कला एवं विज्ञान महाविद्यालय, शिवाजी नगर (गढी), जिला बीड के हिंदी विभाग द्वारा हिंदी दिवस के उपलक्ष्य में आयोजित समापन समारोह (16 सितंबर, 2019) में प्रमुख अतिथि के रूप में डॉ. मजीद शेख को निमं‍त्रित किया गया था। इनके द्वारा ‘हिंदी विश्व’ भित्ति  का विमोचन किया गया। इस विभाग द्वारा काव्य-वाचन तथा निबंध स्पर्धा का आयोजन किया गया था। जिसमें प्रथम, द्वितीय तथा तृतीय अंक पाने वाले छात्रों को पुरस्कृत किया गया।
डॉ. मजीद शेख ने अपने वक्तव्य में कहा कि, ‘हिंदी के स्वीकार से शिक्षा का सामान्यीकरण’ होगा। 15 अगस्त, 1947 ई. को देश स्वतंत्र हुआ। स्वतंत्रता के बहत्त्र वर्ष पश्चात् भी हम सही मायने में आजाद नहीं हुए, मानसिक रूप से गुलाम हैं। प्रारूप समिति के अध्यक्ष डॉ.बाबासाहेब आंबेडकर जी ने लिखा है, “संविधान निर्माण के समय जब राजभाषा हिंदी का प्रश्न सामने आया तो सबसे अधिक बहस हुई।” संविधान के 17वें भाग में अनुच्छेद 343 से 351 तक राजभाषा हिंदी संबंधी प्रावधान है। संविधान सभा ने इन अनुच्छेदों को सर्वसम्म्त से अंतिम रूप से 14 सितंबर, 1949 ई. को स्वीकार किया। इसी कारण 14 सितंबर को ‘हिंदी दिवस’ के रूप से में मनाया जाता है।
राष्ट्रहित में शिक्षा का माध्यम स्वभाषा ही होनी चाहिए। हमारा मौलिक चिंतन उसी भाषा में होता है। कबीर, बहिणाबाई आदि अनपढ़ थे, पर इनका साहित्य विश्व-साहित्य के कोटि में आता हैं। मनोवैज्ञानिक सच्चाई यह है कि मनुष्य जिस भाषा में सपनों की उडान करता है, उसी भाषा में मौलिक चिंतन संभव है। स्वभाषा में ही सपने देखे जाते हैं और भौतिक चिंतन की उपज आविष्कार प्रथमत: एक सपना ही होता है। प्राथमिक शिक्षा जब वह अन्य भाषा में शुरू करता है तो उसकी बहुत-सी शक्ति उस भाषा को सोचने में नष्ट हो जाती है। इसका परिणाम यह होता है कि उसका अधिकार न अपनी भाषा पर रहता है और न ही अन्य भाषा पर अपितु  उच्च-शिक्षा का अध्ययन स्वभाषा में करने से ही राष्ट्रभाषा में लिखने की क्षमता बढती है। विदेशी भाषा से हम ज्ञान तो ले सकते हैं, पर ज्ञान का सर्जन नहीं कर सकते और ज्ञान के सर्जन से ही देश संपन्न होता है। इतिहास गवाह है कि उसी देश में वैज्ञानिक विकास हुआ, जहाँ ज्ञान जन-जन की भाषा में पहुँचा। इस भाषाई-खाई के कारण एक कृषक का पुत्र कृषक-अभियंता तथा एक लुहार का पुत्र घातु की-अभियंता नहीं बन सकता।
भारत विश्व का अनोखा और समृद्ध देश रहा है। इस देश में लगभग 35 करोड़ से अधिक जोशिलें युवा हैं। इनका सही मात्रा में प्रयोग होना चाहिए। इन युवाओं को पाँच भाषाएँ आना आवश्यक है। सबसे पहले मातृभाषा, राज्यभाषा, राजभाषा तथा अंतर्राष्ट्रीय भाषा इन चार भाषाओं के साथ-साथ सूचना प्रौद्यौगिकी की भाषा अर्थात् कम्प्यूटर की पांचवीं भाषा आना अनिवार्य हुआ है। इन पाँच भाषाओं पर जिन युवाओं का अधिकार हैं उनके लिए संभावना-भरा पूरा विश्व पटल खुला है।

हिंदी भाषा भविष्य में संयुक्त राष्ट्र संघ की सातवीं आधिकारिक भाषा बनकर अंतर्राष्ट्रीय भाषा बनेगी। देश का राजनीतिक-परिदृशय हिंदी के अनुकूल है। वर्तमान सरकार में ऐसा कोई समूह है ही नहीं जो हिंदी का मुखर विरोधी हो। हिंदी विरोध के लिए सबसे कुख्यात राज्य तमिलनाडु रहा है। वहाँ की कोई पार्टी इनकी सरकार में भागीदार नहीं है। दूसरा विरोध पश्चिम बंगाल के कुछ समूहों का था। वहाँ की भी कोई दूसरी पार्टी इनकी सरकार में भागीदार नहीं है। परंतु इसके लिए सरकार के पास साहस और दृढ इच्छाशक्ति की आवश्यकता है। सरकार यदि ऐसा साहसपूर्ण कदम उठाती है तो इसमें कोई संदेह नहीं है कि बहुत जल्द राजभाषा हिंदी ‘राष्ट्रभाषा’ तथा ‘अंतर्राष्ट्रीय भाषा’ बनेगी।
हिंदी विभागाध्यक्ष प्रो. रामहरि काकडे ने इस समापन समारोह की भूमिका रखी, डॉ.जयराम ढवळे ने अध्यक्षता की और आभार ज्ञापन प्रो. हीरा पोटकूले ने किया तो सुचारू ढंग से सत्र संचालन छात्रा भाग्यश्री औटी ने किया।

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One thought on “हिंदी के स्वीकार से शिक्षा का सामान्यीकरण”

  1. हिन्दी के महत्वको जिस रूप में आपने उदघाटित किया है वह बहुत ही प्रभावी .हिन्दी के इस वास्तव से और लाभ से सब परिचित हो जायेंगे तो जल्द ही हिन्दी राष्ट्रभाषा एवं विश्व भाषा बन जायेगी ।

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