न किया जो अब तलक,वो कर के देखेंगे
अब हम भी किसी पर यारों,मर के देखेंगे
ज़िन्दगी गुज़ार दी बस तन्हाइयों में हमने,
अब मोहब्बत का दरिया में भी,उतर के देखेंगे
हमने देखे हैं जाने कितने ज़फाओं के मारे
अब तो हम भी अपने वादे,मुकर के देखेंगे
अपना तो दिल पड़ा है एक वीरान बंजर सा,
अब हम ही किसी के दिल में,उतर के देखेंगे
यारों बहुत घिर लिए हम व्यर्थ के मसलों में,
इनसे अपने लिए भी अब तो,उबर के देखेंगे
बेजा रोक रखा है हमारी उड़ानों को लोगों ने,
यारो हम भी पंख उनके,अब कतर के देखेंगे
सच है कि दी है खुदा ने शक्ल कुछ ऐसी ही,
पर एक बार हम भी यारों,बन संवर के देखेंगे
जाने कितना जीया है हमने घुट-घुट के ‘मिश्र’,
हम भी आसमां के नीचे,अब पसर के देखेंगे