी तरह
पिछले दो दशकों में अमेरिका जैसे देशों में मज़दूरों का वेतन स्थिर हो गया है, जबकि अधिकारियों के वेतन में 40 से 110 गुने की वृद्धि हुई है।
आज भले ही सोवियत संघ के अवसान के बाद कार्ल मार्क्स और उनकी बौद्धिक उत्तराधिकारी कम्युनिस्ट पार्टियां अपना महत्व खो चुकी हों इसके बावजूद भूमंडलीकरण की समस्याओं पर मौजूदा बहस में माक्र्सवाद का बार-बार जिक्र आता है और कई बार माक्र्स के विचार प्रासंगिक लगते हैं।

About Author

One thought on “जन्मदिन पर विशेष : कार्ल मार्क्स”

  1. काफी संक्षेप में काफी महत्वपूर्ण जानकारी से अवगत कराया आपने।

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *