साहित्य और सिनेमा ऐसे माध्यम हैं, जिसमें समाज को बदलने की बहुत अधिक ताकत होती है। कहना गलत न होगा की सिनेमा, साहित्य से अधिक प्रभावशाली और आम जनता तक सरलता से पहुँचने में सक्षम है। साहित्य सिनेमा में रूपांतरित होकर उन लोगों से भी संवाद करता है, जहाँ साहित्य का मर्म नहीं पहुँच पाता। साहित्य के चिंतक, लेखकों, और आलोचक सिनेमा को साहित्य का हिस्सा मानने से हमेशा हिचकिचाते रहे हैं। यह जानते हुए भी कि सिनेमा का आरंभ ही साहित्य से होता है। एक तरह से देखें तो समाज साहित्य और सिनेमा के बीच की धुरी है। एक तरफ समाज इनसे प्रभावित होता है तो दूसरी ओर समाज से प्रभावित होकर ही साहित्य और सिनेमा का जन्म होता है। साहित्य और सिनेमा कहीं न कहीं हमेशा ही एक दूसरे के विस्तार में सहयोग करते रहें हैं। कहना सर्वथा उचित ही होगा कि साहित्य और सिनेमा एक दूसरे के पूरक हैं।
इसी सोच को आगे बढ़ाते हुए “साहित्य सिनेमा सेतु” नाम से त्रैमासिक ई-पत्रिका की शुरुआत की गयी। जो साहित्य, शिक्षा, सिनेमा, समाज और कला एवं संस्कृति के विकास को समर्पित है। इनसे जुड़े सभी बिंदुओं के साथ समसामयिक विषयों को भी पत्रिका में स्थान दिया गया है। बुराई पर अच्छाई की विजय के महापर्व दशहरा के शुभ अवसर पर ई-पत्रिका का प्रथम अंक आप सभी के समक्ष उपस्थित है। जिसमें कहानी, कविता, संस्मरण जैसे समसामयिक विषयों पर लेख हैं। आशा है आप सभी हमसे जुड़कर हमारी इस पहल को सफल बनाने में हमारा साथ देकर मनोबल अवश्य बढ़ायेंगे।
आपसे अपेक्षित सहयोग की आशा में…
–आशुतोष श्रीवास्तव