हिंदी के प्रचार में, हिंदी के प्रसार में।
उठा रहे हैं जो कदम, उनको है मेरा नमन।।

मिलकर करें सम्मान हम, मिलकर करें आव्हान हम।
मिलकर सजाएँ हिंदी चमन, हिंदी को मेरा नमन।।
भाषा, विचारों के आदान प्रदान का सुलभ माध्यम होने के साथ साथ साथ हमारे मानस पटल पर सरलता से अंकित होती है। हर देश की अपनी राष्ट्रीय भाषा है।जिसका वहाँ यथोचित मान सम्मान है। हमारे देश के नाम की शुरुआत ही भाषा से हुई है हिंदुस्तान। भाषा के प्रचार प्रसार कवियों व साहित्यकारों, राजनेताओं, शालाओं,दफ्तरों आदि का सबसे बड़ा योगदान रहता है। शिकागो में जब विवेकानंद जी ने कहा कि मेरे अमेरिका निवासी बहनों और भाइयो तो बहुत लंबे समय तक तालियों की आवाज से सदन गूंजता रहा जिसने इस बात को साबित कर दिया कि राष्ट्र भाषा से प्रेम हमें मान सम्मान दिलाता है। हमारे पूर्व प्रधानमंत्री श्री अटल बिहारी वाजपेयी जी जिस देश में जाते थे वहाँ हिंदी का ही प्रयोग करते थे। वर्तमान परिवेश में पश्चमी सभ्यता ने सिर्फ हमारे स्वभाव व चरित्र ही नहीं बल्कि भाषा पर भी आक्रमण कर दिया है। जो एक धीमा जहर है।
अन्य देशों की भाषाओं को जानना और सीखना बुरा नहीं है पर अपनी भाषा को निम्न नहीं समझना चाहिए। हिंदी भाषा के विकास के लिए कुछ सुझाव ये हो सकते हैं
हिंदी के लिए सेमिनारों, वरिष्ट साहित्यकारों व कवियों द्वारा कवि सम्मेलन व विचारों ,शालाओं में हिंदी का अधिक से अधिक प्रयोग,सरकारी दफ्तरों में हिंदी का प्रयोग,लोक कलाओं व मंचन द्वारा हम हिंदी का स्थान श्रेष्ठ कर सकते हैं।
अंत में यही कहूँगा-
आओ एक आव्हान करें।
हिंदी का सम्मान करें।।
अखिल विश्व में हिंदी का।
निश्चित श्रेष्ठ स्थान करें।।

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