साहब ने एसी रूम में बैठ नो आब्जेक्शन लिख दिया
चंद मिनटों में ही लकड़हारों ने मेरा वजूद मिटा दिया।
दशकों तक हवा-पानी पाकर बड़ी हुई थी टहनियां।
मेरे बड़े पत्ते तपती धूप में राहगीरों को देते थे छाया।
बारिश में भी कुछ देर के लिए ही सही पनाह था देता।
इतना था कसूर कि सड़क की चौड़ाई के आड़े आया।
इतना बेबस था कि जान बचाने एक इंच ना सरक पाया।
मैं बेजुबान आरी चलने पर आह तक भी नहीं भर पाया।
ना धरने पर बैठा, ना प्रदर्शन कर विस्थापन  मांग पाया।
पर हे इन्सान तुम  हो दुनिया के सबसे अकलमंद जीव।
अपनी नई तकनीकी से मुझे कहीं और लगा सकते थे।
पर तुम्हें लगा होगा एक मामूली सा पेड़ ही तो है ना।
काट कर हटा देना ही सस्ता और आसान रास्ता है।

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