हिंदी साहित्य में हरेक विधा का अपना प्रभाव होता है। लेखक या कवि अपना संदेश लोगों तक साहित्य की विधा के माध्यम से पहुंचा देते हैं। हर विधा का अपना ढांचा और कार्यशैली होती है। कविता में कवि कम शब्दों में अपनी बात कह देता है। उपन्यास में मुख्य कथा के साथ साथ अन्य कथाएं, घटनाएं तथा प्रसंग जुड़ते चलते हैं। जीवनी में लेखक नायक के जीवन की महत्वपूर्ण घटनाओं को रोचक ढंग से प्रस्तुत करता है। वहीं पर आत्मकथा में लेखक या लेखिका स्वयं ही नायक या नायिका होती है। वह भी अपने जीवन के भोगी हुए यथार्थ को सार्वजनिक करता है। संस्मरण में भी जीवन के रोचक प्रसंग देखने को मिलते हैं। कहानी भी समाज को प्रभावित करने या झकझोरने वाली घटनाओं की ओर समाज का ध्यान आकर्षित करती है।
नाटक विधा में पात्रों का संवाद महत्वपूर्ण होता है। नाटक को पढ़ने से अधिक इसका मंचन अधिक प्रभावित करता है। आमजन को पात्रों के संवाद अधिक प्रभावित करते हैं। ऐसे में नाटक की मूल संवेदना समझ में आ जाती है। इसी प्रसंग में प्रोफेसर सुरेश चंद्र के नाटकों में सामाजिक सरोकार देखने को मिलते हैं, उनके प्रमुख नाटक हैं :- महाभिनिष्क्रमण (काव्य नाटक), दलितों के सूर्य, समवादी सत्ता, मनुवादी दलित, मंदिर से अस्पताल, चौकीदारी पीठ (काव्य नाटक)।प्रोफेसर सुरेश चंद्र ने एक दर्जन से अधिक शोध आलोचना ग्रंथ लिखे हैं। चार कविता संग्रह, सात से अधिक पुस्तक ग्रंथों का संपादन किया है। उन्हें कई राष्ट्रीय पुरस्कारों- सम्मानों से सम्मानित किया गया है। प्रोफेसर सुरेश चंद्र वर्तमान में बतौर वरिष्ठ प्रोफेसर एवं अधिष्ठाता, भाषा एवं साहित्य पीठ, दक्षिण बिहार केंद्रीय विश्वविद्यालय, गया, बिहार में कार्यरत हैं।
देश की राजनीति में अधिवक्ता या वकीलों का दबदबा शुरू से ही रहा है। यूं कहे कि कानून का जानकार ही कानूनों का पालन करवा सकता है। अधिवक्ताओं से भ्रष्टाचारी, रिश्वतखोर अधिकारी-कर्मचारी, नेता बहुत डरते हैं। आम जनता में युवाओं को वकालत की पढ़ाई अनिवार्य कर देनी चाहिए, जिससे आधी से अधिक शोषण की घटनाएं कम हो जाएंगी। आज देश की कानून व्यवस्था पर उच्च वर्गीय लोगों का अधिक अधिकार है। कानून की वजह से दलित, आदिवासी, पिछड़े वर्ग तथा महिलाओं में कानून की पढ़ाई करने वाले नगण्य हैं, और जो हैं उनमें एकता का अभाव है।
हाल ही में प्रोफेसर सुरेश चंद्र द्वारा लिखित ‘चौकीदारी पीठ’ उनका नया काव्य नाटक है। 84 पेज के इस काव्य नाटक में पांच अंक दिए गए हैं। इन अंकों के अलग-अलग नाम हैं, जैसे :- विडंबना, विमर्श, चेतना का विस्तार, उपक्रम, न्याय की ओर अग्रसर। लेखक ने पात्रों के संवाद काव्यात्मक शैली में दिखने की कोशिश की है। राष्ट्रीय दलित अधिवक्ता संघ द्वारा स्थापित ‘चौकीदारी पीठ’ में अन्याय के विरुद्ध प्रशिक्षण दिया जाता है। जोकि समाज को समानता और न्याय के समान अवसर प्रदान करता है। काव्य नाटक के तीन स्त्री पात्रों में – मेधा गौतम जोकि विजय अरुण की पत्नी है, फातिमा सिंह समाज सेविका और राकेश अली की पत्नी, शक्ति ज्योति शिक्षित दलित युवती और दलित किसान युद्धवीर की पुत्री। काव्य नाटक के सत्रह पुरुष पात्रों में – बुद्ध शरण – अध्यक्ष, राष्ट्रीय दलित अधिवक्ता संघ, मनोज कुमार- महासचिव, राष्ट्रीय दलित अधिवक्ता संघ, विजय अरुण- महामाया नगर इकाई के अध्यक्ष, राष्ट्रीय