यद्यपि पूरे विश्व मे कोरोना महामारी का आर्थिक प्रभाव अब स्पष्ट रूप से दिखाई दे रहा, उसके बाद भी भारत की स्थिति अभी उतनी विकट नही है, जहां बड़े बड़े विकसित देशों पर इसके प्रभाव पड़ रहा,वहाँ भारत जैसी मिश्रित अर्थव्यवस्था वाले देश पर भी इसका प्रत्यक्ष और अप्रत्यक्ष प्रभाव दिखाई देगा, किन्तु जब ऐसी समस्या उत्पन्न हो तो यह अत्यंत आवश्यक हो जाता है देश के प्रधानमंत्री अर्थव्यवस्था और मनुष्य में किसी एक का चुनाव करें, और इसमें कोई दोराय नही कि माननीय प्रधनमंत्री जी ने मानव जो किसी भी अर्थव्यवस्था की रीढ़ है, उसका चुनाव कर पूर्णरूपेण सही निर्णय लिया है किन्तु यह भी एक कड़वा सच है कि भूख से बड़ी कोई बीमारी नही होती और इससे ज्यादा “मानव को मानव की जरूरत ना पहले पड़ी और उम्मीद है कि आगे भी ना पड़े।” भारत हमेशा ही गावों का देश माना जाता रहा है और इसकी अर्थव्यवस्था में कृषि का बहुत अधिक योगदान होता है लेकिन इसके बावजूद वर्तमान में भारतीयों के लिए और भी बहुत सी आवश्यक वस्तुएँ है,तथा वैश्विकरण के इस दौर में तो प्रयेक देश दूसरे देश पर आश्रित होता ही है। कोरोना एक वैश्विक महामारी है, जिसका प्रभाव भी भारत की अर्थव्यवस्था पर पड़ रहा है। रतन टाटा जी ने अभी कुछ दिन पहले जारी किए अपने संदेश में कहा ही है कि “2020 बस जीवित रहने का वर्ष है।” मानव जो किसी भी व्यवसाय की सबसे बड़ी पूंजी होती है वह सकुशल रहे तो अर्थव्यवस्था को पुनः स्थापित किया जा सकता है।
व्यवसाय की सबसे बड़ी पूंजी तो मानव संसाधन है, किन्तु मानव को भी जीवन यापन के लिए धन की आवश्यकता होती है। विभिन्न अर्थशास्त्रीयों का यह मानना है कि यह दुनिया की सबसे बड़ी मंदी होगी,भारत के बैंक पहले से ही अपने बुरे दौर में चल रहे थे, इसका प्रभाव भारत के विभिन्न व्यावसायिक संस्थानों पर अभी भी पड़ रहा था, रियल स्टेट भी अपने बुरे दौर पर था औऱ इसका प्रभाव एनबीएफसी जो कि कई तरह के ऋण देने का कार्य कार्य करती है वह ऋण देने में असमर्थ हो रही थी और इन सब के कारण ही पिछले साल बड़े कार्पोरेट क्षेत्रों को लगभग 1.45 लाख करोड़ का इंसेंटिव (प्रोत्साहन राशि) प्रदान की गई, लेकिन भारत में कॉरपोरेट क्षेत्र केवल 2% ही है,शेष 98% लोगों के पास इसका कोई फायदा नही मिला,जिससे किसान,जनता, मजदूर,आम आदमी के पास पैसा आया ही नही और उन्होंने इसका कोई उपयोग नही किया। एम.एस.एम. ई. की कठिनाई भी बढ़ती जा रही है,इस पर नोटबन्दी और जी. एस. टी. का प्रभाव अब तक था, और आकड़ों की माने तो
2019 में ही भारत सरकार से करों के द्वारा होने वाली आय घटी है,और 2020 में इसके और कम होने का ही अनुमान है। भारत सरकार के केंद्रीय सांख्यिकी कार्यालय (CSO) ने वित्त वर्ष 2019-20 में जीडीपी ग्रोथ रेट सिर्फ 5 फीसदी रहने का अनुमान जाहिर किया था। रिज़र्व बैंक ने भारत की ग्रोथ रेट 3.50% से 4% बताया है,यह पिछले 10 वर्षों में सबसे बड़ी गिरावट है। एनएसओ के हिसाब से 2019-20 जीडीपी 5% से भी बताई है जो पिछले 11 वर्षों में सबसे कम है। कोरोना प्रभाव के कारण शेयर बाजार भी अपने बुरे दौर पर है,यहां इक्विटी निवेशकों की संपत्ति पर 52 लाख करोङ का अभी ही नुकसान हो चुका है,जिसमे सेंसेक्स और निफ्टी पर भी भारी गिरावट देखी जा सकती है।
