कलयुग भी सतयुग जैसा लग रहा
विद्यासागर जी के कामों से।
कितने जीवों के बच रहे प्राण
उनकी गौ शालाओं से।।
जीव हत्या करने वाले अब
स्वयं आ रहे उनकी शरण में।
लेकर आजीवन अहिंसा का व्रत
स्वयं करेंगे उनकी रक्षा अब।
ऐसे त्यागी और तपस्वी संत
जो स्वयं पैदल चलते हैं।
और जगह जगह प्राणियों की
रक्षा हेतु भाग्यादोय खुलवाते।।
कलयुग भी सतयुग जैसा लग रहा
विद्यासागर जी के कामों से।
कितने जीवों के बच रहे प्राण
उनकी गौ शालाओं से।।
मांस मदिरा बेचने वाले अब
स्वयं रोक लगवा रहे।
चारो तरफ अहिंसा का अब
पाठ ये ही लोग पढ़ा रहे।
कलयुग को देखो कैसे अब
सतयुग ये लोग बना रहे।
घर घर में सुख शांति का
आचार्यश्री का संदेश पहुँचा रहे।।
लगता है जैसे भगवान आदिनाथ
स्वयं अवतार लेकर आ गये।
और छोटे बाबा के रूप में आकर
सब जीवों का उद्धार कर रहे हैं।
तभी तो बड़े और छोटे बाबा
एक जैसे सबको लग रहे हैं।
और कलयुग को भी अब
सतयुग जैसा ही मान रहे हैं।।
कलयुग भी सतयुग जैसा लग रहा
विद्यासागर जी के कामों से।
कितने जीवो के बच रहे प्राण
उनकी गौ शालाओं से।।
जय जिनेंद्र