दलित अधिवक्ता संघ, महेंद्र सिंह- महामाया नगर इकाई के उपाध्यक्ष, राष्ट्रीय दलित अधिवक्ता संघ, सूर्य प्रताप- महामाया नगर इकाई के महासचिव, राष्ट्रीय दलित अधिवक्ता संघ, सुशील गौतम- प्रचार सचिव,महामाया नगर इकाई, राष्ट्रीय दलित अधिवक्ता संघ, ज्ञानेश्वर- वित्त सचिव, महामाया नगर इकाई, राष्ट्रीय दलित अधिवक्ता संघ, राकेश अली- समाज सेवक, प्रभात कुमार- स्नातोत्तर का विद्यार्थी, युद्धवीर- दलित किसान,समता- दलित अधिकारी, गैर दलित व्यक्तियों की संख्या चार और प्रशिक्षित चौकीदारों की संख्या दो है।
‘चौकीदारी पीठ’ (काव्य नाटक) में अंतरधर्मी विवाह, नैतिक मूल्यों का प्रसार, समानता,स्वतंत्रता, प्रेम, न्याय के लिए चौकीदारों पीठों की स्थापना, स्त्री शिक्षा, उत्पीड़ित जन के बीच साहसी कार्यक्रम का आयोजन, आमजन को मुख्य धारा में शामिल करने की कोशिश, स्त्री के अधिकार, धर्मनिरपेक्षता, रूढ़िवादिता, संकुचित सोच, राष्ट्रीय दलित अधिवक्ता संघ के समाज सुधार के कार्य, सांप्रदायिकता, सौहार्द, समन्वय, दंगों- युद्धों की त्रासदी, वैधानिक सहयोग, दायित्व,अन्याय के विरुद्ध लड़ने की सहमति, जातिवाद- छुआछूत का विरोध, अंबेडकरवादी चेतना, समाज संस्कृति की रक्षा, संत शिरोमणि रविदास की शिक्षाओं को कार्यान्वित करना, वर्ण व्यवस्था का विरोध, अनैतिकता विरोध, भाषा की सामासिकता, धर्मांतरण, सुरक्षा की भावना, कर्मनाशा, धार्मिक सहिष्णुता, चौकीदारी की नीति बनाना, कानून का क्रियान्वयन, वंचितों का इतिहास, संविधान के अखंड पाठ का आयोजन, सामाजिक न्याय का सवेरा, गैर दलितों द्वारा दलितों की बारात में वर को घोड़ी चढ़ने पर रोकना, निर्भ्रांत संस्कृति, पाखंडवाद की पोल खोलना, संविधान को बचाना, भ्रष्टाचार मुक्त समाज बनाना, जन शोषण और षड्यंत्र, बाबासाहब डॉ.बी.आर.अम्बेडकर, संत शिरोमणि रैदास,झलकारी बाई, उदा देवी पासी,ललई सिंह यादव से प्रेरित होना, बहुजनों में चेतना जागृत करना, दलितों का प्रति द्वेष और उपेक्षा की भावना, मनुष्य की मनुष्य से नफरत, समतामूलक समरसत्ता का परिवेश, गंदी मानसिकता, दलित नारियों का शौर्य, समाज की वीरांगनाओं से प्रेरित होना, देशभक्ति सम्यक विकास इत्यादि देखने को मिलता है।
काव्य नाटक के पहले अंक ‘विडंबना’ में संत रविदास नगर की झलकारी बाई कॉलोनी में विजय अरुण का आवास का दृश्य। दिसंबर महीने की शाम, बारिश और आंधी के साथ ओलावृष्टि। विजय अरुण घर लौटते हैं, और इस बरसात ही ठंड में गर्म कॉफी का आनंद सपत्नीक लेते हैं। इस अंक में विजय अरुण और उनकी पत्नी मेधा गौतम का काव्यात्मक संवाद दिखाया गया है। अंतरधर्मी विवाह से समाज को जोड़ने वालों को प्रताड़ित करके और नफरत की कुचेष्टा करने वाले सांप्रदायिकतावादी लोग धर्म के बीच दूरी बढ़ाने का कार्य कर रहे हैं। इस संबंध में काव्य नाटक के पात्र विजय अरुण से चेंबर में आकर एक लड़का कहने लगा :-
“हमारी सहायता कर हमें बचा लीजिए
हम प्रेमी जा रहे सताए।
हम दोनों पति-पत्नी बनने को उद्धत।
धर्म हमारे हैं अलग-अलग
इस तथ्य से अवगत
माता-पिता हम दोनों के
वे फिर भी
हमारे निर्णय से हैं सहमत
परंतु सांप्रदायिकतावादी लोग
कर रहे हैं इस रिश्ता को अस्वीकृत
प्रेम हमारे जीवन का मार्ग
प्रेम हमारे जीवन का लक्ष्य
सांप्रदायिकतावादी लोग
बढ़ा रहे हैं दूरियां धर्मों में
फैला रहे हैं समाज में नफरत।”1.
