यू ट्यूब पर जाइए हजारों वीडियो मिल जाएंगे जहां लोग वैलेनटाईन डे का इतिहास बता दे रहे हैं मगर उन्हें 26 जनवरी गणतंत्रत दिवस और 15 अगस्त स्वतंत्रता दिवस में फर्क नहीं पता। यहां तक कि ये भी नहीं पता कि इन दिनों का महत्व क्या है। पहले लगता था ऐसे वीडियो खुद से बनाए जाते हैं लेकिन मीडिया संस्थान से जुड़ने के बाद सामने से देखा है, कई युवाओं को सच में नहीं पता।
आज नये बच्चे जो बड़े हो रहे हैं या कुछ साल पहले तक के संपन्न घरों के बच्चों से इतिहास का कोई भी सामान्य सा प्रश्न पूछिए तो अधिकतर दांत निपोर देंगे । आप पूछ लीजिए किसी से कि कुंती कौन थीं और उनके कितने पुत्र थे तो बहुत से पढ़े लिखे युवा चुप्पी साध लेंगे। या तो माता कुंती को जानते नहीं होंगे या फिर 5 पुत्र बताएंगे।
मैं नहीं मानता कि ऐसे में बच्चों का दोष है। आप अपने आसपास नज़र दौड़ाइए, बच्चों को पढ़ाई के नाम पर देश की संस्कृति और इतिहास से कितना दूर कर दिया गया है। हर समय पढ़ो पढ़ो का दबाव, समय मिला तो फोन में घुस गये। अपनी संस्कृति के बारे में जितना नहीं पता उतना ये लोग हैरी पॉर्टर के बारे में जानते हैं।
पढ़ने के नाम पर बच्चों को खुद से दूर कर दिया जाता है। कभी समय निकाल कर वे सब बताया ही नहीं जो उनके लिए जानना सबसे ज़रूरी है। कल से सोनाक्षी सिन्हा उपहास की पात्र बनी हुई है। मैंने खुद जब देखा तो गुस्सा हंसी तरस सब आया। लिखने भी वाला था कि आज आलिया भट्ट का रिकार्ड टूटा है लेकिन फिर सोचा कि क्या इसके लिए सोनाक्षी या उसके जैसे बच्चे और युवा पूरी तरह ज़िम्मेदार हैं ? मुझे नहीं लगता कि ऐसा है।
हम में से किस किस को स्कूल में रामायण या महाभारत पढ़ाई गयी है ? हमने ये सब अपने घर वालों से सीखा । ज़्यादा ज्ञानी नहीं हैं लेकिन उतना तो जानते हैं जितना बचपन में कहानियों के द्वारा हमें समझाया गया । उन्होंने हमेशा से अपने ज्ञान के अनुसार इन सब बातों को सिखाया।
ऐसे में अगर कोसा जाना चाहिए तो घरवालों को जिन्होंने पैसा खर्च करना और बच्चों को देश विदेश के महंगे स्कूल कॉलेजों में बच्चों को पढ़ाना ही अपनी असल ज़िम्मेदारी समझी । जिस दौर में बच्चे के रुमाल बोलने पर मां कहती है नो नो हैंकी बोलो बेटा वहां आप उम्मीद कर रहे हैं कि इन्हें रामायण माहाभारत के बारे में पता होना चाहिए।
सोनाक्षी सिन्हा का मज़ाक उड़ाने से अच्छा है कि इससे सीख ली जाए। शो से वापस जाने के बाद उसने ग्लानि के मारे कोई रामायण पढ़नी शुरू नहीं कर दी होगी । वह फिर अपने काम में लग गयी होगी । वो क्या कहते हैं, हां, उसे घंटा फर्क नहीं पड़ता लेकिन आप सीखिए कि आप अपने बच्चों की तरफ कितना ध्यान दे पा रहे हैं । क्या कल को आपका बच्चा भी तो कहीं किसी के बीच हंसी का पात्र तो नहीं बन जाएगा । याद रखिए सड़ जाना फल की गलती हो सकती है लेकिन उसका मीठा होना या ना होना पेड़ की नस्ल पर निर्भर करता है।

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