किसी से क्या गिला,जब अपने बदल गए,
दिल तो है वही मगर,अब सपने बदल गए।
लुटता था शरीफ़ कल भी लुटता है अब भी,
है फर्क़ बस इतना,कि अब रास्ते बदल गए।
यारों मुखौटे तो तब भी थे मगर वे ऐसे न थे,
अब तो इन मुखौटों से सारे,मसले बदल गए।
पहले जो भाव थे दिल का तरन्नुम था उनमें,
अफ़सोस कि ज़िन्दगी के,वो नगमे बदल गए।
अब तो ये खून ही दुश्मन है अपने ही खून का,
यारों ये वक़्त क्या बदला,कि रिश्ते बदल गए।
एक इच्छा थी ‘मिश्र’ खुशनुमा ग़ज़ल कहने की,
मगर अफ़सोस न जाने कैसे,मिसरे बदल गए।