इस प्रकार अंतरधर्मी शादी करने वाले युवक तथा युवतियों को समाज जीने नहीं देता। बल्कि समाज में सांप्रदायिकता- जातिवाद की भावना को और अधिक भड़काकर दंगे फसाद करवाए जाते हैं। समाज और देश का मन चयन खराब करते हैं। संविधान के नियम कानून के तहत देश चलेगा।समाज की रूढ़िवादिता खत्म होनी चाहिए। धर्मनिरपेक्षता से मानव सभ्यता समृद्ध होगी। समाज में झूठी शान,भय, कृत्रिमता, पूर्वाग्रह,नफरत, ईर्ष्या,अमीर- गरीब इत्यादि देखने को मिलता है। अंतर धर्मी विवाह को कानूनी हक है, लेकिन समाज के असामाजिक तत्व और रूढ़िवादी लोग इसे गलत मानते हैं। यह विकृत मानसिकता की उपज है। इससे मानव जाति और मानवीय मूल्यों का विनाश हुआ है। विकृत मानसिकता वालों का इलाज करना जरूरी है। बुराई पर अच्छाई की जीत जरूरी है। समझ में समानता, भाईचारा और साझी संस्कृति को बनाए रखने के लिए योजना और तरीके से एकता में रह कर काम करना जरूरी है। मानव द्वारा मानव की सहायता ही सत्कर्म है।
काव्य नाटक के दूसरे अंक ‘विमर्श’ में संत रविदास नगर की झलकारी बाई कॉलोनी स्थित सावित्रीबाई फुले पुस्तकालय का सभा कक्ष का दृश्य। कार्यक्रम के लिए मंच सजाया गया है। और सामने प्लास्टिक की कुर्सियां लगाई गई है, मंच के पीछे दीवार पर बैनर लगाया गया जिसके इसके शीर्ष पर लिखा है- “जय भीम। नमो बुद्धाय।। जय भारत।।।” उसके नीचे “राष्ट्रीय दलित अधिवक्ता संघ, महामाया नगर इकाई की बैठक” अंकित है।पास में डॉ. बी. आर. अंबेडकर की कांस्य प्रतिमा रखी है। वहीं पर, ट्रेन में गुलाब के फूल रखे हैं। दिसंबर के महीने की हल्की ठंड है, मंच पर राष्ट्रीय दलित अधिवक्ता संघ के पदाधिकारी गण बैठे हैं। सभी मंचासीन पदाधिकारी ने अंबेडकर की कांस्य प्रतिमा पर फूल चढ़ाएं। उपस्थित जनों में अधिवक्तागण हैं। बैठक में वंचित वर्ग को समानता, न्याय, अधिकार के लिए एकजुट होकर लड़ने और देश के चारों हिस्सों में चौकीदारी पीठ की स्थापना करने का निर्णय लिया गया। इस अंक में- सूर्य प्रताप, विजय अरुण, महेंद्र सिंह, सुशील गौतम, ज्ञानेश्वर इत्यादि का संबोधन दिखाया गया है। समाज के वंचित वर्ग को दिशा और कानून का महत्व बताकर डॉ. बी. आर. अंबेडकर ने जागृति का कार्य किया है। निजी मामले की दखलंदाजी से वंचित वर्ग कैसे निजात पा सकता है।धमकाना, अंतरधर्मी विवाह को अंतरराष्ट्रीय षड्यंत्र बताना,बदनाम करना, समाज में भय का माहौल पैदा करना, सांप्रदायिकता, अपसंस्कृति, दलित समाज में विवाह के समय गैर दलित द्वारा बारात – दूल्हे की घुड़चढ़ी नहीं करने देना इत्यादि। इस संबंध में काव्यनाटक में महेंद्र सिंह अपने संबोधन में कहते हैं :-
“अंतरधर्मी प्रेमी युगल के अतिरिक्त
पीड़ित बहुजन हैं,
आकाश उदासी का ओढ़े
जन कितने
अनचाहे चुपचाप हैं।
साधनहीन जनों का जीवन दुखद है।
विषमता इतनी कि
किसी के पास भरमार सुविधाओं की
तो किसी के पास
सुविधा के नाम
केवल आश्वासन है।
कितनों की शिक्षा बंद है,
शादी के अवसर पर
बेटे की घुड़चढ़ी को लेकर
दलित बाप फिक्रमंद है।
दलित जनों के
जीवन संदर्भों में जनाधिकारों का हनन अंतर्भुत है
जनाधिकारों का हनन
जनों की अकूत हानि का स्वयं सबूत है
मैं चाहता हूं
कि
जनों के अधिकारों की चौकीदारी
व्यापक स्तर पर हो
इसके लिए
हम अधिवक्ता बंधु
भिन्न भिन्न स्तर के
चौकीदार चुने
और
भिन्न भिन्न स्तरों पर
चौकीदारी पीठों का सृजन हो।”2.