किसी भी देश की अर्थव्यवस्था मुख्य रूप से तीन प्रकार के कर्व(वक्र) के रूप में उन्नति करती है, पहला V वक्र अर्थात इसमें अर्थव्यवस्था जितनी तेज़ी से गिरती है उतनी ही तेजी से उन्नति करती है, दूसरा है U वक्र इसमें अर्थव्यवस्था तेजी से गिरती है और फ़िर धीरे धीरे ऊपर की ओर बढ़ती जाती है, और तीसरी स्थिति होती है L वक्र जो सबसे ख़राब मानी जाती है, इसमें अर्थव्यवस्था गिरती है और फ़िर ऊपर की ओर नही बढ़ पाती,यही स्थिति आज से करीब 100 साल पहले देखने को मिली थी जिसमें लगातार 10 वर्षों तक विभिन्न देशों की अर्थव्यवस्था मंदी काल मे थी। भारत की अर्थव्यवस्था को देखते हुए यह अनुमान लगाया जा सकता है कि भारत मे U वक्र की तरह उन्नति दिखाई देगी, और उसके लिये यह नितांत आवश्यक है कि भारत के निवासी वस्तुओं का उपभोग करें और नगदी के रूप पे बाजारों में पर्याप्त धन उपलब्ध हो। यद्यपि कई वस्तुओं पर कोरोना का कोई बहुत ख़ास असर नही दिखाई देगा जैसे रोजमर्रा की वस्तुएं, साबुन तेल,मंजन,खाने की वस्तुएं किन्तु यातायात के साधनों के कारण थोड़ी कठिनाइयों का सामना करना पड़ सकता है, कई क्षेत्र ऐसे भी है जिन पर कोरोना का सकारात्मक प्रभाव पड़ा है, जैसे ऑनलाइन गेमिंग ऐप, मनोरंजन के विभिन्न माध्यम, सबसे अधिक फायदा तो वीडियो कॉन्फ्रेंसिंग ऐप्स को हुआ है क्योंकि अब लगभग आधे से अधिक भारत घर मे रहकर काम कर रहा है और लोग वीडिओज़ के माध्यम से एक दूसरे से जुड़ें हुए है, किन्तु कई क्षेत्रों में घर से ही कार्य (वॉर्क फ्रॉम होम) करने की संकल्पना पूर्ण नहीं हो सकती है, और इसके अंतर्गत सबसे अधिक प्रभावित निचला तबक़ा ही होगा,जिससे वो पलायन के लिए मजबूर होंगे और कोरोना महामारी कहीं न कहीं और अधिक फ़ैलने की आशंका बनी रहेगी।
भारत मे लगभग 40 करोङ श्रमिक है,जो असंगठित और अनौपचारिक क्षेत्रों में काम कर रहे है अब वो राज्य छोड़कर जा रहे इससे जो काम हो रहे है और जो काम आगे होने वाले है उस पर इसका बहुत अधिक प्रभाव पड़ेगा। संयुक्त राष्ट्र सम्मेलन (UNCTAP) के अनुसार 2020 में 1 से 2 ट्रिलियन डॉलर का नुकसान होगा। तथ्यों पर गौर करें तो समझ आएगा कि चीन को भी बहुत अधिक नुकसान उठाना पड़ेगा, ऐसी स्थिति में भारत के पास एक सकारात्मक मौका है कि वह अधिक से अधिक वैश्विक बाजार में अपना कब्जा स्थापित कर सके। कोशिश यह करनी चाहिए कि अब अधिक से अधिक उत्पादन भारत मे ही किया कई और भारत की आर्थिक स्थित को सुदृढ़ किया जाए और इसके लिए यह नितांत आवश्यक है कि भारतीय उपभोक्ता भारत की वस्तुओं का उपभोग करें इसमें भारतीय
सरकार की भूमिका अहम भूमिका अदा करें तभी यह संभव हो सकता है, सरकार उपयोगी और महत्वपूर्ण नीतियों पर बात करे। भारत के अर्थशास्त्रियों से इस विषय पर मार्गदर्शन लिया जा सकता हैं, यह समय है कि सभी भारतवासी एक साथ, एक जुट सिर्फ गानों और फिल्मों में ही नही अपितु वास्तविक रूप से एक जुट हो।
भारत जैसे देश की अर्थव्यवस्था को उन्नति देने का एक सबसे उत्तम तरीक़ा है अधिक से अधिक वस्तुओं का उपभोग किया जाए, भारतीय जनता के द्वारा पैसों की बहुत अधिक बचत न कि जाए, बल्कि भारतीय वस्तुओं का उपभोग कर भारतीय उद्योग जगत को बढ़ावा देने में मदद की जाए। कोरोना का प्रभाव पूरी दुनिया पर पड़ रहा है,जापान, जर्मनी, इटली जैसे देशों की अर्थव्यवस्था बहुत बुरे दौर पर है ऐसी स्थित में अधिक से अधिक निर्यात के द्वारा भी भारत की अर्थव्यवस्था को बढ़ावा दिया जा सकता है,इस वक्त जहाँ बहुत से उत्पादक राष्ट्र बुरे दौर से गुजर रहे है भारत इस स्थिति का फ़ायदा भी उठा सकता है। भविष्य में अब शिक्षा क्षेत्र में तो बहुत अधिक नवाचार की सम्भवना है। इससे पहले जब भी मंदी काल हुआ है वो किसी आर्थिक समस्या की वजह से ही उत्पन्न हुआ है, लेक़िन वर्तमान समय भिन्न है, विश्व के लगभग सभी देशों ने स्वयं से ही खुद को लॉकडाउन किया हुआ है, कर्मचारी,मजदूर, व्यवसायी सभी अपने घर पर ही है काम नही कर रहे इसलिए समस्या उत्पन्न हो रही, जैसे ही ये सभी अपने अपने काम पर वापस आ जायेंगे,परिस्थिति सामान्य हो जाएगी। व्यवसाय और संगठनों को सही तरीक़े से मदद की जाए तो बहुत ही काम समय मे आर्थिक सरंचना पहले की ही तरह सामान्य स्थिति में आ जायेगी,बस ज़रूरत है एकजुट हो कर परस्थिति की कठिनाइयों को समझने की औऱ मिल कर इससे सामना करने की,तब देश पुनः उन्नति की ओर निःसंदेह अग्रसर होगा।