dost

कभी आगे का ख़्याल करते, तो अच्छा होता
कभी गुज़रा भी याद करते, तो अच्छा होता

उजाड़ने का क्या है उजाड़ दो बस्तियां सारी,
कभी तो कुछ आबाद करते, तो अच्छा होता

औरों की अमानत को न उड़ाइये यारों में यूं,
कभी सब को भी याद करते, तो अच्छा होता

जो बात तेरी है भला औरों को क्या लेना देना,
कुछ जन का भी ध्यान करते, तो अच्छा होता

बड़े हुनर वाले हैं उधर तेरी मजलिस में दोस्त,
कभी उनसे भी विचार करते, तो अच्छा होता

बड़ा अजब है ये ग़ुरूर भी भुला देता है यादें भी,
कभी उन वादों को याद करते, तो अच्छा होता

सभी को ही साथ लेकर चलने में मज़ा है दोस्त,
कभी भी इतना सा काम करते, तो अच्छा होता

औरों पर उठाना उंगलियां बड़ा आसान है ‘मिश्र’,
कभी खुद से भी सवाल करते, तो अच्छा होता

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