इस प्रकार लेखक काव्य पंक्तियों के माध्यम से अंतरधर्मी विवाह की समस्या के अलावा बहुजनों के पीड़ा को भी उकेरता है। निर्धन लोगों का जीवन पीड़ादायक है, समाज में अमीरी – गरीबी की विषमता बनी हुई है।वे शिक्षा से कोसों दूर हैं, दलित बारात – वर की घुड़चढ़ी गैर दलितों को अखरती है और गैर दलित इसे अपनी बेज्जती समझते हैं। ये जातिवाद का राक्षस समाज को खाए जा रहा है। आमजनों के अधिकारों की रक्षा की जानी चाहिए। इसके लिए चौकीदारी पीठों की स्थापना की जानी चाहिए। चौकीदारी पीठ और चौकीदारी महापीठ से वंचित वर्ग के अधिकारों की रक्षा होगी और वे भय मुक्त जीवन यापन कर सकेंगे।
इस काव्य नाटक के तीसरे अंक ‘चेतना का विस्तार’ में संत शिरोमणि रविदास की जयंती पर चौकीदारी महापीठ के उद्घाटन कार्यक्रम का आयोजन दिखाया गया है। संत रैदास नगर में चार कमरों का एक भवन है, जिसके मुख्य द्वार पर “चौकीदारी महापीठ” नीले रंग से लिखा हुआ है। शामियाना लगा है जिसमें बैनर पर ” चौकीदारी महापीठ का उद्घाटन समारोह” लिखा है। सैंकड़ों लोग कार्यक्रम में शामिल हुए हैं। फातिमा सिंह और राकेश अली भी आए हैं जिन्होंने हाल ही में अंतरधर्मी विवाह किया है। मुख्य अतिथि के तौर पर बुद्ध शरण और विजय अरुण मौजूद हैं। संविधान जिंदाबाद के नारे लगाए जा रहे हैं। बैनर पर संत शिरोमणि रैदास का चित्र और उनके पदों की कुछ पंक्तियां लिखी हुई हैं, दूसरी तरफ डॉ. बी.आर. अंबेडकर का चित्र है, जहां पर संविधान का आवरण चित्र है और संविधान की उद्देशिका लिखी गई है। वहीं पर संत शिरोमणि रैदास और डॉ. बी. आर. अंबेडकर की कांस्य प्रतिमा है। मंच पर गुलाब के फूलों की ट्रे रखी हुई है।
फातिमा सिंह और राकेश अली द्वारा किए गए वैवाहिक संबंध से समाज को एक नई दिशा मिलेगी। उन्हें मंच पर बुलाकर सम्मान पत्र देकर सम्मानित किया गया। यह भारतीय संविधान की जीत है, ये धर्मनिरपेक्षता के सच्चे सिपाही हैं। इस अंक में फातिमा सिंह और राकेश साली का काव्यात्मक लंबा भाषण दिया गया है। जिसमें वे अपने जीवन के संघर्ष की कहानी को बयां करते हैं और समाज की गंदी मानसिकता की पोल खोलते हैं। फातिमा सिंह दलित समाज पर गैर दलितों द्वारा किए गए अत्याचारों को उजागर करती हैं , वे कहती हैं:-
“मैं देख रही हूं
मूल्यबद्ध स्वतंत्र जीवन के समक्ष
बाधाएं हैं विकट
पिट रहे हैं
अनुसूचित जाति वाले
पहुंच जाते यदि वे
मन्दिर स्थित देव प्रतिमा के निकट।
मैं देख रही हूं
सामाजिक न्याय से वंचित
अनुसूचित जाति वाले
झेल रहे हैं
हैरान करने वाली विडंबना
मन्दिर निर्माण हेतु लिया जाता उनसे
चंदा घना।
मैं आश्वस्त हूं
चौकीदारी पीठों द्वारा
जनाधिकारों की रक्षा होगी सुगम
खिलवाड़ करें जो कानूनों से
होगा खंडित उनकी दबंगई का भ्रम।”3.
इस प्रकार काव्य नाटक में लेखक पात्रों के माध्यम से दलित जीवन की विडंबना को रखते हैं। दलित जीवन शोषण, अत्याचार, उपेक्षा का शिकार है। दलित जब किसी मन्दिर में देव प्रतिमा के निकट पहुंच जाता है तो गैर दलितों की छाती में आग के शोले उठने लगते हैं। जबकि मन्दिर निर्माण के समय उन्हें हिंदू बोलकर उनसे चंदा भी लिया जाता है। राष्ट्रीय दलित अधिवक्ता संघ ने चौकीदारी पीठों की स्थापना करके दलित, पिछड़ों, आदिवासियों और महिलाओं के लिए न्याय दिलवाने और भयमुक्त वातावरण का काम किया है। यहां लेखक आश्वस्त दिखाई दे रहे हैं। क्योंकि समाज में दबंगई दिखाने वालों का भ्रम खंडित होगा और अब वे कानूनों से खिलवाड़ नहीं कर पाएंगे।
काव्य नाटक में राकेश अली का लंबा काव्यात्मक भाषण दिया गया है। विचारधारा के जल में पिसती जनता परेशान है। मानवीय मूल्यों पर सरेआम प्रहार किया जा रहा है।इस संबंध में काव्य नाटक में राकेश अली कहते हैं :-
“विचारधाराओं का खेल अनैतिक हो गया है
विरोध के लिए विरोध की राजनीति में
मानवता की संस्कृति का ह्रास हो रहा है।
अधर्म का चश्मा चढ़ाकर
विरासत धर्म की पढ़ने वाले
भाषाओं की सामासिकता में
तेरी मेरी करने वाले
नामों में, उपनामों में
शत्रु – मित्र खोजने वाले
दाड़ी, पगड़ी और परिधान देखकर
भेद की खाई गहराने वाले
यहां खड़े हैं
वहां खड़े हैं।
इंसान में इंसान को समझ सके
ऐसे इंसानों के लाले पड़े हैं
इंसान लुट रहा है
इंसान पिट रहा है
हत्या हो रही है इंसान की
क्यों?”4.
इस प्रकार समाज में और देश में विचारधाराओं की लड़ाई चल रही है। इसलिए उसमें दलित, आदिवासी, पिछड़ा वर्ग और महिलाएं पिस हैं। मानव संस्कृति का क्षरण हो रहा है। धर्म का चश्मा चढ़कर लोग अत्याचार करने से नहीं हिचकते। मानव शोषण को अपनी विरासत समझ रहे हैं।
जातिवाद, धर्म, लिंग – भेद और अमीर-गरीब इत्यादि में भेद करने की खाई गहरी होती जा रही है। यहीं पर दाड़ी के आधार पर, पगड़ी के आधार पर और परिधान देखकर भेदभाव किया जा रहा है। इंसान को इंसान नहीं समझ रहे हैं, इंसान लुट रहा है, पिट रहा है और हत्याएं हो रही हैं। इनका जिम्मेदार कौन है? आखिर कब तक ऐसा होता रहेगा?
दरअसल, मनुष्य ने ही मनुष्य के साथ विश्वासघात किया है।जीवन जीने के तरीके, नियम उपनियम स्वयं ने ही बनाए हैं। कुछ लोग अपने को श्रेष्ठ दिखाकर बाकी लोगों को नीचा दिखाते आ रहे हैं। वर्ण व्यवस्था इसी कारण निर्धारित किया गया है ताकि एक वर्ग श्रेष्ठ रहे बाकी सब उसकी सेवा में लगा रहे। सभी अलग अलग जाति – धर्म और समाज में विधि विधान से शादी करते हैं, लेकिन जब शादी टूटने के कगार पर पहुंच जाए या टूट जाए, तो पीड़ित पक्ष शादी करवाने वाले के पास नहीं जायेंगे बल्कि बाबासाहब डॉ. बी. आर.अंबेडकर द्वारा बनाए गए नियम उपनियम जोकि हमारे संविधान में हैं, उनका ही सहारा लेते हैं। इससे तो अच्छा है कि वे संविधान को साक्षी मानकर ही विवाह की रस्म पूरी करें ताकि भविष्य भी सुरक्षित रहे और अनावश्यक खर्च से भी बच सकें।
काव्य नाटक के चौथे अंक ‘उपक्रम’ में अंबेडकर नगर में स्थित ओ.बी.सी. विश्वविद्यालय का पेरियार सम्मेलन हॉल का दृश्य। ललई सिंह यादव के जन्मदिन (1 सितंबर) पर कार्यक्रम का आयोजन। बैनर पर “ललई सिंह यादव का जन्मोत्सव सह- चौकीदारी पीठों का उद्घाटन समारोह” लिखा है। वहीं मेज पर ललई सिंह यादव की कांस्य प्रतिमा रखी है, पास में ही ट्रे में गुलाब की फूलमाला और गुलाब के फूल रखे हुए हैं। वहीं अलग-अलग स्टैंड पर चौकीदारी पीठ की चार पट्टिकाएं नीले रेशमी वस्त्र से ढक कर रखी हुई हैं। हॉल में 1000 से अधिक लोग कुर्सियों पर विराजमान हैं। कार्यक्रम के संचालन के लिए मनोज कुमार, कार्यक्रम की अध्यक्षता श्रीमान बुद्ध शरण जी, मुख्य अतिथि श्रीमान युद्धवीर जी, विशिष्ट अतिथि श्रीमान विजय अरुण जी, श्रीमती फातिमा सिंह जी के रूप में उपस्थित हैं। मंचासीन पदाधिकारी के वक्तव्य इस अंक में दिखाए गए हैं। सभी ने ललई सिंह के पुष्प अर्पित किये। इस अंक में ओबीसी साहित्य पढ़ने के लिए प्रेरित किया गया है। मानवीय मूल्य एवं संविधान की रक्षा पाखंडवाद की पोल खोली गई है। ललई सिंह यादव के जन्मोत्सव के साथ ही चौकीदारी पीठों की स्थापना की गई। शोषण के विरुद्ध लड़ने एवं न्याय के लिए संघर्ष करना, शोषितों का हितेषी बनना, साहित्य, समाज, धर्म, राजनीति पर मनमानी करना और षड्यंत्र करना। ललई सिंह यादव के साहित्य को पढ़ने के लिए वंचित वर्ग को प्रेरित करना और राजनीतिक दिशा का चयन करना इत्यादि। बहुजनों की एकता में ही उनका हित है निहित है। इस संबंध में काव्य नाटक में विजय अरुण कहते हैं:-
पहले काम यह करें कि
ललई सिंह यादव जी के साहित्य को पढ़ें दूसरा काम यह करें कि
उनके साहित्य को पढ़ने के लिए बहू जनों को प्रेरित करें।
तीसरा काम यह करें कि
ललई सिंह यादव जी के जीवन दर्शन के आलोक में
बहुजन राजनीति की दिशा सुनिश्चित करें। चौथ काम यह करें कि
भटके हुए नेताओं को
बहुजन हित करते रहने को प्रेरित करें।”5.
इसमें चार बातों पर विशेष जोर दिया गया है। ललई सिंह यादव के साहित्य को पढ़ना और उनके साहित्य को पढ़ने के लिए दलित, आदिवासी, पिछड़े वर्ग और महिलाओं को प्रेरित करना। ललई सिंह यादव के जीवन के से शिक्षा लेकर बहुजन राजनीति की दिशा तय करें। समाज के भटके हुए नेताओं को समाज हित कार्यों के लिए प्रेरित करें।
जन कल्याण के कार्यों में बहुजनों को भी सहयोग करना चाहिए। नई पीढ़ी के बच्चों को भी डॉ. बी. आर. अंबेडकर, ज्योतिबा फुले, संत शिरोमणि रविदास की शिक्षाओं से प्रेरित करें। बहुजन हितों के संबंध में काव्य नाटक में युद्धवीर कहते हैं कि :-
बहुजनों का हित ही हित है
यदि एकता के सूत्र में बंद जाएं
सब बहुजन
मैं बताना चाहता हूं
बहुजनों के सम्यक हित का खेल
बहुजनों के बीच पैदा हुए
चमचा
गुलाम
और
स्वार्थी
बहुजनों ने ही बिगाड़ रखा है
हम इनको पहले चिन्हित करें
इसके बाद
इन्हें बहुजनद्रोही घोषित कर
समाज से बहिष्कृत करें।
ऐसा करने से
बहुजन समाज निरंतर समृद्ध होगा
और
लोकतंत्रात्मक शासन व्यवस्था में
ग्राम प्रमुख से लेकर
राष्ट्र प्रमुख तक बहुजन होगा।”6.
इस प्रकार बहुजन मिलकर रहे तो उनकी एकता में बल है,और उनका हित ही हित है ।समस्या यह है कि बहुजनों के बीच में चमचा या चमचागिरी करने वाला, गुलाम या जो मुफ्त की बेगार करें या गुलामी करने वाला, स्वार्थी जो अपने स्वार्थ के लिए कहीं तक भी गिर सकता है। ऐसे लोगों की पहचान करें, उन्हें समाज से बहिष्कृत करके इन्हें बहुजन द्रोही भी घोषित किया जाए। ऐसा हुआ तो बहुजन समाज निरंतर समृद्ध और खुशहाल होगा। राजनीति में उनका दबदबा होगा। गांव की मुखिया से लेकर देश के मुखिया तक बहुजनों का ही राज्य होगा।
काव्य नाटक के पांचवें और अंतिम अंक ‘न्याय की और अग्रसर’ में महाबिरीपुर गांव का दृश्य है। गांव के चारों ओर परिक्रमा मार्ग है। गांव के बीच में मुख्य गली है, मुख्य गली के मुहाने पर कुछ गैर दलितों के घर हैं, उसके बाद गली के अंतिम छोर तक दलितों के घर हैं। दिसंबर का महीना, दोपहर 2:00 का समय। दलित किसान युद्धवीर की पुत्री शक्ति ज्योति की शादी है। वर का नाम समतावीर है, जोकि अधिकारी है। और घोड़े पर सवार होकर बारात के साथ आता है। बारात में एक बाराती सिर पर डॉ. बी. आर. अंबेडकर की तस्वीर रखे हुए हैं ,दूसरा बाराती भारत के संविधान की तस्वीर सिर पर रखे हुए है। दो युवक बैनर को थामे हैं जिस पर लिखा है “चौकीदारी महापीठ में प्रशिक्षण प्राप्त चौकीदार समूह” लिखा है। इस समूह का नेतृत्व मेधा गौतम कर रही है। गैर दलित बारात को रोकते हैं, वहीं पर आपसी संवाद होता है। और गैर दलित इसे अपना अपमान मानते हैं, क्योंकि कई पीढ़ियों से परंपरा चल रही है। दलित इस परंपरा को तोड़ना चाहते हैं। क्योंकि सभी मनुष्य बराबर हैं तो ऊंचा- नीचा क्या? दलित संविधान के कानून कायदे से चल रहे हैं। गैर दलित उन्हें धमका रहे हैं, इसमें दलित – गैर दलितों का लंबा संवाद दिखाया गया है। इस संबंध में काव्य नाटक में गैर दलित व्यक्ति एक कहता है:-
“न बर्बाद करो समय
न हमें बातों में उलझाओ
अभिलंब मार्ग बदलो
रहो अपनी औकात में
न हाथ हमारे उठवाओं।” 7.
इसमें गैर दलित और दलितों के बीच तीखी बहस होती है। दलितों को सरेआम धमकाया जा रहा है और दलित वर्ग की घुड़चढ़ी बारात के साथ रोकी जा रही है। यहां गैर दलितों की दबंगई दिखाई दे देती है। वे दलितों को औकात याद दिला रहे हैं और दलितों के साथ मारपीट करने या हाथ उठाने की बात कर रहे हैं। वहीं पर दलित उनसे डर नहीं रहे, बल्कि पहले वे मामला बातचीत से सुलझाने का प्रयास कर रहे हैं। इस संबंध में काव्य नाटक में युद्ध वीर कहते हैं:-
“मार्ग बदलने का नहीं
मानसिकता बदलने का है समय
असमानता के भाव से रुग्ण
अपनी मानसिकता बदलो
आंख खोल कर देखो
समतावादी सम्मान के सूर्य का हो चुका है उदय।”8.
इस प्रकार दलित मार्ग न बदलने पर अड़े हुए हैं। और गैर दलितों को मानसिकता बदलने की नसीहत दे रहे हैं। वहीं गैर दलित असमानता या भेदभाव के रोग से पीड़ित है।आप आंख खोल कर देख लीजिए कि समतावादी सम्मान के सूर्य का उदय हो चुका है। गैर दलित और दलितों के बीच बहस होती है। इसमें युद्धवीर, मेधा गौतम, प्रभात कुमार, समतावीर शामिल हैं। इसी बीच वधू शक्ति ज्योति भी वहां पर सहेलियों के साथ आ जाती है।वह कहती है:-
“सुनो…सुनो…
मैं शक्ति ज्योति
मैने चौकीदारी पीठों से
संविधान के आलोक में
स्वाभिमान की रक्षा का प्रशिक्षण प्राप्त किया है
जीवन का बलिदान करने तक
समता के अधिकारों को जीने का संकल्प लिया है
आप मुट्ठी भर जन
दलित की बेटी की बारात रोक नहीं पाओगे हम समतावादी बहुजन
बढ़ेंगे न्याय के मार्ग पर
आप निश्चित ही मात खाओगे
सभी बाराती और घराती
आगे बढ़ो!
बढ़ते जाओ!!
संविधान को सफल बनाओ!!!
आगे आगे मैं चलती हूं
झलकारी बाई को याद करती हूं।” 9.
इसमें दलित स्त्री का स्वाभिमान,साहस, और आत्मविश्वास दिखाया गया है। आज दलित स्त्री कमजोर नहीं है, वह अपने अधिकारों के रक्षा करना जानती है। वह जीवन का उत्सर्ग करने के लिए तत्पर है, उसने संकल्प ले रखा है। समानता पर चलने वाले बहुजन न्याय के मार्ग पर आगे बढ़ रहे हैं। मुट्ठीभर गैर दलित लोग एक दलित की बेटी की बारात को नहीं रोक सकते। उन्हें मात खानी होगी। सभी घरातियों और बारातियों से आगे बढ़ने का आह्वान करती है। संविधान को सफल बनाने का प्रण लेती है। झलकारी बाई को याद करते हुए सबसे आगे स्वयं चलती है।
इस प्रकार इस काव्य नाटक में “राष्ट्रीय दलित अधिवक्ता संघ” की महत्वपूर्ण भूमिका है। देश की चारों दिशाओं में ‘राष्ट्रीय दलित अधिवक्ता संघ’ द्वारा चौकीदारी पीठों और चौकीदारी महापीठों की स्थापना करना। जिसमें प्रशिक्षित चौकीदार तैयार होंगे।यह दलित वर्ग और वंचित वर्ग को जोड़ने का शानदार प्रयास है।अंतरधर्मी विवाह को बढ़ावा देना, सुरक्षा देना, समाज में समानता, न्याय, एकता और अमन चैन स्थापित करना, संविधान के नियमों का पालन, शिक्षा के अधिकार पर जोर, महिलाओं की अधिकारों की रक्षा, महापुरुषों के विचारों को समाज में प्रसारित करना, महापुरुषों एवं वीरांगनाओं को याद करना एवं उनके नाम पर शहर, कॉलोनी,मार्ग एवं भवनों का नामकरण करना, धर्मनिरपेक्षता, संविधान की उद्देशिका को समाज के हर एक वर्ग तक पहुंचाना, दलित, आदिवासी, पिछड़ा वर्ग एवं महिलाओं में अधिकारों के प्रति चेतना जागृत करना, अपने इतिहास संस्कृति को बचाए रखना, दलितों के वर – बारात की घुड़चढ़ी को कानून का सहारा लेकर निकलना, भ्रष्टाचार पर लगाम, माननीय मूल्यों की स्थापना, जातिवाद एवं छुआछूत का अंत, जनहित के कार्य, सम्मान, प्रेम, दया, साझा संस्कृति,समन्वय की भावना, खुशहाल गृहस्थ जीवन, निर्भ्रांत संस्कृति, नाटक के सभी पांच अंकों- विडंबना, विमर्श, चेतना का विस्तार,उपक्रम, न्याय की ओर अग्रसर इत्यादि को कार्यान्वित करना।
काव्य नाटक में जिन समस्याओं को उठाया गया है उनमें – अंतरधर्मी विवाह का विरोध और समाज में उसे अंतरराष्ट्रीय षड्यंत्र बताना, अपसंस्कृति, अन्याय, शोषण, दुर्व्यवहार, नफरत फैलाना, दलितों के वर – बारात की घुड़चढ़ी रोकना, संविधान का विरोध, जातिवाद, छुआछूत, सदियों से चल रही परंपरा को जारी रखना, चमचागिरी, गुलामी, स्वार्थी, ईर्ष्या, द्वेष,धमकाना, भ्रष्टाचार, मनमानी, धर्म को थोपना, चंदा की वसूली, भेदभाव, सांप्रदायिकतावादी, फुसलाना, बहकाना, विश्वासघात, विषमतावादी, शोषण के षड्यंत्र, बहुजनद्रोही को समाज से बहिष्कृत करना इत्यादि शामिल है।
इस नाटक में सकारात्मक पहलू अधिक हैं। इसका मंचन भी किया जाना चाहिए। समाज को निश्चित रूप से एक दिशा और दृष्टि मिलेगी। वंचित समाज के लिए यह ऐतिहासिक धरोहर है। इसमें महापुरुषों के विचार और वीरांगनाओं के विचार शामिल किए गए हैं, जिससे नाटक का उद्देश्य पूर्ण होता है।
