मेरा मानना है कि पृथ्वी को और ज्यादा खूबसूरत एवं चमकदार बनाने के लिए समय-समय पर कुछ ध्रुवतारे, कुछ नक्षत्र यहाँ आते रहते हैं।
सन् 1917,चपारण सत्याग्रह का दौर था।उसी वक्त हमारे जिला-जवार गोपालगंज के करमैनी गाँव में 16 नवंबर 1917ई0 को एक सांस्कृतिक नक्षत्र का अवतरण हुआ।परिवार द्वारा नाम रखा गया ‘चित्रगुप्त’। जी, वही चित्रगुप्त श्रीवास्तव जो आगे चलकर हिंदी फ़िल्म-संगीत के स्वर्णयुग के नायाब हीरा बने। चित्रगुप्त जी एक साहित्यिक कायस्थ परिवार से ताल्लुक रखते थे। होश संभालते ही उनकी संगीत साधना शुरू हो गई। शास्त्रीय-संगीत के विद्वान पंडीत शिवप्रसाद त्रिपाठी जी का सान्निध्य मिला।चित्रगुप्त जी शास्त्रीय-संगीत की शिक्षा ग्रहण करने लगे साथ ही भातखंडे संगीत महाविद्यालय,लखनऊ से नोट्स मंगाकर संगीत का नियमित अभ्यास करते थे। दूसरी तरफ उनकी पढ़ाई-लिखाई भी जारी रही। चित्रगुप्त साहब उच्च शिक्षित, डबल एम0 ए0(अर्थशास्त्र एवं पत्रकारिता)हुए तथा अपने दौर के सर्वाधिक शिक्षित संगीतकार थे।वे अपने कार्ड पर अपने नाम के साथ एम0 ए0 जरूर लिखते थे। उनके द्वारा संगीतबद्ध फिल्मों में संगीतकार के नाम के आगे “चित्रगुप्त,एम0 ए0″ लिखा रहता था। इन सभी बातों से अलग,उनके भीतर लोक खूब सरीहार के रचा-बसा था। तभी तो उनकी बनाई धुनों में कभी गाँव-देहात के धूरा की धमक तो कभी माटी की सोन्ह गमक स्पष्ट झलकती है। लोकगीतों पर आधारित उनके द्वारा बनाई भोजपुरी धुनों को सुनकर लोकजीवन जीवंत हो उठता है। लोक हुमक की बानगी तो दिखती है साहब ! जब उनके संगीत निर्देशन में बना गीत बजता है….”राजा तोहरे कारण छुटल सारी दुनिया….गोली मारऽ सबके आजा हमरे दिल में रनियाँ” प्रथम भोजपुरी फ़िल्म ‘ गंगा मईया तोहे पियरी चढ़इबो ‘ में संगीत देने का सौभाग्य इस भोजपुरिया माटी के लाल को ही प्राप्त हुआ। फ़िल्म के सभी गीत कालजयी और अमर हैं,जिन्हें भोजपुरी संगीत के पराकाष्ठा का पैमाना माना जाता है। और हमेशा माना जायेगा।….
रोजगार के लिए शुरूआती समय में चित्रगुप्त श्रीवास्तव पटना काॅलेज में प्रोफेसर थे;लेकिन भीतर का कलाकार हमेशा कुलाँच मारते रहता था। सन् 1946 में चित्रगुप्त साहब संगीत के प्रति अपना जुनून और हुनर लेकर मुंबई के लिए निकल पड़े।शुरू में संघर्ष करना पड़ा। कुछ वक्त बीतने के बाद मायानगरी ने उन्हें अपना लिया। मुंबई कैसे न अपनाती उस इंसान को,जिसने पुरूआ-पछुआ बयार को संगीत की तरह महसूस किया था !संगीत की समझ ऐसी थी कि धमनियों में धुन बहते थे और शिराओं मे सुर। सिलसिला चल पड़ा। उस दौर के सभी ख्यातिलब्ध गायक-गायिकओं ने चित्रगुप्त साहब के अप्रतिम सौंदर्य संगीत को अपना स्वर दिया। महेन्द्र कपूर,मो0 रफी,लता मंगेशकर,मन्ना डे,किशोर कुमार,हेमंत कुमार,तलत ,सुरेश वाडेकर आदि प्रमुख नाम थे उस वक्त। संगीतकार चित्रगुप्त द्वारा एक से बढ़कर एक अनमोल मोती गढ़े गयें। रफ़ी साहब के आवाज़ में ‘भाभी’ फ़िल्म का गीत–“चल उड़ जा रे पंक्षी अब ये देश हुआ विराना…” जब बजता है तो रूह में पैवस्त हो जाता है।
इसके अलावा “चली चली रे पतंग मेरी चली रे” “लागी छुटे ना अब तो सनम” न जाने ऐसे कितने पसंदीदा गीत याद आ रहे हैं! लता दीदी के साथ भी चित्रगुप्त साहब की जोड़ी खूब चली।शहद जैसे मीठे और सुरीले गीत तैयार हुए। उस समय का एक मजेदार वाकया सुनाता हूँ।
चित्रगुप्त साहब कि एक अजीब आदत थी। वे रिकार्डिंग के दौरान एक टूटी चप्पल पहने रहते थे,उसे वह शुभ मानते थे। एकबार लता जी ने मजाक में कहा-“चित्रगुप्त को लता की गायकी से अधिक अपनी टूटी चप्पल पर भरोसा है।” चित्रगुप्त साहब बस हँसकर रह गये।
सांस्कृतिक रत्न चित्रगुप्त जी ने भोजपुरी,हिंदी के अलावा गुजराती और पंजाबी संगीत में भी अपना महत्वपुर्ण योगदान दिया। चित्रगुप्त जी का गुण उनके पुत्रों में भी स्थानांतरित हुआ। उनके दोनों पुत्र आनंद श्रीवास्तव व मिलिंद श्रीवास्तव, सुप्रसिद्ध संगीतकार जोड़ी आनंद-मिलिंद के नाम से मशहूर हुए,जिन्होंने 90 के दशक में ‘कयामत से कयामत तक’ , ‘दिल’ और ‘बेटा’ जैसी सुपरहीट संगीतमय फ़िल्मों को दिया।
प्रयोगधर्मी संगीतकार चित्रगुप्त हमारे धड़कन में अनेक कालजयी धुन वसाकर 14 जनवरी 1991 ई0 को ब्रह्मलीन हो गए। उनके संगीत निर्देशन में बने गीत आज भी फ़िजा में गूँज रहे हैं। माटी के गौरव, गायक ,महान संगीतकार चित्रगुप्त जी को कोटि-कोटि नमन।जब आपका पावन स्मरण करता हूँ,सिर श्रद्धा से झुक जाता है। भावभीनी श्रद्धांजलि।

 

About Author

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *